जिनसे उन्हें काफी मदद मिलती थी. लेकिन हाल के दस साल पहले ही ग्रेनगोला की हालत खराब हो गयी. लेन देन बंद हो गया और किसानों की उम्मीदें टूटने लगी. आज हालत यह है कि ग्रेन गोला किसी काम का नहीं है और आज अपनी बदहाली का आंसू बहा रहा है. लेकिन जनप्रतिनिधि व प्रशासनिक पदाधिकारियों की उदासीनता के कारण आज ग्रेन गोला का लाभ किसानों को नहीं मिल रहा है.
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बदहाली की आंसू बहा रहा सारवां प्रखंड का ग्रेन बैंक
सारवां: एक वक्त था जब जटिल बैंकिंग प्रक्रिया से परेशान किसानों के लिए प्रखंड क्षेत्र का ग्रेन बैंक या फिर ग्रेन गोला बड़ी उम्मीद हुआ करता था. आजादी से पहले की बात है, जब किसान ग्रेन गोला से अपनी मरजी के अनुसार लेन-देन करते थे. जब किसानों को खेती के अलावा शादी समेत अन्य कार्यों […]
सारवां: एक वक्त था जब जटिल बैंकिंग प्रक्रिया से परेशान किसानों के लिए प्रखंड क्षेत्र का ग्रेन बैंक या फिर ग्रेन गोला बड़ी उम्मीद हुआ करता था. आजादी से पहले की बात है, जब किसान ग्रेन गोला से अपनी मरजी के अनुसार लेन-देन करते थे. जब किसानों को खेती के अलावा शादी समेत अन्य कार्यों में आर्थिक परेशानी होती थी तो ग्रेन गोला में अनाज जमा कर ऋण लेते थे.
ऐसे काम करता था ग्रेन गोला
एक क्विंटल अनाज के लिए स्थानीय माप के अनुसार लगभग दस पेला धान देना पड़ता था. नकद राशि के लिए अलग से सोसाइटी बनी हुई थी. जहां कर्ज के लिए किसानों को धान या चावल उक्त बैंक में साख के रूप में जमा रखना पड़ता था. उसमें भी सूद का रेट वही होता था. यह बैंकिंग प्रक्रिया से ज्यादा सरल था अौर किसानों के लिए मददगार. ऋण लेने के लिए केवल 11 रुपये का रसीद कटाकर किसानों को सदस्य बनना होता था. हर 12 सदस्य पर एक मेट होते थे जो गोलादार के अधीन काम करते थे. मेट ग्रेनगोला की सूचना सभी सदस्यों को देने के साथ मूल व सूद की राशि की अदायगी के लिये संबंधित सदस्यों को निरंतर जागरूक करने का था.
क्रांतिकारियों ने धान लूटकर की थी जनता की मदद
ग्रेन गोला का इतिहास आजादी के आंदोलन से भी जुड़ा है. 1942 में अंगरेजों भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान क्रांतिकारियों के दल द्वारा ग्रेनगोला का धान लूट कर जनता में बांटी थी. आजादी से कुछ वर्ष पहले तक ग्रेनगोला की स्थिति काफी खराब थी. आजादी के बाद फिर इसे पुनर्जीवित करने का प्रयास किया गया.
किसानों ने कहा
ग्रेन गोला बंद हाेने से सबसे ज्यादा क्षति किसानों को पहुंची है. सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए.
दुखी वर्मा, किसान
गोलदार की सहायता से किसान अपने समय के अनुसार लेन देन करते थे. दुर्भाग्य है कि गोला ही बंद हो गया.
विनोद वर्मा, किसान
ग्रेन गोला किसानों का एकमात्र सहारा था. जहां अपनी मरजी से किसान लेनदेन करते थे. अब बुरा असर पड़ा है.
सुबाेध यादव, किसान
ग्रेन गोला किसानों का सच्चा साथी था जो विपरीत समय पर हर संभव सहायता करता था. बंद होने से किसानों के समक्ष समस्या ही समस्या है, सरकार इसे चालू कराये.
बच्चू लाल, किसान
विधायक ने कहा
इस मामले को गंभीरता से रखा जाएगा. प्रशासन से बात कर सकारात्मक प्रयास किया जाएगा.
बादल, जरमुंडी विधायक
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