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गड़बड़झाला: रसीद झारखंड की, डीजल बंगाल का
धनबाद: गड़बड़ी और घोटाला से मानो बीसीसीएल में कार्यरत आउटसोर्सिंग कंपनियों का चोली-दामन का रिश्ता कायम हो चुका है. आउटसोर्सिंग कंपनियों द्वारा डीजल खरीददारी के दौरान राज्य सरकार के लाखों-करोड़ों रुपये के राजस्व की चोरी का मामला प्रकाश में आया है. आउटसोर्सिंग कंपनियां डीजल की खरीदारी झारखंड व धनबाद के पेट्रोल पंपों से करने के […]
धनबाद: गड़बड़ी और घोटाला से मानो बीसीसीएल में कार्यरत आउटसोर्सिंग कंपनियों का चोली-दामन का रिश्ता कायम हो चुका है. आउटसोर्सिंग कंपनियों द्वारा डीजल खरीददारी के दौरान राज्य सरकार के लाखों-करोड़ों रुपये के राजस्व की चोरी का मामला प्रकाश में आया है. आउटसोर्सिंग कंपनियां डीजल की खरीदारी झारखंड व धनबाद के पेट्रोल पंपों से करने के बजाय पश्चिम बंगाल के पेट्रोल पंपों से कर रही हैं और लोकल पेट्रोल पंपों के डीजल का रेट सर्टिफिकेट जमा कर बीसीसीएल से भुगतान उठा रही हैं.
डीजल खरीदारी का क्या है प्रावधान : बताते हैं कि एनआइटी की शर्त के मुताबिक बीसीसीएल में कार्यरत आउटसोर्सिंग कंपनियों को अपने साइडिंग के पास वाले पेट्रोल पंप से ही डीजल की खरीदारी करनी है. लोकल पेट्रोल पंप से खरीदारी किये गये डीजल के बिल व रेट सर्टिफिकेट जमा करने के पश्चात ही आउटसोर्सिंग कंपनियों को डीजल के बिल का भुगतान बीसीसीएल द्वारा किया जाता है. बावजूद इसके बीसीसीएल में कार्यरत कई आउटसोर्सिंग कंपनियां पश्चिम बंगाल से डीजल की खरीदारी कर लोकल पेट्रोल पंप का फर्जी बिल व रेट सर्टिफिकेट जमा कर डीजल के बिल का भुगतान उठा रही हैं.
सी-फॉर्म का इस्तेमाल कर 12.5 प्रतिशत कम रेट पर होती है डीजल की खरीदारी : डीजल की खरीदारी के लिए आउटसोर्सिंग कंपनियां धड़ल्ले से सी-फॉर्म का इस्तेमाल करती हैं. इससे उन्हें 14.5 प्रतिशत टैक्स के बजाय दो प्रतिशत का ही टैक्स लगता है. इस तरह सीधे तौर पर झारखंड सरकार के 12.5 प्रतिशत राजस्व की चोरी होती है. दूसरी तरफ आउटसोर्सिंग कंपनियां बीसीसीएल में जो बिल जमा करती हैं, वह 14.5 प्रतिशत का होता है. दो प्रतिशत टैक्स देकर खरीद किये गये डीजल का 12.5 प्रतिशत अधिक टैक्स का पैसा बीसीसीएल से उठा लिया जाता है.
ऐसे हो सकता है गड़बड़ी का खुलासा
आधिकारिक सूत्रों की माने तो बीसीसीएल में कार्यरत आउटसोर्सिंग कंपनियां के बैलेंस शीट की जांच होने पर इस गड़बड़ी का खुलासा हो सकता है. साथ ही कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आ सकते हैं. कारण बैलेंस शीट में आउटसोर्सिंग कंपनियों द्वारा सी-फॉर्म पर पश्चिम बंगाल से डीजल खरीदारी में हुए खर्च का सही विवरण दिया जाता है, जबकि बीसीसीएल से लोकल पंप से बनाये गये फर्जी डीजल खरीदारी के बिल जमा कर भुगतान उठाया जाता है. दोनों फाइलों की सही तरह से जांच करे तो आउटसोर्सिंग कंपनियों द्वारा की जा रही गड़बड़ी का खुलासा हो सकता है.
आउटसोर्सिंग कंपनियों द्वारा प्रतिमाह बीसीसीएल में जमा डीजल के बिल में लगाये गये रेट सर्टिफिकेट की जांच करने पर पता चलेगा कि जिन-जिन पेट्रोल पंपों का रेट सर्टिफिकेट उनके द्वारा जमा किया गया है, उन पेट्रोल पंपों से डीजल की खरीदारी नहीं की गयी है. एनआइटी के मुताबिक जिस पेट्रोल पंप का रेट सर्टिफिकेट जमा होता है, डीजल की खरीदारी उसी पंप से होनी चाहिए. जिन पेट्रोल पंपों का रेट सर्टिफिकेट जमा किया जाता है, उन पंपों के संचालकों से पूछताछ में भी मामले का पूरा उद्भेदन हो जायेगा.
डीजल की खरीदारी पश्चिम बंगाल से क्यों?
बताते है कि जो समान जिस राज्य में नहीं बनता है और न ही उपलब्ध हो, उसी समान की खरीदारी दूसरे राज्यों से करने के लिए सी-फॉर्म का इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन जब डीजल झारखंड व धनबाद में आता है और उपलब्ध भी है तो इसकी खरीदारी पश्चिम बंगाल से क्यों? आधिकारिक सूत्रों की माने तो आउटसोर्सिंग कंपनियां सेल्स टैक्स विभाग के अधिकारियों के साथ सांठगांठ कर सी-फॉर्म निर्गत करा लेती हैं. सी-फॉर्म पर डीजल की खरीदारी बंगाल से करने पर आउटसोर्सिंग कंपनियों को 14.5 प्रतिशत के बजाय दो प्रतिशत टैक्स ही देना पड़ता है.
फिक्स होता है डीजल का रेट : बताते हैं कि बीसीसीएल में कार्यरत आउटसोर्सिंग कंपनियों के लिए डीजल के लिए रेट एनआइटी में फिक्स होता है. डीजल का रेट बढ़ने व घटने की दशा में बीसीसीएल प्रबंधन रेट सर्टिफिकेट के आधार पर ही डीजल के बिल का भुगतान आउटसोर्सिंग कंपनियों को करती है.
कोयला मंत्री को पत्र
बीसीसीएल में कार्यरत आउटसोर्सिंग कंपनियों की ओर से डीजल खरीदारी में की जा रही गड़बड़ी को लेकर औरंगाबाद के सांसद सुशील कुमार सिंह ने कोयला मंत्री पीयूष गोयल को पत्र लिखा है. सांसद श्री सिंह के पत्र में निम्नलिखित आउटसोर्सिंग कंपनियों पर डीजल खरीद में गड़बड़ी करने की बात कही गयी है.
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