विडंबना. 1988 से लाइब्रेरियन नहीं, 1995 से शाॅर्टर का भी पद खाली
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सरकार का पुस्तकालय पर ध्यान नहीं
विडंबना. 1988 से लाइब्रेरियन नहीं, 1995 से शाॅर्टर का भी पद खाली कंप्यूटर, एयर कंडिशंड रीडिंग रूम का नहीं मिल पा रहा कोई लाभ प्रतिनियुक्त कर्मी के भरोसे लाइब्रेरी की व्यवस्था दुमका : उपराजधानी दुमका का राजकीय पुस्तकालय बदहाल और उपेक्षित है. 1956 में स्थापित इस पुस्तकालय का पिछले तीन दशक से सही ढंग से […]
कंप्यूटर, एयर कंडिशंड रीडिंग रूम का नहीं मिल पा रहा कोई लाभ
प्रतिनियुक्त कर्मी के भरोसे लाइब्रेरी की व्यवस्था
दुमका : उपराजधानी दुमका का राजकीय पुस्तकालय बदहाल और उपेक्षित है. 1956 में स्थापित इस पुस्तकालय का पिछले तीन दशक से सही ढंग से संचालन नहीं हो पा रहा है. इसकी वजह न तो पुस्तकों की कमी और न ही संसाधन का अभाव है. यहां अच्छी-अच्छी पुस्तकें हैं और शोधपरक ग्रंथ भी. अच्छा भवन भी है, बुकशेल्फ भी. बैठने के लिए रीडिंग रूम और आरामदायक टेबल-कुर्सी भी. पीने के लिए वाटर प्यूरीफायर भी लगा है और बिजली गुल होने पर जनरेटर भी. पर पुस्तकालय को संचालित करने वाले कर्मियों के नहीं रहने से अच्छी-अच्छी पुस्तकों की उपलब्धता रहने के बावजूद वह पाठकों के हाथों तक नहीं पहुंच पा रही.
दरअसल यहां 1988 से ही लाइब्रेरियन का पद खाली है. 1988 में नीलकंठ झा यहां के लाइब्रेरियन हुआ करते थे, उनके सेवानिवृत्त होने के बाद आज तक दूसरा लाइब्रेरियन नहीं आया. 1995 में शाॅर्टर महेंद्र लाल भी यहां से रिटायर कर गये. माली और दफ्तरी का भी पद रिक्त ही है. नाइट गार्ड के रूम में महेश हेंब्रम व आदेशपाल के रूप में दीनु राउत यहां कार्यरत हैं. कई साल तक तो इन्हीं दोनों ने पुस्तकालय को किसी तरह चलाया.
पुस्तक खोज लीजिए, तब होगा इश्यू
दरअसल पुस्तकालय में कैटलाॅगिंग व्यवस्था मुकम्मल नहीं रहने की वजह से पुस्तक प्रेमियों को यहां खुद ही पुस्तक ढूंढना पड़ता है. आपनी मनचाही पुस्तक ढूंढ ली, तब तो आपको पुस्तक इश्यू कर दी जायेगी, लेकिन नहीं खोज सके, तो पुस्तक पुस्तकालय कर्मी उपलब्ध करा पाने में असमर्थता जता देते हैं.
कुछ महीने से प्रतिनियुक्त कर्मी मनोज दास अपनी परेशानी बयां करते हैं. वे मानते हैं कि वे पुस्तकालय के बारे में जानकारी नहीं रखते. लिहाजा उनकी भूमिका महज केयर टेकर सी रह गयी है. वे कैटलागिंग नहीं कर पा रहे. जो पुस्तकें आती है, उसकी स्टॉक रजिस्टर में इंट्री करते हैं. कहते हैं हर माह अच्छी-खासी संख्या में पुस्तकें इस लाइब्रेरी में पहुंचती है.
संसाधन सभी उपलब्ध है मगर सही संचालन की जरूरत : पाठक
बुक इश्यू सही ढंग से नहीं हो पाने की वजह से इस पुस्तकालय का उपयोग पुस्तक प्रेमी कम ही कर पाते हैं, पर प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी में जुटे युवाओं के लिए इसका रीडिंग रूम एक वरदान साबित हो रहा है. इस तरह की तैयारी से संबंधित पुस्तकें, अखबार तो यहां उपलब्ध होता ही है,
अच्छा वातावरण भी मिल जाता है. बिजली-पानी की सुविधा भी है. युवा कहते हैं कि एसी तो लगवाये गये हैं, पर उसे चलाया जाता, तो इसकी उपयोगिता सुनिश्चित होती. स्टेबलाइजर की कमी से एसी चल नहीं पाते. यहां आने वाले उज्ज्वल, गौरव, विजय, विवेक व विकास ने बताया कि संसाधन यहां सब कुछ है, केवल प्रबंधन में सुधार की जरूरत है.
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