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कानगोई उपस्वास्थ्य केंद्र की बदहाली – अस्पताल में मवेशियों का बसेरा———-फोटो : 23 जाम 01 जर्जर कानगोई उपस्वास्थ्य केंद्र, 08 उपस्वास्थ्य केंद्र की खिड़की से झांकता गोबर का उपला, 09 उपस्वाथ्य केंद्र की टूटती छतप्रतिनिधि, मिहिजामरामुखटाल स्थित छोटी पहाड़ी की तराई में बने कानगोई उपस्वास्थ्य केंद्र एक तरह से खटाल में तब्दील हो चुका है. […]

कानगोई उपस्वास्थ्य केंद्र की बदहाली – अस्पताल में मवेशियों का बसेरा———-फोटो : 23 जाम 01 जर्जर कानगोई उपस्वास्थ्य केंद्र, 08 उपस्वास्थ्य केंद्र की खिड़की से झांकता गोबर का उपला, 09 उपस्वाथ्य केंद्र की टूटती छतप्रतिनिधि, मिहिजामरामुखटाल स्थित छोटी पहाड़ी की तराई में बने कानगोई उपस्वास्थ्य केंद्र एक तरह से खटाल में तब्दील हो चुका है. गोबर के उपले, मवेशियों के मलमूत्र, कमरे की शोभा बढ़ा रहे हैं. स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर करने तथा आम लोगों को त्वरित राहत पहुंचाने के लिए केंद्र तथा राज्य सरकार करोड़ों रुपये बजट में बहा रही है, लेकिन क्या कारण है कि धरातल पर इसका लाभ लोगों को रत्ती भर भी नसीब नहीं हो रहा है. बावजूद इसके बेहतर स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराने और लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने के वादे दिन रात किये जा रहे हैं, लेकिन लोगों की दशा स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति आज भी नहीं सुधरी है. बढ़ईपाड़ा और रामुखटाल के बीच स्थित कानगोई उपस्वास्थ्य केंद्र की दशा वास्तविकता अलग ही बयां कर रही है. रख -रखाव व देख भाल के अभाव में पहले से मौजूद संसाधन और व्यवस्था धीरे-धीरे चैपट हो गयी.दर्जनों छोटे बड़े खटालों के बीच स्थित इस केंद्र का भवन जर्जर हालत में है. भीतर के कई कमरे का छत टूट रहा है. कई कमरों में खिड़की दरवाजे गायब हैं. कई कमरों में चारागाह बना हुआ है तो कई कमरों में गोयठ रखा गया है. भवन के बाहर के केंद्र का बोर्ड लगा हुआ है जो कुछ लिखा है तो कुछ मिट चुका है. बोर्ड अगर पूरी तरह मिट जाय तो खुद स्वास्थ्य कर्मियोें को भी शायद केंद्र कहीं नजर आ जाय या केंद्र का कोई अवशेष. देखने मात्र से किसी तबेले से कम नहीं लगता है ये केंद्र.केंद्र के आस -पास हैंडपम्प से पानी भर रही कुछ महिलाओं और बच्चों ने बताया कि केंद्र अक्सर बंद ही रहता है. एक एएनएम है जो कभी कभार हाजरी देने आती है. थोड़ी देर बैठती है और चली जाती है. जब लोगों से पूछा गया कि कोई इलाज भी होता है. यहां इस पर लोगों ने कहा कि बाबू कोई दवाइये नहीं है और न कोई व्यवस्था तो का इलाज होगा. ऐसी व्यवस्था पर उच्च अधिकारियों का बयान भी रटा- रटाया ही रहता है कि देखते है, पता नहीं है, दिखवाते हैं, व्यवस्था सुधार ली जायेगी, लेकिन कब यह कोई नहीं जानता बस पल्ला झाड़ते रहे हैं.

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