खंडपीठ ने मौखिक रूप से कहा कि केंद्र सरकार व राज्य सरकार कानूनी लड़ाई के बजाय प्रोजेक्ट पूरा कराने पर ध्यान केंद्रित करें. इससे पूर्व राज्य सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता अजीत कुमार ने कहा कि केंद्र को राज्य ने प्रस्ताव भेजा था. उसकी कमियों पर केंद्र ने जो भी जानकारी मांगी है, राज्य सरकार ने उपलब्ध करा दिया है. प्रोजेक्ट में काफी समय बीत चुका है और विलंब नहीं हो, इसके लिए संशोधित प्रस्ताव नहीं भेजा गया. केंद्र हमेशा संशोधित प्रस्ताव की मांग करता है.
उन्होंने कहा कि नियम बनते है, कार्य को सुचारू रूप से चलाने के लिए न की उसमें बाधा उत्पन्न करने के लिए. इसलिए राज्य के पूर्व प्रस्ताव तथा कोर्ट के पिछले आदेश के आलोक में केंद्र सरकार फॉरेस्ट क्लियरेंस पर शीघ्र स्वीकृति प्रदान करे. वही केंद्र सरकार की ओर से अधिवक्ता राजीव सन्हिा ने राज्य सरकार पर सारी जम्मिेवारी डालते हुए कहा कि वर्ष 2006 से संशोधित प्रस्ताव मांगा जा रहा है, लेकिन राज्य संशोधित प्रस्ताव नहीं दे रहा है. इस कारण स्वीकृति नहीं दी जा सकी है. प्रार्थी की ओर से वरीय अधिवक्ता एसएन पाठक ने पक्ष रखा. गौरतलब है कि प्रार्थी निशिकांत दुबे ने जनहित याचिका दायर की है.