धनबाद: माडा (खनिज क्षेत्र विकास प्राधिकार) संयुक्त कर्मचारी संघर्ष समिति ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखी है. इसमें माडा कर्मियों ने अपनी पीड़ा का जिक्र करते हुए एक तत्कालीन पदाधिकारी को सभी समस्याओं का कारण बताया है.
साथ ही उन्होंने राज्य सरकार की मंशा पर भी सवाल उठाये हैं. चिट्ठी में लिखा है कि करीब 3500 करोड़ की परिसंपत्ति, 1800 कुशल व दक्ष श्रम शक्ति, 750 करोड़ की देनदारी और तमाम आधारभूत संरचाओं के साथ करीब 100 वर्ष पुरानी संस्था अंतिम सांस ले रही है. राज्य के विशेष क्षेत्र कोयला खनन क्षेत्र व खनिज क्षेत्रों के सर्वागीण विकास, पेयजल, स्वास्थ्य, सफाई आदि के लिए इसका गठन हुआ था. इस तरह ग्रामीण और शहरी क्षेत्र से न होकर यह विशेष क्षेत्र से संबंधित है.
राज्य सरकार ने 74 वें संशोधन के तहत इसका विलय झारखंड नगरपालिका संशोधित विधेयक 2011 में नगर निकाय में कर दिया, जो अदूरदर्शिता, अव्यावहारिक व माडा अधिनियम के प्रतिकूल था. सरकार के एक वरीय पदाधिकारी के व्यक्तिगत कारणों व पूर्वाग्रह से ग्रसित होने से ऐसा हुआ. इसके बाद प्राधिकार कर्मी एकजुट हो स्वास्थ्य, सफाई, जलापूर्ति को रखें बहाल, मिल जुल कर बचाये प्राधिकार आंदोलन अप्रैल 2001 में शुरू हुआ और 26 अप्रैल को हड़ताल में बदल गया.
एक मई को समझौता हुआ, जिसमें मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी बना समस्याओं का हल होना था, लेकिन नगरपालिका संशोधित अधिनियम 2011 में माडा के अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न् खड़ा किया गया. फलत: कमेटी ने तमाम संचिका व कागजात माडा व नगर विकास विभाग को वापस कर दिये. विलय का निर्णय गलत था, जिससे सरकार भी अब सहमत है. सरकार भूल सुधार के क्रम में आरआरडीए को विलय से अलग कर चुकी है और माडा के लिए पुन: विकास आयुक्त की अध्यक्षता में एक हाई पावर कमेटी का गठन हुआ. इस कमेटी ने भी माना कि माडा का अस्तित्व बनाये रखना है, लेकिन समिति तत्काल समाधान नहीं निकाल पा रही है. इस तरह समझा जा सकता है कि सरकारी में इच्छाशक्ति का अभाव है, जिसका असर व दुष्प्रभाव कोयलांचल की 20 लाख आबादी, माडा कर्मी पर पड़ रहा है.
माडा संयुक्त कर्मचारी संघर्ष समिति के संयोजक देवेंद्र नाथ दुबे ने बताया कि प्रधानमंत्री को सोशल मीडिया के माध्यम से भी मामले से अवगत करायेंगे.