अब सवाल यह उठता है कि जब कोर्ट ने स्पष्ट व्यवस्था दी है तो आखिर सरदार पंडा के गद्दी का विवाद क्यों है? क्यों दावेदार कोर्ट का चक्कर लगा रहे हैं? यदि सभी एकमत होकर मामले को सुलझा लें तो सालों का विवाद पल भर में सलट सकता है और 46 सालों से खाली पड़े सरदार पंडा गद्दी को नया वारिस मिल सकता है. गद्दी को वारिस मिलते ही वर्षों पुरानी जो सरदार पंडा की पद्धति चल रही थी, बाबा मंदिर में फिर से बहाल हो जायेगी.
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फैसला: कोर्ट ने बनायी स्पष्ट व्यवस्था तो विवाद क्यों?
देवघर: बाबा मंदिर के सरदार पंडा और महाराजा गिद्धौर के बीच समय-समय पर टकराहट की स्थिति होती रहती था. इस कारण कई बार मामले कोर्ट तक पहुंचे. इसी दौरान वर्ष 1891 में वर्द्धमान हाइकोर्ट ने सरदार पंडा गद्दी विवाद न हो, इसके लिए दो तरह की व्यवस्था दी थी. गद्दी विवाद न हो, इसके लिए […]
देवघर: बाबा मंदिर के सरदार पंडा और महाराजा गिद्धौर के बीच समय-समय पर टकराहट की स्थिति होती रहती था. इस कारण कई बार मामले कोर्ट तक पहुंचे. इसी दौरान वर्ष 1891 में वर्द्धमान हाइकोर्ट ने सरदार पंडा गद्दी विवाद न हो, इसके लिए दो तरह की व्यवस्था दी थी. गद्दी विवाद न हो, इसके लिए कोर्ट रूल ही बना दिया था.
पहला रूल
सरदार पंडा का बड़ा लड़का हो, उसकी उम्र कम से कम 40 वर्ष हो, पूजा-पाठ, शिव के प्रति आस्था हो तो वह सरदार पंडा का उत्तराधिकारी होगा. यदि बड़ा लड़का नहीं रहे तो बड़ा पोता यदि वह उपरोक्त अहर्ता पूरी करता है तो वह उत्तराधिकारी हो सकता है.
दूसरा रूल
यदि उपरोक्त दोनों में से कोई नहीं है तो ऐसी परिस्थिति के लिए कोर्ट ने दूसरी व्यवस्था दी है कि उस परिवार का कोई भी सदस्य सरदार पंडा की गद्दी का दावेदार हो सकता है. इन दावेदारों में से सरदार पंडा के लिए चुनाव कराने की व्यवस्था दी है.
जिसके रिटर्निंग अफसर एसडीएम रहेंगे. चुनाव में पंडा समाज के लोग इन दावेदारों में से योग्य को अपना सरदार पंडा चुनेंगे. बहुमत जिसे मिलेगा, वही सरदार पंडा चुना जायेगा, जो सबको मान्य होगा.
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