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प्रवचन:::: चक्रानुसंधान चक्रों की खोज है

सभी चक्रों के लिए साधना: जब एक बार आपको शरीर में सभी चक्रों की सही स्थिति का ज्ञान हो जाये, तब आप निम्नलिखित दो तकनीकों का अभ्यास कर सकते हैं- चक्रानुसंधान: यह क्रियायोग का पहला अभ्यास है जिसे चक्रों की खोज भी कहा जाता है. चक्रानुसंधान तथा अन्य क्रियाओं के अभ्यास में आपको अपनी चेतना […]

सभी चक्रों के लिए साधना: जब एक बार आपको शरीर में सभी चक्रों की सही स्थिति का ज्ञान हो जाये, तब आप निम्नलिखित दो तकनीकों का अभ्यास कर सकते हैं- चक्रानुसंधान: यह क्रियायोग का पहला अभ्यास है जिसे चक्रों की खोज भी कहा जाता है. चक्रानुसंधान तथा अन्य क्रियाओं के अभ्यास में आपको अपनी चेतना को आरोहण तथा अवरोहण के अतीन्द्रिय पथों में घुमाना होता है. इन अतीन्द्रिय पथों को इस प्रकार समझाया जा सकता है-आरोहण- यह ऊपर चढ़ने का अतीन्द्रिय पथ है जो मूलाधार चक्र से प्रारंभ होकर स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्धि तक जाता है, फिर वहां से सीधा सिर के पीछे स्थित बिंदु तक जाता है.अवरोहण- यह नीचे उतरने का मार्ग है जो कि बिंदु से सामने आज्ञा में आता है फिर वहां से मेरुदंड में स्थित सुषुम्ना नाड़ी से सभी चक्रों में से होता हुआ मूलाधार चक्र तक पहुंचता है.

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