पालोजोरी: सगराजोर पंचायत के पिंडरा के 23 वर्षीय नि:शक्त गयानाथ महतो अपने प्रयास और मजबूत इच्छाशक्ति की बदौलत नि:शक्तों के प्रेरणास्नेत बने हैं. तीन दिवस को नि:शक्तता दिवस के मौके पर गयानाथ से मिलने और उसके संघर्ष को देखते हुए निश्चय ही यह कहा जा सकता है कि नि:शक्त को किसी मायने में कम नहीं आंका जा सकता.
फिलहाल स्नातक फाइनल इयर (राजनीति विज्ञान से ऑनर्स) में पढ़ रहे गयानाथ के पिता आनंद महतो किसी तरह परिवार का गुजर बसर करते हैं. मां बुलुवाला देवी साधारण गृहिणी है. पेंशन और ट्राइसाइकिल उसे मिली है, लेकिन उसे अपना सपना पूरा करने लिये और भी सहायता की जरूरत है. गयानाथ की तमन्ना स्वयं शिक्षा अजिर्त कर शिक्षक बनने की है. अपने इसी सपने को पूरा करने के लिए वह गांव के बच्चों के बीच शिक्षा की अलख जगा रहे हैं. बच्चों को कंप्यूटर की शिक्षा भी गयानाथ दे रहे हैं. बच्चे भी गयानाथ का खूब सम्मान करते हैं. उनका कहना है नि:शक्तता को लेकर सामाजिक विचार पर समाज में मिले जुले लोग हैं. कोई नि:शक्त को सिर्फ नि:शक्त ही मानते हैं, कुछ लोग नि:शक्तों के लिए सकारात्मक सोच भी रखते हैं. अपने दोस्तों से मिलती मदद को भी वह काफी महत्वपूर्ण मानते हैं. गयानाथ ने कहा कि नियम कानून बने रहने के बावजूद नि:शक्तांे के अनुसार सारे कार्य नहीं किये जाते. सरकारी भवन का निर्माण नि:शक्तों के आवागमन की सुविधा को देखते हुए नहीं किया जाता है.
गयानाथ के अनुसार ग्राम पंचायत बने तीन साल होने जा रहे हैं, लेकिन पिछले तीन वर्षो में नि:शक्तों के लिए न तो कोई चर्चा हुई व न कोई कदम ग्राम पंचायत द्वारा उठाया गया. विश्व नि:शक्तता दिवस पर कोई सरकारी कार्यक्रम का आयोजन न होना भी नि:शक्तों की उपेक्षा ही है.