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‘म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन’ को ‘करप्शन कॉरपोरेशन’ बनाये रखनेवाले हैं दुखी

धनबाद. वर्षों पहले पढ़ी एक कहानी याद आती है. एक व्यक्ति पर संगीत सीखने का धुन सवार हुआ. कई जगहों पर उसने संगीत की शिक्षा ली. फिर उसे संगीत के एक बड़े आचार्य के संबंध में जानकारी मिली. खोजते-खोजते वह उस आचार्य के घर पहुंचा. आचार्य के घर के बाहर एक बोर्ड पर शुल्क के […]

धनबाद. वर्षों पहले पढ़ी एक कहानी याद आती है. एक व्यक्ति पर संगीत सीखने का धुन सवार हुआ. कई जगहों पर उसने संगीत की शिक्षा ली. फिर उसे संगीत के एक बड़े आचार्य के संबंध में जानकारी मिली. खोजते-खोजते वह उस आचार्य के घर पहुंचा. आचार्य के घर के बाहर एक बोर्ड पर शुल्क के बारे में लिखा था-‘‘जो लोग पहले से संगीत की किसी तरह की शिक्षा लिये हुए हैं, उन्हें संगीत सीखाने का शुल्क 2000 रुपये और जो लोग एकदम नये हैं, पहली बार संगीत की शिक्षा लेने आये हैं, उनका शुल्क 1000 रुपये.’’ वह व्यक्ति गुस्से से भर गया. अंदर आचार्य के पास गया.

अभिवादन के बाद उस व्यक्ति ने आचार्य से कहा-‘‘आप संगीत के महान साधक हैं. आपका बड़ा नाम है. आप न्याय प्रिय हैं, मगर एक अन्याय आप कर रहे हैं. संगीत की शिक्षा देने का जो शुल्क आपने निर्धारित किया है, वह अन्यायपूर्ण है. जो लोग पहले से संगीत सीखे हुए हैं, उनका शुल्क ज्यादा और जो नये हैं, उनका शुल्क कम, यह क्यों?’’ व्यक्ति की बातों पर आचार्य मुस्कुराये और बोले-‘‘यह अन्याय नहीं. असल में जिन लोगों ने पहले से संगीत की शिक्षा के नाम पर कचड़ा ज्ञान प्राप्त कर रखा है, उसे साफ करने में जो श्रम लगेगा उसके लिए 1000 रुपये का शुल्क निर्धारित है. फिर उन्हें सही संगीत की शिक्षा देने के लिए 1000 रुपये का शुल्क है. इसके विपरित जो नये हैं, उन्हें जो सीधे संगीत की शिक्षा देनी है, इसलिए उनका शुल्क 1000 रुपये है.’’

इस कहानी के साथ मेयर चंद्रशेखर अग्रवाल प्रभात खबर से बातचीत शुरू करते हैं. मेयर श्री अग्रवाल के सामने प्रभात खबर की ओर से कई सवाल रखे गये. मसलन 18 जून को बतौर मेयर धनबाद नगर निगम की कमान संभालने के बाद आप सिर्फ और सिर्फ घोषणाएं करते रहे हैं? ठोस काम अब भी धरातल पर नहीं दिख रहा? निगम क्षेत्र के विभिन्न इलाकों में गंदगी का अंबार लगा हुआ है? कोई बदलाव नहीं दिख रहा? ऐसे कई सवालों के जवाब में श्री अग्रवाल पहले ऊपर दी गयी कहानी सुनाते हैं और कहते हैं-‘‘बीते तीन महीने उस नारकीय व्यवस्था को सुधारने में गुजर गये, जो बीते पांच वर्षो में बने. और अब भी यह नहीं कह सकता कि पूर्व में बनी नारकीय व्यवस्था से निगम पूरी तरह मुक्त हो चुका है. और जब तक पूर्व की नारकीय व्यवस्था से पूरी तरह मुक्ति नहीं मिल जाती, तब तक बेहतरी की उम्मीद नहीं की जा सकती. हर तरफ भ्रष्टाचार, हर तरफ घोटाला, हर तरफ घूसखोरी. कोई संसाधन नहीं. कोई सिस्टम नहीं.’’
पांच वर्षों तक बने रहे दो निगम : श्री अग्रवाल कहते हैं-‘‘साल 2010 में नगर निगम बोर्ड का गठन होने के बावजूद लोग यह समझ ही नहीं पाये थे कि नगर निगम का अर्थ क्या है? अधिकारियों-बाबूओं-ठेकेदारों के कॉकस की केंद्रीकृत बंदरबांट ने नगर निगम यानी ‘म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन’ को ‘करप्शन’ का अड्डा बनाये रखा. इस तरह गुजरे पांच वर्षो में दो नगर निगम बन गये. एक निगम वह, जिसमें बुनियादी सुविधाओं से वंचित लोग थे, दूसरा अधिकारियों-बाबूओं-ठेकेदारों का निगम. निगम बनने के बावजूद सार्वजनिक जीवन में लोगों को ऐसी कोई बेहतरी नजर नहीं आयी, जिसकी वजह से वे निगम के वजूद को महसूस कर पायें. दूसरी तरह अधिकारियों, बाबूओं, ठेकेदारों का कॉकस अपनी जिम्मेवारियों और जवाबदेहियों से मुक्त निर्भय होकर लूट के खेल में लगा रहा.’’ श्री अग्रवाल कहते हैं-‘‘इतना तो तय है कि अब यह सब नहीं चलेगा. चाहें, इसके लिए मुङो कोई कीमत चुकानी पड़े. धनबाद नगर निगम क्षेत्र की जनता ने मुझ पर जो विश्वास जताया है, उन्हें मैं निराश नहीं होने दूंगा. और मैं सिर्फ और सिर्फ निगम क्षेत्र की जनता के प्रति जवाबदेह हूं. मेरी कार्यप्रणाली से वही लोग परेशान हैं, दुखी हैं, जो पूर्व की भ्रष्ट व नारकीय व्यवस्था को निजी स्वार्थ के लिए बनाये रखना चाहते हैं.’’

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