धनबाद : व्यक्ति जब महान कार्य करता है, उसकी महानता स्वयं प्रकट होती है. महान व्यक्ति विनम्र होता है. संत जन परमात्मा की महिमा का बखान करते हैं. परमात्मा लीला करते हैं और जीव कर्म करता है.
लीला देखने के लिए और कर्म करने के लिए होता है. लीला वह है जो हमें परमात्मा में लीन कर दे. प्रभु से हम दूर हैं लेकिन जब कथा सुनते हैं ईश्वर में लीन हो जाते हैं. हर इनसान के साथ ईश्वर है सबको उसकी अनुभूति नहीं होती. जो ईश्वर की संगति करता है कभी पतन की राह नहीं चलता.
हमेशा ऊंचाइयों पर चढ़ते जाता है. उक्त बातें साध्वी सुश्री पद्महस्ता भारती ने गोल्फ मैदान में श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के पांचवें दिन कही.
संसार को पालने में झुलाते हैं प्रभु : कान्हा को मइया यशोदा पालना पर झुला रही है. प्रभु मंद-मंद मुस्कुरा रहे है. जो संसार को झूला झुलाते हैं उस प्रभु को मइया झुला रही हैं. प्रभु को जो जिस भाव से भजता है प्रभु उसे उसी रूप में प्राप्त होते हैं.
जो पवित्र नहीं, वह है पूतना : जब कंस को जानकारी हुई गोकुल में नन्हें बालक हैं तो उसने पूतना को बालक के वध के लिए भेजा. पूतना बरसाने की गोपी बन गोकुल पहुंचती है. और यशोदा को मीठी बातों में लेकर कान्हा को धरती मार्ग से आकाश मार्ग की ओर ले जाती है. ज्यों ही कान्हा को स्तनपान कराना शुरू करती है प्रभु स्तनपान के सहारे पूतना का प्राण हरण करते है. पूतना का अर्थ है पूत माने पवित्र, ना माने नहीं जो पवित्र नही उसे कहते हैं पूतना.
धर्म है संस्कृति का आधार : भारतीय संस्कृति का आधार धर्म रहा है. हमने अपनी संस्कृति को बिसरा दिया है. रिश्तों की कोई गरिमा नहीं रह गयी. है. हमारा समाज कलंकित हो गया है. हम मानव परमात्मा के अंश हैं. हमें ब्रह्मज्ञान की जरूरत है.
सद्गुरु कराते हैं भवसागर पार : शास्त्र कहता है ईश्वर को देखा जा सकता है. जीवात्मा कहता है नहीं देखा जा सकता. प्रभु का दर्शन अंदर घट में होता है. जीवन का कल्याण प्रकाश में होता है अंधकार में नहीं. संत शरण में प्रकाश की प्राप्ति होती है.
संत ऐसा जो अपने ब्रह्मज्ञान से हमारी दृष्टि खोल दे. जीवन में सद्गुरु को धारण करना जरूरी है. सद्गुरु भव सागर पार कराते हैं.