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मनरेगा: हर पंचायत में 100 दिन रोजगार का दावा हवा-हवाई, मजदूरों का जॉब कार्ड बिचौलिये के पास

धनबाद: महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत हर पंचायत में कम से कम एक सौ मजदूरों को प्रति दिन काम देने का सरकारी एजेंसियों का दावा हवा-हवाई साबित हो रहा है. यहां मजदूरों का जॉब कार्ड तक कार्डधारियों की बजाय बिचौलिया रख रहे हैं. मजदूरों को काम नहीं मिलता. कागज पर मजदूरी […]

धनबाद: महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत हर पंचायत में कम से कम एक सौ मजदूरों को प्रति दिन काम देने का सरकारी एजेंसियों का दावा हवा-हवाई साबित हो रहा है. यहां मजदूरों का जॉब कार्ड तक कार्डधारियों की बजाय बिचौलिया रख रहे हैं. मजदूरों को काम नहीं मिलता. कागज पर मजदूरी का भुगतान हो जा रहा है.
जमीनी हकीकत बिल्कुल अलग : गोविंदपुर प्रखंड के उदयपुर पंचायत के हुचुकटांड़ गांव के मजदूरों के अनुसार उन लोगों को पिछले एक वर्ष से मनरेगा के तहत कोई काम नहीं मिला है. यहां रहने वाले सभी परिवार बीपीएल श्रेणी के हैं. लेकिन मनरेगा का जॉबकार्ड केवल 25 लोगों के पास है. मजदूरों के अनुसार उन सबका जॉब कार्ड भी उदयपुर पंचायत के एक बिचौलिये ने ले रखा है. उनलोगों को अंतिम बार मनरेगा से काम वर्ष 2016 में बारिश से पहले मिला था. यानी जून 2016 में डोभा खुदाई के दौरान. सरकार का दावा है कि हर जगह मजदूरों को मांग के अनुरूप काम दिया जा रहा है. जबकि जमीनी हकीकत बिल्कुल अलग है. सूत्रों की मानें तो यही हालत गोविंदपुर प्रखंड की कई पंचायतों की है.
कैसे हो रहा घपला : मजदूरों से जॉब कार्ड बिचौलिया ले कर रख ले रहे हैं. मनरेगा की योजनाओं का काम मशीन से करा लिया जाता है. मास्टर रोल मजदूरों के नाम से भर दिया जाता है. मजदूरों को मिलने वाली मजदूरी में से 30 रुपये प्रति मजदूर मेट (सरदार) को दिया जाता है. बाकी पैसे बिचौलिया, पंचायत सेवक व संबंधित अधिकारी बांट लेते हैं. एक मजदूर को 167 रुपये प्रति दिन मजदूरी मिलती है. इसी हिसाब से एमआइएस इंट्री भी की जाती है.

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