देवघर: त्रिकुट पहाड़ के झरनों का पानी स्टोर कर सिंचाई के लिए त्रिकुट जलाशय योजना की रुपरेखा तैयार हुई थी. लेकिन दो बार शिलान्यास के बाद भी आज तक योजना का कार्य चालू नहीं हुआ. वर्षों पहले बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रशेखर ने त्रिकुट जलाशय योजना की शिलान्यास किया था, लेकिन जमीन विवादों की वजह से उस समय काम बंद हो गया.
उसके बाद योजना ही पूरी तरह से बंद पड़ गयी. पुन: 20 जनवरी 2012 को त्रिकुट जलाशय योजना की स्वीकृति करीब चार करोड़ की लागत से हुई. दो फरवरी 2015 को गोड्डा सांसद निशिकांत दुबे व विधायक नारायण दास ने संयुक्त रूप से त्रिकुट जलाशय योजना का शिलान्यास किया. लेकिन दोबारा शिलान्यास को दो वर्ष होने पर अब वन विभाग से फोरेस्ट क्लीयरेंस के पेच में त्रिकुट जलाशय योजना फंस गयी है. लघु सिंचाई विभाग द्वारा जून 2015 में वन विभाग से फोरेस्ट क्लीयरेंस मांगा था. उसके बाद त्रिकुट जलाशय योजना में पड़ने वाली वन भूमि के बदले जिला प्रशासन ने दहीजोर गांव में 98 एकड़ भूमि वन विभाग को मुहैया भी करा दी. लेकिन वन विभाग ने कई अन्य बिंदुओं पर अपनी आपत्ति जता दी है. फोरेस्ट क्लीयरेंस के लिए डीएफओ ममता प्रियदर्शी ने लघु सिंचाई विभाग के कार्यपालक अभियंता को पत्र लिखकर 10 बिंदुओं पर अनापत्ति पत्र मांगा है. इसमें पर्यावरण क्लीयरेंस, डीआरडीओ से एनओसी समेत अन्य मामले हैं.
डीआरडीओ एनओसी देने को तैयार
डीएफओ द्वारा अनापत्ति पत्र मांगे जाने के बाद लघु सिंचाई विभाग के कार्यपालक अभियंता ने मार्च 2016 में पर्यावरण व डीआरडीओ से एनओसी लेने के लिए फाइल बढ़ा दी. लघु सिंचाई विभाग के अनुसार देवघर में स्थित डीआरडीओ के अधिकारियों द्वारा अपने मुख्यालय के वरीय अधिकारियों से वार्ता के बाद डीआरडीओ त्रिकुट जलाशय योजना का एनओसी देने को तैयार हो गयी है. लेकिन राज्य सरकार से पर्यावरण बोर्ड से पर्यावरण का एनओसी अब प्राप्त नहीं हुआ है. अब तक चली कागजी दौड़ व लेटलतीफी की वजह से लघु सिंचाई विभाग पुन: त्रिकुट जलाशय योजना का प्राक्कलन रीवाइज कर चार करोड़ से बढ़ाकर 6.5 करोड़ रूपया कर दिया है. इसकी प्रशासनिक स्वीकृति भी मिल चुकी है. बावजूद काम चालू नहीं हुआ है.
200 हेक्टेयर सिंचाई व पेयजलापूर्ति का लक्ष्य
करीब 34 हेक्टेयर क्षेत्रफल में बनने वाली त्रिकुट जलाशय योजना से पेयजलापूर्ति व 200 हेक्टेयर भूमि में सिंचाई का लक्ष्य है. साथ ही इस जलाशय से आसपास के गांवों व शहरी पेयजलापूर्ति समेत डीआरडीओ में भी पेयजलापूर्ति का लक्ष्य है.
डीआरडीओ भी पेयजलापूर्ति सुविधा के शर्त पर ही त्रिकुट जलाशय योजना का एनओसी देने पर तैयार हुई है. अगर त्रिकुट जलाशय योजना बनकर तैयार हो जाये तो पर्यटन के क्षेत्र में सुंदर वादियों के बीच वोटिंग के लिए सबसे आकर्षण का केंद्र बन सकता है. अविभाजीत बिहार में जब जब योजना का शिलान्यास हुआ था तो उक्त समय की मशीनें आज भी चयनित जलाशय स्थल पर मौजूद है.
क्या कहते हैं अधिकारी
वन विभाग को केवल जमीन मुहैया करा देने से प्रक्रिया पूरी नहीं होती है. फोरेस्ट क्लीयरेंस में कई विभागीय नियम है. त्रिकुट जलाशय योजना में फोरेस्ट क्लीयरेंस के लिए लघु सिंचाई विभाग से पर्यावरण क्लीयरेंस, डीआरडीओ से एनओसी समेत कुल 10 बिंदुओं पर अनापत्ति प्रमाण पत्र मांगा गया है. अब तक एक भी अनापत्ति प्रमाण पत्र नहीं आया है.
-ममता प्रियदर्शी, डीएफओ, देवघर
वन भूमि की वजह से त्रिकुट जलाशय योजना का काम चालू नहीं हो पाया है. फोरेस्ट क्लीयरेंस के लिए वन विभाग में ऑन लाइन आवेदन दिया गया है. वन विभाग ने कुल 10 बिंदुओं पर अनापत्ति प्रमाण पत्र मांगा है. इसमें डीआरडीओ पेयजलापूर्ति सुविधा के शर्त पर ही एनओसी देने को तैयार हो गयी है. पर्यावरण एनओसी की फाइल बढ़ायी गयी है. शेष अन्य बिंदुओं में स्थानीय स्तर पर निष्पादित हो रही है.
– मो सरफराज, कार्यपालक अभियंता, लघु सिंचाई विभाग, देवघर