धनबाद: सरकारी महकमा में काम कराने के लिए अब अधिकारी से सीधे डील करने के बदले उनके एजेंट या वाहन चालक से बात करनी पड़ रही है. अधिकारी-कर्मी अब सीधे पैसा लेने की बजाय एजेंटों को जरिये डील कर रहे हैं. अब तो पुलिस वालों ने भी वसूली के लिए एजेंट रख लिया है.
केस स्टडी वन
कुछ समय पहले की बात है. जिले के एक प्रखंड में पदस्थापित सीडीपीओ की पहली पोस्टिंग थी. उन्होंने लेन-देन का कार्य अपने जीप चालक के जरिये शुरू किया. बाद में विवाद हुआ तो पहले वाहन चालक को हटाने की कोशिश की. चालक द्वारा बे नकाब करने की धमकी के बाद उक्त सीडीपीओ ने उक्त चालक को ही अपना जीवनसाथी बना लिया. अधिकारियों की मानें तो पूरे राज्य में ऐसे कई उदाहरण हैं. इन चालकों के जिम्मे ही आंगनबाड़ी केंद्रों से राशि वसूलने की जिम्मेवारी है.
केस स्टडी टू
जिले के जीटी रोड के एक प्रखंड में पदस्थापित बड़े हाकिम का वसूली एजेंट बने हुए हैं एक पूर्व पत्रकार. सारा लेन-देन इसी के जरिये करते हैं. अधिकांश बीडीओ, सीओ कार्यालय में पूरे दिन दलालों का मजमा लगा रहता है. हर काम की फीस बंधी हुई है. शाम में हिसाब-किताब होता है. इसमें निगरानी का भी डर नहीं होता. जाति, आय, आवासीय प्रमाणपत्र बनवाने से ले कर म्यूटेशन तक का कार्य इन दलालों के जरिये ही आम आदमी आसानी से करा सकते हैं. सबकी फीस बंधी हुई है. अब तो जिला मुख्यालय तक में प्रमाणपत्र आदि कार्य के लिए एजेंट घूमने लगे हैं.
पुलिस की वसूली भी एजेंट के हवाले
शहर के कई स्थानों पर दिन में वसूली के लिए पुलिस वालों ने डेली वेजेज पर आदमी रख लिया है. रांगाटांड़, बिरसा चौक में तो ट्रैफिक पुलिस के लिए वाहनों से राशि वसूलते इन एजेंटों को कभी भी देखा जा सकता है. सूत्रों के अनुसार निजी एजेंट या चालक के जरिये लेन-देन में कोई डर नहीं होता. इससे किसी बड़े अधिकारी की नजर पर नहीं चढ़ने का भी खतरा नहीं रहता.