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गांव का विकास नहीं हुआ, करेंगे नोटा का प्रयोग

गांव तक पहुंचने के लिए नहीं है कोई रास्ता आजादी के सात दशक में भी गांव में नहीं गया कोई सांसद, विधायक अथवा अधिकारी पहले नक्सलियों का गढ़ माना जाता था बैदेशी गांव को रमकंडा : 30 घर और इन घरों में रहने वाले करीब 200 लोगों की दर्द भरी कहानी सुनने वाला कोई नहीं […]

गांव तक पहुंचने के लिए नहीं है कोई रास्ता

आजादी के सात दशक में भी गांव में नहीं गया कोई सांसद, विधायक अथवा अधिकारी
पहले नक्सलियों का गढ़ माना जाता था बैदेशी गांव को
रमकंडा : 30 घर और इन घरों में रहने वाले करीब 200 लोगों की दर्द भरी कहानी सुनने वाला कोई नहीं है. चारों तरफ घनघोर जंगलों से घिरा रमकंडा प्रखंड की सीमा पर स्थित बलिगढ़ पंचायत का बैदेशी गांव आजादी के 72 वर्षों बाद भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है. ग्रामीणों की सुध लेने के लिए आजादी के बाद आजतक इस गांव में कोई भी सांसद, विधायक नहीं पहुंचा है और न ही कभी कोई प्रखंड स्तरीय अधिकारी इस गांव में ग्रामीणों की समस्याओं से रूबरू होने पहुंचे हैं.
इसके कारण इस गांव के ग्रामीणों में सरकार, प्रशासन एवं जनप्रतिनिधियों के खिलाफ जबरदस्त आक्रोश है. बैदेशी गांव कभी नक्सलियों का गढ़ माना जाता था. यहां 365 दिन नक्सलियों का जमावड़ा लगा रहता था. इस गांव में कई बार पुलिस और नक्सलियों की मुठभेड़ हो चुकी है. इस गांव के ग्रामीण अपने गांव के स्वयंसेवक एवं मुखिया को छोड़ अन्य किसी भी सरकारी प्रतिनिधि को नहीं जानते हैं. गांव के लोग आज भी ढिबरी युग में जीने को विवश हैं. अभी तक यहां बिजली नहीं पहुंची है.
आवागमन के लिए घनघोर जंगलों के बीच पगडंडी का ही सहारा है. पंचायत मुख्यालय से करीब सात किमी दूर कभी नक्सलियों के गढ़ माना जाने वाले इस गांव में पहुंचने के लिए आज तक सड़क नहीं बनाया जा सका. बरसात को छोड़ अन्य मौसम में बाइक के सहारे यहां पहुंचा जा सकता है. बरसात में पूरा गांव पंचायत व प्रखंड मुख्यालय से कट जाता है. बरसात शुरू होते ही लोग कई दिनों तक राशन एकत्रित कर लेते हैं, ताकि राशन के लिए उन्हें बरसात भर परेशानी न हो.
ग्रामीण दिलामनी देवी, शिवरतन सिंह, सोहराई यादव, हुलास सिंह, बिहारी सिंह, बदन सिंह, रामजी सिंह, हजारी सिंह, महेंद्र सिंह, बंधु सिंह, कामेश यादव, बबलू यादव, मंटू सिंह, हीरमानी देवी, सुशीला देवी, प्रभा देवी, अंति यादव, रुक्मनिया देवी, सहबीनी देवी, बंधु सिंह आदि ने कहा कि सरकार उनके लिए नहीं है. उन्होंने बताया कि इन सब समस्यायों के साथ गांव में स्वास्थ्य सुविधा भी नहीं है. गांव में किसी के बीमार होने पर उसे डोली-खटोली के सहारे विश्रामपुर तक लेकर पहुंचते हैं. तब जाकर कहीं इलाज हो पाता है. वहीं गांव में रोजगार के कोई साधन भी नहीं है. करीब 50 मनरेगा मजदूरों को रोजगार नहीं मिलने से अक्सर प्रदेशों में पलायन करने को ग्रामीण मजबूर हैं.
ग्रामीण बताते हैं कि यहां शुद्ध पेयजल की घोर समस्या है. गांव में लगे चापाकल में तीन पूरी तरह से बंद हो चुका है. वहीं विद्यालय के चापाकल से रुक-रुक कर पानी निकल रहा है. गर्मी शुरू होते ही लोग पीने के लिए नदियों में बने कच्चा कुआं या फिर चुआड़ी खोदना शुरू कर देते हैं.
ग्रामीणों ने बताया कि ज्येष्ठ मास की तपती गर्मी में पूरा गांव नदियों में जगह-जगह पर चुंआड़ी खोद पानी पीने पर मजबूर हो जाता है. बैरवादह व ककनहिया नदी से घिरा होने के बाद भी इस गांव में सिंचाई की कोई व्यवस्था नहीं है. 20 वर्ष पहले बनाये गये तीन सिंचाई कूप में अब पानी ही नहीं है. बारिश के भरोसे ग्रामीण खेती की ओर टकटकी लगाये रहते हैं. शिक्षा व्यवस्था को लेकर एक प्राथमिक विद्यालय खोला गया है.
लेकिन शिक्षक द्वारा मनमाने ढंग से विद्यालय संचालित किये जाने को लेकर गांव के बच्चे रंका प्रखंड के विद्यालयों में पढ़ाई करते हैं. वहीं इस विद्यालय की सिर्फ कागजों पर खानापूर्ति की जाती है. गांव में विकास कार्य नहीं होने से नाराज बैदेशी गांव के ग्रामीण इस बार लोकसभा चुनाव में किसी भी प्रत्याशी को वोट नहीं करेंगे.
गांव के सभी मतदाता नोटा बटन का प्रयोग करने का निर्णय ले चुके हैं. ग्रामीणों ने बताया कि सरकार उनके लिए नहीं हैं. जब-जब चुनाव का समय आता है, तो सिर्फ सांसद और विधायक के प्रतिनिधि गांव में एकाध बार पहुंच कर विकास कार्य का सांत्वना देते हैं. लेकिन चुनाव के खत्म होते ही सांसद, विधायक तो दूर उनके प्रतिनिधि भी दर्शन नहीं देते हैं. उन्होंने कहा कि पंचायत के मुखिया कभी कभार आते हैं. पंचायत निधि मद से गांव में एक सोलर लाइट, करीब तीन चापाकल का निर्माण कराया गया है.

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