धनबाद: देश में ऊर्जा का सबसे बड़ा स्नेत है कोयला, लेकिन यह स्वच्छ ऊर्जा का स्नेत नहीं है. कोयला में राख (एस) की मात्र ज्यादा होने से इसके इस्तेमाल में काफी परेशानी होती है.
एनटीपीसी 44 हजार चार सौ मेगावाट बिजली का उत्पादन कर रहा है, जिसमें 43 हजार मेगावाट बिजली का उत्पादन कोयला व केवल चार हजार बिजली का उत्पादन गैस के माध्यम से किया जाता है. अगर कोयला को गैस के रूप में परिवर्तित कर लें तो बिजली उत्पादन में इसकी उपयोगिता बढ़ जायेगी. ये बातें एनटीपीसी के निदेशक (तकनीकी) एके झा ने कही. वह भारत में कोयला आधारित गैस उद्योग की चुनौतियों व विकल्प पर सोमवार को सिंफर के सामुदायिक केंद्र में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी को बतौर विशिष्ट अतिथि संबोधित कर रहे थे.
कहा कि आज पर्यावरण को लेकर बहुत सारे सवाल उठाये जा रहे हैं. लेकिन हमारी तकनीकी ऐसी होनी चाहिए, जिससे उत्पादित बिजली का कास्ट ऐसा हो कि ग्राहक बेङिाझक इस्तेमाल कर सकें. उन्होंने कहा कि कोयला में 40 प्रतिशत राख की मात्र होती है. ट्रांसपोर्टिग खर्च अत्यधिक पड़ता है. राख के निस्तारण के लिए जमीन व पानी का खर्च भी उठाना पड़ रहा है.
आइएसएम निदेशक ने कहा, कोयला का विकल्प नहीं
मुख्य अतिथि आइएसएम के निदेशक प्रो डीसी पाणिग्रही ने कहा कि 165 वर्ष पूर्व 1850 में 95 प्रतिशत आदमी व जानवरों की ताकत ऊर्जा का मुख्य स्नेत थी. आज कोयला का विकल्प नहीं है. 80 प्रतिशत कोयला, बाकी ऑयल व गैस से आज ऊर्जा मिल रही है. संगोष्ठी में सिंफर निदेशक डॉ एके सिन्हा ने कहा कि ऊर्जा के गुण को निकालने व उसकी गुणवत्ता को पहचानने का जरूरत है. डॉ एके सिंह ने कहा कि ऊर्जा की उपलब्धता हमेशा उपयोगी रही है. समाज के लिए स्वच्छ ऊर्जा के विकास का कार्य कई वैज्ञानिकों द्वारा किया जा रहा है. क्लीन कोल के इनीसिएटिव पर एक शोध किया गया है.