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गोविंदपुर. डेढ़ सौ खर्च कर मुखिया बने थे पानुल अंसारीफोटो मेल में गोविंदपुर. एकीकृत बिहार में 1978 में हुए पंचायत चुनाव में गोड़तोपा-नवाटांड पंचायत से बांधडीह निवासी 75 वर्षीय पानुल अंसारी डेढ़ सौ रुपया खर्च कर मुखिया बने थे. उन्होंने चुनाव शंभु मियां को हराया था. वह 32 वर्षों तक मुखिया बने रहे. तब गोड़तोपा […]

गोविंदपुर. डेढ़ सौ खर्च कर मुखिया बने थे पानुल अंसारीफोटो मेल में गोविंदपुर. एकीकृत बिहार में 1978 में हुए पंचायत चुनाव में गोड़तोपा-नवाटांड पंचायत से बांधडीह निवासी 75 वर्षीय पानुल अंसारी डेढ़ सौ रुपया खर्च कर मुखिया बने थे. उन्होंने चुनाव शंभु मियां को हराया था. वह 32 वर्षों तक मुखिया बने रहे. तब गोड़तोपा नवाटांड पंचायत का क्षेत्र काफी बड़ा था. यह पंचायत फिलहाल गोड़तोपा, बड़ा नवाटांड एवं करमाटांड़ बंटा हुआ है. झारखंड बनने के बाद वर्ष 2010 में वह पुन: मुखिया बनना चाहते थे. परंतु गोड़तोपा पंचायत तब महिला के लिए आरक्षित कर दिया गया. और वह चाह कर भी चुनाव नहीं लड़ सके. इस बार मुखिया पद अनारक्षित है, लेकिन वह अब चुनाव नहीं लड़ना चाहते हैं. श्री अंसारी ने बताया कि पहले बीडीओ ऑफिस में दरखास्त देने पर तुरंत काम हो जाता था. अधिकारी-कर्मचारी तब मुखिया से डरते थे. मुखिया की कद्र होती थी. तब ईमानदारी का दौर था. गांव घर के मामले पंचायत में ही सलट जाते थे. अभी तो बीडीओ सीओ मुखिया को अपने पीछे पीछे फाइल लेकर दौड़ाते हैं. हर जगह भ्रष्टाचार है. जनप्रतिनिधियों के स्तर में गिरावट आ गयी है. झारखंड में पंचायत को अभी तक पूर्ण अधिकार नहीं मिला है. उन्होंने इसके लिए जनप्रतिनिधियों को एकजुट होकर सरकार से लड़ने की अपील की.

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