देवघर: युगद्रष्टा, विश्वकवि भारतीय संस्कृति में नयी जान फूंकनेवाले गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर का इस सांस्कृतिक धरोधर से भी अपना नाता रहा है. दरअसल, मुक्त वातावरण में उन्मुक्त देशज शिक्षण परंपरा के समर्थक गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर की योजना सबसे पहले देवघर में ही अपनी कल्पना को साकार करने की थी. यहां प्रकृति में शांति थी. यह उनको खूब भाता था. तथ्य बतलाते हैं कि सन 1899 ई में गुरुदेव देवघर पधारे. वे पुरनदाहा स्थित एक कोठी में गये. इस कोठी में गुरुदेव के आरंभिक जीवन के गुरु प्रसिद्ध आचार्य ऋषि राजनारायण बोस (बसु) रुग्ण-शय्या पर पड़े अपनी अर्थवत्ता का नये सिरे से मूल्यांकन कर रहे थे. इस भवन के एक हिस्से का नाम आगे चल कर ‘अधरायतन’ पड़ा.
रिखिया गये : बीमार ऋषि राजनारायण बसु का हाल-चाल जानने के बाद गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर ने रिखिया का रूख किया. गुरुदेव अपनी महत्वाकांक्षी संस्थान शांति-निकेतन की स्थापना भी यहीं करना चाहते थे. इसके लिए बांस की डोली (बहंगा) पर बैठकर यथायोग्य भूमि की तलाश के लिए रिखिया का परिभ्रमण किया. अंतत: कुशमाहा के निकट एक विस्तृत भू-खंड उन्हें यथायोग्य प्रतीत हुआ. कुशमाहा गांव में गुरुदेव ने प्रारंभिक स्तर पर शतवर्षीय लीज पर सैकड़ों एकड़ भूमि अधिगृहीत करवायी. समाजव्रती हैमिल्टन साहब तथा अन्य उच्चधिकारियों का इस कार्य में प्रभूत-प्रभावशाली सहयोग रहा. लेकिन, आवागमन के साधनों का घोर अभाव, जल के स्थायी स्नेत नहीं होना तथा भूमि संबंधी वैधानिक व्यवधान (संताल परगना काश्तकारी अधिनियम) के कारण गुरुदेव ने यहां ‘शांति-निकेतन’ की स्थापना का विचार त्याग दिया. बाद में उन्होंने शांति-निकेतन की स्थापना पं बंगाल के बोलपुर में की.
फिर लौटे रिखिया : रिखिया गांव से प्रेम वशीभूत होकर उन्होंने 1905 ईसवी के आसपास दोबारा रिखिया आये. इस बार रिखिया के आमजनों, किसानों के लिए खेती-बारी, वानिकी, कृषि-उत्पादन की बिक्री और उनके स्वास्थ्य सुधार के लिए एक ‘सेनिटोरियम’ बनाने का उनका उद्देश्य था. इसी योजना के मजबूत आधार पर ‘द देवघर एग्रीकल्चर सेटलमेंट कंपनी प्राइवेट लिमिटेड’ का गठन हुआ, जिसने आसान शर्तो पर लोगों को घर-मकान देने का एक क्रांतिकारी कदम उठाया. उन दिनों गुरुदेव रिखिया स्थित कुमार कृष्ण दत्त महाशय की कोठी पर ठहरे थे. दत्त महाशय कोलकाता के एक कुलीन धनाढ्य परिवार से संबंध रखते थे.
उनके नाम पर बना रहा कृषि महाविद्यालय : रिखिया से उनके संबंध व संताल परगना में कृषि के विकास को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार मोहनपुर में इन्हीं के नाम पर रवींद्रनाथ टैगोर कृषि महाविद्यालय खोल रही है, जो निर्माणाधीन है. इसके अलावा गुरुदेव मधुपुर में भी रहे थे. यहां की आवोहवा उन्हें काफी पसंद थी. कहा जाता है कि उनके मित्र मनमोहन घोष ने पत्र के माध्यम से उन्हें बैद्यनाथधाम के बारे में जानकारी दी थी.