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ककहरा पर अटकी शिक्षा

देवघर: आजादी के साढ़े छह दशक बाद भी संताल परगना में प्राथमिक शिक्षा ककहरा कर रही है. इसके बावजूद राष्ट्रीय व क्षेत्रीय पार्टियों के एजेंडा में संताल का प्राथमिक शिक्षा कभी शामिल नहीं हुआ. नतीजा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा व योजनाओं के सफल संचालन के अभाव में यहां प्राथमिक शिक्षा का ग्राफ लगातार गिरता जा रहा है. […]

देवघर: आजादी के साढ़े छह दशक बाद भी संताल परगना में प्राथमिक शिक्षा ककहरा कर रही है. इसके बावजूद राष्ट्रीय व क्षेत्रीय पार्टियों के एजेंडा में संताल का प्राथमिक शिक्षा कभी शामिल नहीं हुआ.

नतीजा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा व योजनाओं के सफल संचालन के अभाव में यहां प्राथमिक शिक्षा का ग्राफ लगातार गिरता जा रहा है. हालांकि 01 अप्रैल 2013 से पूरे देश में एक साथ नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 को लागू किया गया. इसका उद्देश्य छह से 14 वर्ष तक के बच्चों को नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराना है. एक अप्रैल 2010 को लागू हुए इस अधिनियम को शत-प्रतिशत लागू करने के लिए तीन वर्ष की मोहलत दी गयी थी. लेकिन, प्रावधान के तहत तीन वर्ष की मियाद पूरी होने के बाद भी संताल परगना में अधिनियम लोगों को मुंह चिढ़ा रहा है. इंफ्रास्ट्रक्चर सहित मैन पावर का घोर अभाव है.

विभागीय आंकड़ों पर गौर करें तो संताल परगना में कुल प्राइमरी व मिडिल स्कूलों की संख्या 10,737 है. यहां नामांकित छात्रों की संख्या 13.65 लाख व कार्यरत शिक्षकों (सरकारी व पारा शिक्षक) की संख्या 29,484 है. स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण पढ़ाई सहित छात्रों की उपस्थिति ग्रामीण क्षेत्रों के साथ-साथ शहरी क्षेत्रों में दिवास्वप्न हो गया है. आंकड़ों के अनुसार, प्राइमरी व मिडिल स्कूलों में छात्रों की औसत उपस्थिति 40-50 फीसदी है. कानून का सख्ती से अनुपालन कराने की जवाबदेही संबंधित पदाधिकारियों, शिक्षकों व समिति की है. लेकिन, यहां की हालात जस की तस बनी हुई है.

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