प्रत्येक वर्ष मातृ शक्ति की उपासना के लिए लाखों रुपये खर्च कर माता के भक्त पंडाल, लाइट, पूजन सामग्री, प्रसाद आदि की व्यवस्था करते हैं. इन व्यवस्थाअों के पीछे का उद्देश्य मातृ शक्ति को स्थापित करना है. लेकिन शायद लोग भूल जाते हैं कि हर महिला में मातृ शक्ति का अंश विराजमान रहता है. आसपास रहने वाली बेबस व लाचार महिलाअों की मदद करने वाले उदाहरण भी समाज में बहुत कम ही मिलते हैं. बाबानगरी में तकरीबन दो दर्जन से अधिक पूजा समितियों द्वारा लाखों खर्च कर खूबसूरत पंडालों का निर्माण कराया जाता है. मगर शहर के अस्पताल, रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म, सड़क किनारे बेबस पड़ी महिलाअों की ओर सामान्यतया किसी का ध्यान नहीं जाता.
देवघर : आरमित्रा स्कूल परिसर के सामने एसबीआइ एटीएम काउंटर के समीप सड़क का फुटपाथ रुक्मिणी देवी (65 वर्ष) का स्थायी आशियाना है. आंधी हो या पानी, दिसंबर की कड़कड़ाती ठंड हो या जून की जानलेवा गरमी, रुक्मिणी के दिन-रात यहीं गुजरते हैं. मूल रूप से वह बिहार के मुंगेर जिला के असरगंज की रहने वाली बतायी जाती हैं. पिछले सात-आठ वर्षों से वह घर-परिवार से दूर देवघर में ही रह रही हैं.
मानसिक रूप से थोड़ी कमजोर रहने के कारण इनके घर वाले इन्हें अपने साथ नहीं रखते. घर में पति के अलावा बाल-बच्चे व पोते-पोतियां हैं. मगर कोई उनकी सुधि नहीं लेता. कोई उसके प्रति स्नेह का भाव नहीं रखता. देवघर में जीवन-यापन करने के लिए वह प्रति दिन टावर चौक के समीप फल आदि की बिक्री करती हैं. थोड़ा-सा कुरेदने पर उनकी आंखें छलक उठती हैं. घरवालों को याद करते हुए रुक्मिणी कहती हैं कि बहुत जगहों पर मेरा घर है अौर घर में बहुत सारे लोग भी रहते हैं. अब तो सड़क किनारे बना यह फुटपाथ ही मेरा आसरा है. देखते हैं कब घरवालों को मेरी याद आती है अौर वे मुझे अपने साथ ले जाते हैं. फिलहाल अपने घर के लोग देवघर यदा-कदा आते जाते रहते हैं.
उनके माध्यम से ही सरी सूचनाएं मिल जाया करती हैं. उन्हीं बातों से संतुष्ट हो जाती हूं. यहां होटलों में बिकने वाला खाना अच्छा नहीं है. इसलिए अपने से कभी भात-सब्जी तो कभी मांड़-भात ही खा लेती हूं. बस यूं ही जिंदगी कट रही है. मातृ शक्ति के उपासना के दिनों (नवरात्रा) में रुक्मिणी की मदद के लिए कोई आगे आयेंं व उसे ससम्मान घर तक पहुंचाने व परिवार से मिलाने में पहल करें.