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प्रवचन::: तंत्र का जीवन में ध्यान के प्रति अनोखा दृष्टिकोण है

इस अभ्यास को अधिक से अधिक सात चक्रों तक कीजिये. साथ ही स्वयं को भी वेदिका की अग्नि में समाहित होते हुए देखिये. यौन तांत्रिक ध्यान: तंत्र का जीवन के प्रति तथा विशिष्ट रूप से ध्यान के प्रति अनोखा दृष्टिकोण है. यह आत्मविकास की पद्धति है जो जीवन को उसके समग्र रूप में स्वीकार करती […]

इस अभ्यास को अधिक से अधिक सात चक्रों तक कीजिये. साथ ही स्वयं को भी वेदिका की अग्नि में समाहित होते हुए देखिये. यौन तांत्रिक ध्यान: तंत्र का जीवन के प्रति तथा विशिष्ट रूप से ध्यान के प्रति अनोखा दृष्टिकोण है. यह आत्मविकास की पद्धति है जो जीवन को उसके समग्र रूप में स्वीकार करती है. पाप-पुण्य की दार्शनिक मीमांसा तथा वर्जनाओं के लिए तंत्र में कोई स्थान नहीं होता, क्योंकि इनसे व्यक्तित्व में मात्र मानसिक कुंठाओं का ही निर्माण होता है. ये कुंठायें तथा वर्जनायें शांत तथा स्थिर मन की बाधायें हैं, क्योंकि मन की शांति तथा स्थिरता, ध्यान तथा आत्मसाक्षात्काकर के लिए प्राथमिक आवश्यकता है. इस दृष्टिकोण के तंत्र जीवन की प्रत्येक गतिविधि का पूरा-पूरा उपयोग करता है. वह प्रत्येक गतिविधि का आध्यात्मिक रूपांतरण कर उसे सजगता तथा मूला-शक्ति का उपकरण बनाता है. शक्ति को तंत्र में सर्वोच्च मातृ-शक्ति माना गया है.

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