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नौकरी के अच्छे अवसरों को छोड़ खेती कर रहे हैं दो भाई
आनंद जायसवाल दुमका : लाखों खर्च कर होटल मैनेजमेंट और बीटेक की पढ़ाई करने के बाद बड़े शहरों में बेहतर कैरियर बनाने का मौका मिलता है. कुछ लोग कैरियर के पीछे भागते हैं और कुछ लोग धारा के विपरीत बड़ा कैरियर छोड़ कर नयी लीक पकड़ लेते हैं. झारखंड की उपराजधानी दुमका के आसनसोल गांव […]
आनंद जायसवाल
दुमका : लाखों खर्च कर होटल मैनेजमेंट और बीटेक की पढ़ाई करने के बाद बड़े शहरों में बेहतर कैरियर बनाने का मौका मिलता है. कुछ लोग कैरियर के पीछे भागते हैं और कुछ लोग धारा के विपरीत बड़ा कैरियर छोड़ कर नयी लीक पकड़ लेते हैं. झारखंड की उपराजधानी दुमका के आसनसोल गांव के रहनेवाले गिरीश लाल वैद्य और सुमित्रा देवी के दो बेटों और इन दोनों के एक दोस्त यही राह पकड़ी है. गिरीश के बड़े बेटे हैं संजीत वैद्य. संजीत ने होटल मैनेजमेंट किया है.
आइटीसी ग्रुप के होटल में नौकरी मिली. संजीत ने कुछ दिनों तक नौकरी की, लेकिन मिट्टी से ऐसा लगाव हुआ कि नौकरी छोटी लगने लगी. गिरीश के मंझले बेटे मनोजीत कुमार वैद्य ने भोपाल से बीटेक किया. नौकरी मिली, लेकिन गांव मानो इन्हें बुला रहा हो. पिता के साथ खेती-बाड़ी करने की सोची. दोनों भाइयों ने आपस में चर्चा की और गांव लौटने का इरादा कर लिया.
गांव लौटे, तो कुछ लोगों ने मजाक उड़ाया. कहा कि खेतों में ही पसीना बहाना था, तो इतना पढ़ने-लिखने की क्या जरूरत थी. इन्होंने किसी की बात पर ध्यान नहीं दिया. जो इरादा किया था, उस ओर कदम बढ़ा दिया. दुमका के हवाई अड्डे के पास पिता की 34 बीघा जमीन है. इसी के पास कुरुवा पहाड़ में वाटर ट्रीटमेंट प्लांट है, जहां शहर को जलापूर्ति के लिए पानी का फिल्टरेशन होता है. इस प्लांट से पिछले दो-तीन साल से यूं ही पानी बह रहा था.
दोनों भाइयों ने बुद्धि लगायी. बेकार बहनेवाले पानी को सौगात मान लिया और उसे अपने खेतों की ओर डायवर्ट कर दिया. सब्जी उगाना शुरू किया. कद्दू, करैला, खीरा, साग, टमाटर, झींगा, नेनुआ और भिंडी की खेती शुरू की. शुरुआती दो महीने में ही 25-30 हजार रुपये की आमदनी हुई. मत्स्य विभाग से अनुदान पर तालाब लिया.अब इसी तालाब में बेकार बहते जल को संरक्षित कर रहे हैं. इस तालाब में वे मछली पालन करना चाहते हैं, जिससे आनेवाले दिनों में अच्छी-खासी आमदनी होगी.
हमें न नौकरी छोड़ने का मलाल है, न बड़ा शहर छोड़ने का. खेती-बारी में आमदनी नहीं होती, तो उनके पिता अपने तीनों बेटे को इतने महंगे कोर्स कैसे करा पाते. हां, कृषि में मेहनत अधिक है. हमलोग तकनीक आधारित खेती करेंगे. जो ज्ञान अर्जित किया है, उसका बेहतर प्रबंधन कर हम उत्पादन बढ़ायेंगे.
संजीत वैद्य, होटल मैनेजमेंट
जरूरी नहीं कि हम नौकरी करते, तो बेहतर स्थिति में ही होते. खेती के जरिये भी अच्छा मुकाम हासिल कर सकते हैं. गांववालों की तरह ही हमारे माता-पिता को भी बुरा लगा, जब हम पहली बार खेत में उतरे. हमारी मेहनत से उन्हें हमारे इरादे पर भरोसा हुआ. हमारे साथी रामकृष्ण मनीष, जो इंजीनियर हैं, भी हमारे साथ हैं.
मनोजीत वैद्य, बीटेक
मनोजीत हमारा मित्र है, इन दोनों भाईयों ने जो योजना बनायी, उससे मैं बहुत प्रभावित हुआ. इसलिए मैंने भी इनका साथ देने का फैसला किया. खेती करने की इच्छा मेरी भी रही है. चाहते हैं कि एक अनोखी मिसाल पेश करें. हमारा उद्देश्य यह संदेश देना भी है कि पढ़ी-लिखी युवा पीढ़ी भी खेती कर भविष्य संवार सकते हैं.
रामकृष्ण मनीष, इंजीनियर
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