देवघर : मुझे बर्थ मिल गया है. बी-3 बोगी का 44 नंबर का बर्थ है. अब मैं सोने जा रहा हूं.’ रविवार को देवास में इंदौर-पटना एक्सप्रेस में सवार होने के बाद देवघर के नमो नारायण ने जब पत्नी से फोन पर बात की थी तो उसने कल्पना नहीं की होगी कि यह बातचीन उन दोनों का आखिरी संवाद होगा.
लेकिन नमो को पटना पहुंचाने वाली इंदौर-पटना एक्सप्रेस पुखरायां में मौत की ट्रेन में तब्दील हो गयी. और इस तरह नमो नारायण के परिवार की खुशी भी मातम में तब्दील हो गयी. नमो नारायण जोगन महाराज के पुत्र थे. वे एसकुमार शूटिंग सर्टिंग कंपनी में नेशनल हेड मार्केटिंग ऑफिसर के पद पर कार्यरत थे. उनकी लाश की पहचान घटना के दूसरे दिन दामाद शिवेश झा व भतीजा सुमित पंडित ने की. रेलवे की डेड लिस्ट में उनका नाम 96वें नंबर है. उनकी लाश को निजी गाड़ी से रात आठ बजे देवघर लायी गयी. इस घटना से शहर के चांदनी चौक मोहल्ले के लोग गमगीन है.
हादसे में देवघर के…
परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट गया है. वेदना में डूबे परिजन के आंसू रोकने से भी नहीं रुक रहे.
चार माह पहले ही हुआ था ट्रांसफर : महज चार महीने पहले ही नमो नारायण का पटना से कानपुर ट्रांसफर हुआ था. वे एसकुमार शूटिंग सर्टिंग कंपनी में नेशनल हेड मार्केटिंग ऑफिसर के पद पर कार्यरत थे. उनकी गिनती कंपनी के सफल अधिकारियों में होती थी. उन्हें प्रमोशन के साथ कानपुर भेजा गया था. कंपनी के काम से ही देवास गये थे.
पीछे छोड़ गये तीन संतान
नमो अपने पीछे छोड़ तीन संतान छोड़ गये हैं. बेटी निशि सुमन व निधि सुमन इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही हैं. बड़ी बेटी इंजीनियरिंग की फाइनल इयर में है. दोनों कोलकाता में रहती है. अगले माह उसकी परीक्षा भी है, लेकिन इस हादसे पूरे परिवार भारी सदमे में है. घटना की सूचना पाते ही दोनों बेटियां देवघर पहुंच गयी हैं, उन्हें विश्वास नहीं हो रहा कि पापा अब नहीं रहे. पत्नी तो वेदना व अवसाद में डूब गयी हैं. लोग लगातार सांत्वना दे रहे हैं, लेकिन पत्नी को बच्चे के भविष्य और आगे की जिंदगी के सवाल अंदर से तोड़ दे रहा है. नमो नारायण घर का एक मात्र कमानेवाला सदस्य था. लोगों का कहना है कि उनके बेटे को पिता के सहारे की जरूरत थी. बेटा शारीरिक तौर पर अस्वस्थ रहते हैं. नमो की असमय मौत से परिवार के सामने भारी आर्थिक चुनौतियां खड़ी हो गयी हैं.
हादसे में देवघर के बेटे की भी मौत
पटरी पर कोहराम. सोमवार तड़के पटना पहुंची स्पेशल ट्रेन
पुखरायां से सोमवार शाम शव पहुंचा देवघर, रात किया गया अंतिम संस्कार
चार माह पहले पटना से कानपुर हुआ था ट्रांसफर
एसकुमार शूटिंग सर्टिंग कंपनी में थे नेशनल मार्केटिंग ऑफिसर
दो पुत्री व एक बेटे छोड़ गये हैं नमो नारायण
परिवार का था अकेला कमानेवाला सदस्य
बी-3 बोगी के 44 नंबर पर कर रहे थे यात्रा
शवों के बीच 655 किमी का सफर, 12 घंटे में वह भी हुआ जिंदा लाश
गोड्डा का है अंकेश
कानपुर से िवशेष एंबुलेस से सुबह 5:12 बजे पटना जंकशन पहंुचने पर अंकेश को चूमतीं मां.
अभिमन्यु कुमार साहा4पटना
दोस्तों ने जाते वक्त हैप्पी जर्नी कहा था… पर उसे पता नहीं था कि सफर इतना खौफनाक होगा. डर से उसका चेहरा लाल था… भौएं चढ़ी हुई थीं. पूरी तरह बदहवास… शरीर कुरसी पर बिखरा जा रहा था, जैसे जिंदा लाश हो. जब होश आता, वह खुद से ही खुद को छिपाने की कोशिश कर रहा था. 12 घंटे… 655 किलोमीटर का सफर… और वह भी लाशों के बीच. कानपुर से स्पेशल एंबुलेंस से गोड्डा के रहनेवाले अंकेश पूरी तरह बदहवास सोमवार अलसुबह पटना पहुंचा. जैसे ही वह पटना जंकशन इंट्री कराने लाया गया, उसके मां-बाप बिलखते हुए उसकी तरफ दौड़ पड़े. Â बाकी पेज 13 पर
शवों के बीच 655 किमी…
डरे-सहमे अंकेश ने अचानक उन्हें झटक दिया. मां जोर से चित्कारते हुए बोली… बेटा… हम तुम्हारी मां हैं और उसके बिखर जा रहे शरीर को अपनी बाहों में भर लिया.
मां के आंचल में अचानक वह फफक उठाता है. मां रोते हुए बोलीं… कैसे हो गया बेटा…? इसके बाद वह उस खौफनाक मंजर को लड़खड़ाते शब्दों में बयां करने लगा- ‘मां… हम सोये हुए थे. अचानक तेज झटका लगा. इससे पहले कुछ समझ पाते कि पैर व हाथ पूरी तरह जख्मी हो चुके थे. हमको अस्पताल ले जाया गया. वहां इलाज हुआ. इतने में पता चला की स्पेशल ट्रेन पटना के लिए खुलनेवाली है. हमें ट्रेन पकड़वाने के लिए जैसे ही कानपुर सेंट्रल लाया गया, ट्रेन खुल चुकी थी. मुझे फिर लाशों से भरे एंबुलेंस में बैठा दिया गया और हम यहां तक पहुंचे. इतना कहते ही अंकेश फिर से बदहवास हो गया. ट्रेन दुर्घटना की खबर मिलते ही उसके मां-बाप गोड्डा से पटना पहुंचे थे. उन्होंने बताया कि अंकेश भोपाल में एक निजी इंजीनियरिंग कॉलेज से सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है. वह किसी व्यक्तिगत काम से पटना आ रहा था.