झरिया: ‘साथी’ नामक एनजीओ द्वारा गोबर गैस प्लांट के निर्माण के नाम पर धोखाधड़ी कर 40,000 रुपये की ठगी करने और गोबर गैस प्लांट का निर्माण कार्य अधूरा छोड़ देने का एक मामला प्रकाश में आया है. इस संबंध में भुक्तभोगी भौंरा निवासी डॉ. रवींद्र कुमार सिंह ने उपायुक्त को पत्र लिख कर न्याय की गुहार लगायी है.
उपायुक्त को लिखे पत्र में डॉ. सिंह ने कहा है कि सितंबर, 2014 में ‘साथी’ नामधारी एक एनजीओ के सेक्रेटरी व गोमो निवासी अरविंद सिंह अपने एक मित्र प्रदीप कुमार पांडेय के साथ उनके आवास पर आये. दोनों ने डॉ सिंह को बताया कि उन दोनों ने ‘साथी’ नाम से एक एनजीओ का निबंधन कराया है और झारखंड सरकार की तरफ से धनबाद जिले भर में गोबर गैस प्लांट बनाकर तथा अनेकानेक प्रकार की किस्मों के बीज किसानों एवं बेरोजगारों के बीच वितरित कर कृषि व्यापार को प्रोमोट करने का कार्य कर रहे हैं.
पत्र में डॉ सिंह ने कहा है कि अरविंद सिंह ने उन्हें बताया कि झारखंड रिन्यूएवल एनर्जी डेवलपमेंट ऑथोरिटी एजेंसी’’ (जरेडा) के तहत उनकी संस्था ‘साथी’ को गोबर गैस प्लांट का निर्माण करने की अनुमति प्राप्त है. अरविंद सिंह ने यह भी बताया कि वैसे तो गोबर गैस प्लांट के निर्माण पर आने वाली कुल लागत (जिसको श्रमिक मजदूरी से लेकर तमाम मेटेरियल तथा ईंट, बालू, गिट्टी, सीमेंट, गैस डिलेवरी पाइप, उपर का छाजन, गैस चुल्हा इत्यादि शामिल है) का पूरा भुगतान ‘‘झारखंड रिन्यूएवल एनर्जी डेवलपमेंट ऑथोरिटी एजेंसी’’ द्वारा ‘साथी’ को होता है. ‘साथी’ द्वारा अब तक 150 से ज्यादा गोबर गैस प्लांट का निर्माण धनबाद जिले के विभिन्न इलाकों में किया जा चुका है. दिक्कत यही है कि भुगतान करने में सरकारी दफ्तरों की लालफीताशाही के कारण लागत की रकम प्राप्ति में विलंब होती है. इसलिए वे लोग मैटेरियल तथा ईंट, सिमेंट, बालू, गिट्टी और लेबर पेमेंट का पैसा लाभुक से लेते हैं और ‘‘झारखंड रिन्यूएवल एनर्जी डेवलपमेंट ऑथोरिटी एजेंसी’’ द्वारा भुगतान होने के बाद मैटेरियल की कीमत और लेबर पेमेंट की जो भी राशि होती है, उसे लाभुक को उनकी संस्था ‘साथी’ उपलब्ध करा देती है. लाभुक को सिर्फ 13 फीट व्यास का वृताकार गड्ढा खुदायी के लिए जमीन उपलब्ध करानी होती है और खुदायी का खर्च वहन करना पड़ता है. बाकी का खर्च एनजीओ उठाता है जोकि सरकार द्वारा संस्था को प्रतिभुगतेय होता है. डॉ. सिंह ने कहा है कि अरविंद सिंह ने अपने लैपटॉप के जरिये गोबर गैस प्लांट के अनेकानेक फायदे, खेती के आधुनिक तरीके से किसानों के रोजगार के अवसर एवं लाभ आदि के ढेरो सब्जबाग मुङो दिखाये.
पत्र में डॉ सिंह ने कहा है कि अरविंद सिंह की बातों से प्रभावित होकर वह गोबर गैस प्लांट लगाने को तैयार हो गये. दो दिन बाद ही अरविंद सिंह ने अपना एक आदमी भेज दिया. उसका नाम ‘जीवन’ बताया गया. जीवन ने डॉ सिंह के आवासीय प्रांगण में 13 फीट व्यास का एक वृताकार गड्ढा खोदने के लिए माफी कर दी और बताया कि इसकी गहरायी साढ़े तेरह फीट होनी चाहिए. जीवन ने कहा कि गड्ढा 10 दिनों में खोदवा दीजिए, 10 दिनों वह आयेगा. डॉ. सिंह ने बताया है कि लगभग 20 दिनों में जीवन के निर्देशानुसार गड्ढा काटा जा सका जिसके लिए तीन मजदूरों को प्रतिदिन 250 रुपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से डॉ. सिंह को 15000 रुपये का भुगतान करना पड़ा. गड्ढा खोदायी का काम पूरा होने के बाद चार नवंबर, 2014 को जीवन डॉ. सिंह के आवास पर आया और उसने तीन मजूदरों को काम पर बुलाने को कहा. चार नवंबर को ही मोबाइल पर डॉ. सिंह की बात अरविंद सिंह से हुई. अरविंद सिंह ने डॉ. सिंह से कहा कि ‘‘गोबर गैस प्लांट के निर्माण में थोड़ी भी चूक रहने से गैस तैयार नहीं होगा. इसके लिए एक नंबर का ईंटा, एक नंबर का सिमेंट, फाइन बालू एवं अन्य समानों की जरूरत पड़ती है. एन नंबर का मैटेरियल आप नहीं खरीद सकेंगे. जीवन को ऐसी सभी सामग्रियों की अच्छी परख है. अतएव आप करीब 40,000 (चालीस हजार) रुपये जीवन को दे दीजिए और उसके खानेपीने का भी बंदोबस्त अपनी तरफ से कर दीजिए . जो लेवर आप जीवन के हेल्फर के रूप में लगायेंगे उनका भी भुगतान आप अभी कर दीजिए. बाद में जब मुङो (श्री सिंह को) सरकार से भुगतान मिलेगा तब आपका हिसाब जोड़ कर आपकी रकम आपको वापस कर दूंगा.’’
पत्र में डॉ सिंह ने कहा है कि ‘मरता क्या न करता’ की स्थिति में उन्होंने अरविंद सिंह के कहे अनुसार 40,000 (चालीस हजार) रुपये नकद रूप में अरविंद सिंह के राजमिस्त्री जीवन के हाथों में सौंप दिया. जीवन ने पांच नवंबर 2014 से काम शुरू किया. जीवन ने दो ट्रैक्टर एक नंबर चिमनी भट्ठा ईंटा गिरवाया भी, जिसमें कुल 3000 अदद ईंटे थी. जीवन ने हिसाब दिया कि प्रति ट्रैक्टर 8,000 (यानी कुल 16,000) की ईंट है. जीवन ने पांच से आठ नवंबर के बीच गड्ढे में ईंट-सीमेंट की दीवार भी खड़ी की. फिर 9 नवंबर, 2014 को अचानक जीवन ने कहा कि उसके मालिक ने कहा है कि ‘‘गोमो आकर और जरूरी सामान एवं जुगाड़ लेकर भौंरा जाओ तब काम पूरा कर देना.’’ जीवन ने कहा कि वह कल यानी 10 नवंबर, 2014 को लौट आयेगा. डॉ. सिंह ने कहा है कि चूंकि जीवन ने उनके द्वारा दिये गये पैसे से दो ट्रक ईंट गिरवायी और गड्ढे में दीवार भी खड़ी की, इसलिए मुङो लगा ही नहीं कि कहीं कोई गड़बड़ी है. लेकिन 9 नवंबर को जीवन जो गया सो नहीं लौटा और न पैसे ही लौटाया. डॉ. सिंह ने उपायुक्त से ‘साथी’ नामक एनजीओ, उसके संचालक अरविंद सिंह एवं उनके कारिंदे जीवन के संबंध में जांच पड़ताल कराने और उनके 40,000 रुपये वापस दिलाने का आग्रह किया है.