धनबाद. गिरिडीह सांसद रवींद्र कुमार पांडेय ने गुरुवार को लोकसभा में शून्यकाल के दौरान साक्षरता कर्मियों का मामला उठाया. कहा कि झारखंड में साक्षरता मिशन के तहत वर्ष 2000 से लोग जुड़े हैं. वर्तमान में इनकी संख्या 50,000 हजार से भी अधिक है. इन्हें वर्ष 2014 से 2,000 रुपया प्रति महीना मानदेय मिल रहा है, […]
धनबाद. गिरिडीह सांसद रवींद्र कुमार पांडेय ने गुरुवार को लोकसभा में शून्यकाल के दौरान साक्षरता कर्मियों का मामला उठाया. कहा कि झारखंड में साक्षरता मिशन के तहत वर्ष 2000 से लोग जुड़े हैं. वर्तमान में इनकी संख्या 50,000 हजार से भी अधिक है. इन्हें वर्ष 2014 से 2,000 रुपया प्रति महीना मानदेय मिल रहा है, जो कि एक मनरेगा मजदूर के बराबर भी नहीं है.
साक्षरता मिशन में पुरुषों के साथ महिलाओं की भी भागीदारी है. यह लोगों को साक्षर करने के अलावा प्रत्येक पंचायत में जनगणना, मतदाता सूची पुनरीक्षण, टीकाकरण, स्वच्छता मिशन एवं कैशलेस प्रशिक्षण का भी कार्य करते हैं. बावजूद इन्हें आज तक पहचान-पत्र, चिकित्सा सुविधा, ड्रेस कोड आदि नहीं मिली है और न ही इन्हें चिकित्सा भत्ता ही मिलता है.
इनका मानदेय भी छह महीने से दो वर्ष तक बकाया रहता है. गिरिडीह संसदीय क्षेत्र के गिरिडीह जिले मेें 24, धनबाद जिले में 26 एवं बोकारो जिले में 9 महीनों से साक्षरताकर्मी प्रेरकों को मानदेय भुगतान नहीं हुआ है. प्रखंड एवं जिला स्तर पर कार्यरत बीपीएम कर्मियों का भी वेतन भुगतान कई महीनों से नहीं हुआ है. इससे ये सभी भुखमरी के कगार पर हैं. सभी साक्षरताकर्मियों को बेरोजगारी की भी चिंता भी सता रही है. सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इस कार्यक्रम को राज्य सरकार द्वारा दिसंबर 2017 के बाद से बंद करने की योजना है. जबकि झारखंड राज्य पूर्ण रूप से साक्षर नहीं हुआ है.
इसलिए साक्षरता कर्मियों का मानदेय बढ़ाया जाये और कम से कम इनका वेतन दस हजार प्रति माह किया जाये. साथ ही इन्हें ड्रेस कोड, पहचान-पत्र, मेडिकल भत्ता एवं छुट्टी आदि की भी सुविधा मिल. जब तक राज्य पूर्ण रूप से साक्षर नहीं होता है, तब तक साक्षरता कार्यक्रम को चलाया जाये.