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छह माह की कड़ी मेहनत बोलती है प्रतिमाओं में
धनबाद: दुर्गा पूजा में साज-सज्जा के अलावा सबका ध्यान प्रतिमाओं पर रहता है. प्रतिमाएं अच्छी बनी तो लोग प्रशंसा करते नहीं थकते हैं. हर पूजा समिति चाहती है कि उनके यहां की प्रतिमा सबसे अच्छी हो. धनबाद में कई मूर्तिकार हैं. लुबी सर्कुलर रोड के दुलाल पाल की प्रतिमाओं का अलग स्थान है. उनकी बनायी […]
धनबाद: दुर्गा पूजा में साज-सज्जा के अलावा सबका ध्यान प्रतिमाओं पर रहता है. प्रतिमाएं अच्छी बनी तो लोग प्रशंसा करते नहीं थकते हैं. हर पूजा समिति चाहती है कि उनके यहां की प्रतिमा सबसे अच्छी हो. धनबाद में कई मूर्तिकार हैं. लुबी सर्कुलर रोड के दुलाल पाल की प्रतिमाओं का अलग स्थान है. उनकी बनायी प्रतिमा न केवल धनबाद बल्कि झारखंड के दूसरे जिलों और यहां तक कि बिहार तक जाती है.
दुलाल पाल बताते हैं कि उनके पूर्वज वर्ष 1949 में बांग्लादेश से धनबाद आये थे. दादा ने इसी स्थान पर मूर्ति बनाने का कारोबार शुरू किया. उसके बाद पिता सीता नाथ पाल ने कई वर्षों तक मूर्ति बनायी. लेकिन अचानक पिताजी कहीं चले गये और दुलाल पाल अकेले अपनी मां के साथ रहने लगे. बचपन में पिता के जाने के बाद उनके पास पिता से मिला कला और प्रतिमाएं बनाने का सांचा था. दुलाल पाल ने पुश्तैनी काम करना शुरू कर दिया. तब से अब तक उन्होंने अनगिनत प्रतिमाएं बनायीं. आज वह जाना-पहचाना नाम हैं.
महंगी हो गयी है मिट्टी
दुलाल पाल ने बताया कि मिट्टी बहुत महंगी हो गयी है. प्रतिमा निर्माण के लिए प. बंगाल के नवद्वीप स्थित गंगा और डायमंड हर्बर से मिट्टी मंगवायी जाती है. पहले मिट्टी दुर्गापुर आती है और उसके बाद उसे धनबाद लाया जाता है. एक ट्रक मिट्टी लाने में लगभग 25 हजार रुपये खर्च हो जाते हैं. दोनों स्थानों की मिट्टी अलग-अलग तरह के काम में आते हैं. गंगा नदी की मिट्टी का इस्तेमाल प्रतिमा के शरीर व हाथ बनाने में किया जाता है. वहीं डायमंड हर्बर की मिट्टी का इस्तेमाल प्रतिमा का चेहरा, अंगुली व जेवर बनाने में किया जाता है. कोलकाता से प्रतिमा के लिए जेवर, बाल, साड़ी व अन्य सामान मंगाये जाते हैं. सहयोगी कारीगर भी बंगाल से आते हैं, जो छह माह से लगातार काम करते हैं. लेकिन लोग प्रतिमाओं के लिए उचित दाम देने से कतराते हैं. इस वर्ष उचित कीमत नहीं देने के कारण उन्होंने दर्जनों पूजा समितियों को लौटा दिया.
10 हजार से एक लाख तक की प्रतिमा
दुलाल पाल ने बताया कि इस वर्ष उन्होंने लगभग 40 से 50 प्रतिमा बनायी है. इनकी कीमत 10 हजार रुपये से एक लाख तक है. सरायढेला, झरिया, बरही, कोडरमा की प्रतिमाएं यहीं बनी है. पिछले तीन साल से बिहार के बिहार शरीफ के पुल बाजार में होने वाली दुर्गा पूजा की मूर्ति यहीं से जा रही है. इसके लिए खास तौर से दुलाल को बिहारशरीफ जाना पड़ा. आग जलाकर सुखानी पड़ी प्रतिमा: श्री पाल ने बताया कि इस बार ज्यादा बारिश होने से प्रतिमा निर्माण में काफी परेशानी हुई. पिछले छह माह से दुर्गा की प्रतिमा बनाने का काम दिन-रात चल रहा है. पिछले दो माह में हुई बारिश से प्रतिमा को सुखाने में काफी परेशानी हुई. इसके लिए आग तक जलानी पड़ी. प्रतिमा गढ़ने में 15 कारीगर दिन रात मेहनत कर रहे हैं. दुलाल का कहना है कि धनबाद में मूर्तिकारों को बहुत परेशानी है. आस-पास के लोग भी परेशान करते हैं. अगर स्थिति नहीं बदली तो कुछ वर्ष बाद धनबाद में मूर्तिकार नहीं बचेंगे.लोगों को बाहर से प्रतिमाएं लानी पड़ेगी.
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