मेराल (गढ़वा) : गढ़वा-चिनिया मार्ग में मेराल प्रखंड के कोटाम पहाड़ी में अवस्थित सिरकटे घुड़सवार की पत्थर की बनी मूर्ति अभी तक स्थानीय लोगों के अनसुलझी रह गयी है.
कोटाम पहाड़ी के आसपास के लोग इस मूर्ति को कोटाम राजा की मूर्ति समझ कर उन्हें देवता के रूप में वषों से पूजा करते रहे हैं. यद्यपि कालांतर में असली मूर्ति को यहां से ले जाकर तसरार में स्थापित की गयी है. तबसे तसरार एवं कोटाम पहाड़ी दोनों जगह कोटाम राजा की पूजा की जाती है.
पेशका, दुलदुलवा, चामा, कोलो दोहर, बाना, टोरी, तसरार सहित करीब 40 गांव के लोगों को यहां पत्थर की बनी मूर्ति में असीम श्रद्धा है. बैगा के माध्यम से यहां पहले की पूर्वजों से ही पूजा-अर्चना चली आ रही है. कोटाम पहाड़ी पर जाने के लिए अभी तक कोई सुगम रास्ता नहीं बनाया जा सका है.
इसके कारण पूजा करनेवाले झाड़ी एवं पत्थरों के बीच से पगडंडीनुमा रास्ते से होकर दर्शन के लिए जाते हैं. ग्रामीणों की मान्यता है कि कोटाम राजा अपने घोड़े पर सवार होकर रात में आसपास के गांवों में घूमते हैं. उनकी उपस्थिति के कारण यहां समय पर मॉनसून आता है. इसके कारण उनकी फसल समय पर हो पाता है.
ग्रामीण आषाढ़ में कोटाम पहाड़ पर बादल के चढ़ते ही अपनी वार्षिक पूजा करते हैं. करीब दो दशक पूर्व कोटाम राजा की यहां से तसरार मूर्ति ले जाने के दौरान आसपास के दर्जनों गांव के ग्रामीणों ने काफी विरोध किया था.
लेकिन तसरार के लोगों द्वारा इस बात पर अड़ जाने के कारण कि उनके पूर्वजों द्वारा कोटाम राजा की पूजा होती चली आ रही है, उसे किसी कीमत पर नहीं जाने देंगे. परिस्थिति को देखते हुए प्रशासन ने मूर्ति को तसरार से पुन: कोटाम पहाड़ी पर लाने के बजाय ग्रामीणों को समझा-बुझाक र इसके लिए मना लिया गया.
फिलहाल कोटाम पहाड़ी पर पुराना गुफा एवं पत्थर की मूर्ति अभी भी लोगों के लिए श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है. यद्यपि इस रहस्य का वैज्ञानिक विश्लेषण अभी तक नहीं किया जा सका है.