बीआइएफआर से बाहर निकल चुके और पिछले चार वित्तीय वर्षो में 4156 करोड़ रुपये से अधिक का मुनाफा कमा चुके बीसीसीएल की श्रमिक कॉलोनियों की स्थिति बेहद चिंताजनक हैं. कंपनी के 80 प्रतिशत मजदूर व कर्मी ऐसे आवासों में रहते हैं, जिसमें रहना शायद जानवर भी पसंद नहीं करें. बीसीसीएल का शायद ही ऐसा कोई कोलियरी क्षेत्र है, जहां आवासों की स्थिति बेहतर है. कोलियरी क्षेत्रों की बात छोड़ दें, धनबाद शहर से सटे भूली इलाके में बीसीसीएल की कॉलोनियां भूतहा कॉलोनियां बनती जा रही हैं. कंपनी के सीएमडी टीके लाहिड़ी एक ओर जहां कंपनी का कोयला उत्पादन बढ़ाने और कंपनी को लाभकारी बनाने के अभियान में जुटे हुए हैं, वहीं उनकी कोशिश कर्मियों के जीवन स्तर को सुधारने की भी रही है. कंपनी कर्मियों की आवासीय समेत अन्य सुविधाओं पर हर साल बड़ी राशि खर्च की जाती है. यही नहीं अपने सामाजिक उत्तरदायित्वों के निर्वहन में भी कंपनी उच्च प्रबंधन का गंभीर रूख दिखता है. बावजूद इसके धनबाद जिले के कोलियरी क्षेत्रों में अजीब किस्म की तसवीर दिखती है. भ्रष्ट अधिकारियों और ठेकेदारों की एक जमात के कारण कागजों पर वेलफेयर के काम कर लाखों-करोड़ों के भुगतान उठा लिये जाते हैं. फिर सामने लालबाबू जैसे ठेकेदार आते हैं.
धनबाद: दीवारों के झड़ प्लास्टर. घिस चुकी ईंटों में जमा काई और उससे निकले पिपल के पेड़. घर में दरवाजा-खिड़की नहीं. छत से झरने की तरह पानी चूता है. सिलिंग का प्लास्टर गिरना आम बात है. जी हां, हम भूली स्थित बीसीसीएल की श्रमिक कॉलोनियों की बात कर रहे हैं. यदि आपने आवासों का कंकाल नहीं देखा है, तो, भूली चले जाइये, दिख जायेगा. भूली में बीसीसीएल के 6011 आवास हैं.
इनमें 90 प्रतिशत से अधिक आवासों की हालत खास्ता है. यहां रहनेवाले कुछ बीसीसीएलकर्मियों ने थक-हार कर अपने खर्च से आवास की थोड़ी-बहुत मरम्मत करायी है, ताकि किसी तरह रह सकें. भूली में रहनेवाले बीसीसीएलकर्मियों का कहना है कि बीटीए के पीएम साहब का तो दर्शन ही दुर्लभ है. कब आते हैं, कब जाते हैं, पता ही नहीं चलता. मजदूरों के काम पर भले ही बीटीए के अधिकारी व कर्मचारी सक्रिय न हो. पर रिटायर होनेवाले कर्मियों से आवास जमा लेने एव आवंटन करने के मामले में सक्रियता देखते ही बनती है. इस संबध में बीटीए के पी एम डा एके सिंह संर्पक करने पर कहा-‘‘व्यस्त हैं, अभी बता नहीं कर सकते.’’