देवघर: जब मेरा भाई ही नहीं रहेगा तो सारे संसार की खुशियां मेरे लिए बेकार है. आज मेरा भाई मेरी आंखों के सामने है और हर वर्ष मैं उसे राखी बांधती हूं. यह मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी खुशी है. यह कहते हुए श्वेता की आंखों में खुशी की आंसू छलक पड़ी. करनीबाद(देवघर) की रहने वाली गौतम बर्मन की पत्नी श्वेता बर्मन आज एक किडनी पर पूरी तरह स्वस्थ जीवन व्यतीत कर रही है. श्वेता ने अपनी एक किडनी अपने छोटे भाई अभिषेक स्वर्णकार (कतरास, धनबाद) को डोनेट किया है. दो बहनों में अभिषेक इकलौता भाई है.
पांच वर्ष पूर्व अभिषेक की दोनों किडनी खराब होने की खबर से पूरे परिवार के समक्ष पहाड़ टूट पड़ा. अभिषेक घर का इकलौता चिराग था, घर के सारे सदस्यों के एक-एक मिनट मुश्किल से कट रहा था.डॉक्टरों ने जल्द किडनी ट्रांसप्लांट की सलाह दी. किडनी परिजनों में से ही किसी को डोनेट करना था. इस बीच अभिषेक के पिता बासुकीनाथ स्वर्णकार व माता को ब्लडप्रेशर की शिकायत मिली तो डॉक्टरों ने उन्हें किडनी डोनेट करने की इजाजत नहीं दी. अभिषेक की बड़ी बहन श्वेता की शादी हो चुकी थी. उनका एक बेटा भी था. भाई की इस स्थिति को देख श्वेता को रहा नहीं गया वह खुद अपना किडनी देने को तैयार हो गयी. श्वेता ने यह भी नहीं सोचा कि पता नहीं उनके ससुराल वाले, इसकी इजाजद देंगे या नहीं. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ व ससुराल वालों ने भी एक भाई के प्रति बहन का अटूट प्यार श्वेता को जरा भी नहीं रोका. चंडीगढ़ पीजीआइ में श्वेता ने अभिषेक को अपना किडनी डोनेट किया. एक किडनी पर आज अभिषेक पूरी तरह फिट है. वह अपनी पढ़ाई भी आगे जारी रखा है. अभिषेक पुणो में आइएसइ में पीएचइडी कर रहा है. उसे केवीसीआइ में फेलोशिप भी मिला है.
ससुरालवालों का मिला साथ
भाई को किडनी देने के लिए उसके ससुराल वालों ने भी हौसला अफजाई की व इस नेक काम के लिए प्रेरित किया. इसके बाद श्वेता को एक पुत्र भी हुआ. पति गौतम कहते हैं कि एक भाई व बहन का इतना गहरा प्रेम व मेरी पत्नी के प्रति मेरा विश्वास ने मुझे मजबूर किया. अगर मैं किडनी देने पर श्वेता को रोकता तो कोई पाप से कम नहीं होता. मैंने सब कुछ भगवान पर छोड़ दिया.
बहन की वजह से मिली जिंदगी
अभिषेक कहते हैं कि भाई-बहन का प्यार तो अटूट होता ही है. लेकिन मेरी बहन श्वेता दीदी मेरे लिए कुछ अलग है. आज मेरी पूरी जिंदगी मेरी बहन की वजह से है. मुझे आश्चर्य तब हुआ जब किडनी ट्रांसप्लांट की नौबत आयी तो मेरी ‘दीदी’ खुद आगे आ आयी. मैंने उन्हें मना भी किया, लेकिन वह नहीं मान रही थी. हमने कहा कि शायद ससुराल वालों को अच्छा नहीं लगेगा. लेकिन ससुराल वालों ने भी दीदी को उत्साहित किया.