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विचार विरोध के नाम पर राष्ट्र विरोध जायज नहीं

बोकारो: विचार में विरोध हो सकता है, लेकिन विचार विरोध के नाम पर राष्ट्र विरोध कहीं से जायज नहीं है. विचार की लड़ाई में राष्ट्रीय एकता को नुकसान पहुंचाने का काम किया जा रहा है. रविवार को अखिल भारतीय साहित्य परिषद की ओर से सेक्टर 02 स्थित सशिविमं में राष्ट्रीय एकता व साहित्यकार विषयक विचार […]

बोकारो: विचार में विरोध हो सकता है, लेकिन विचार विरोध के नाम पर राष्ट्र विरोध कहीं से जायज नहीं है. विचार की लड़ाई में राष्ट्रीय एकता को नुकसान पहुंचाने का काम किया जा रहा है. रविवार को अखिल भारतीय साहित्य परिषद की ओर से सेक्टर 02 स्थित सशिविमं में राष्ट्रीय एकता व साहित्यकार विषयक विचार गोष्ठी हुई.

वक्ताओं ने कहा : कुछ बुद्धिजीवी राष्ट्र विरोध को अभिव्यक्ति की आजादी का नाम दे रहे हैं. समझना होगा यह अभिव्यक्ति की आजादी है या आजादी की अभिव्यक्ति. अधिकार की बात करने वालों को कर्तव्य बोध भी होना चाहिए.

किसने क्या कहा
डॉ परमेश्वर भारती : देशभक्ति ही रचना की प्राणशक्ति है. इससे इतर रचना खास मकसद से की जाती है. साहित्यकारों को एकता बनाये रखनके लिए आगे आना होगा.
भावना वर्मा : लोकप्रियता पाने के लिए ऐसा कदम उठाया जा रहा है. साहित्यकार आजादी की लड़ाई में भूमिका निभाते थे. वर्तमान में साहित्यकारों का कुछ हिस्सा राष्ट्र विरोध को ताकत समझते हैं.
डॉ सुबोध शैलांश: असहिष्णुता कहां है. सरकार विरोध के नाम पर देश विरोध शुरू हो गया है. सहन करने की ताकत का विरोधी नाजायज फायदा उठा रहे हैं. इससे बचने की जरूरत है.
राजीव कंठ : विरोध सिर्फ विरोध करने के नाम पर किया जा रहा है. कारण पता हो न हो विरोध कर देना है. साहित्यकारों में जागृति लानी है, लेकिन कुछ लेखक देश को तोड़ने में लगे हैं.
डॉ रंजना श्रीवास्तव : एकता में रचनाकारों की भूमिका सबसे अधिक होती है. साहित्यकारों को अपना कर्तव्य निभाने में कोताही नहीं बरतनी चाहिए. देश से बढ़कर कुछ नहीं.
उषा झा : लेखक कलम से हालात को बदलने की ताकत रखते हैं, लेकिन वर्तमान में कुछ साहित्यकार की कलम में बाहरी देश से स्याही भरी जा रही है. राष्ट्रीय एकता से इन्हें कुछ लेना-देना नहीं है.
मनोज रत्न पांडेय : देश उद्यान की तरह है. यहां फूल भी है व कांटे भी. देश प्रेम रूपी फूल को सींचने की जरूरत है. राष्ट्रीय एकता को तोड़ने का काम अंगरेजों ने शुरू किया था, जो आज कथित बुद्धिजीवी कर रहे हैं.
महेश मेंहदी : कविता से लोगों में राष्ट्रवादी सोच को विकिसत करने का काम किया जाता था. देशकी एकता व अखंडता बनाये रखने में साहित्यकारों की भूमिका अनंत है.
डॉ नरेंद्र कुमार राय : कुछ तथाकथित साहित्यकार देश विरोधी गतिविधियों को समर्थन दे रहे हैं, इसकी निंदा होनी चाहिए. भटके लोगों को मुख्य धारा में शामिल होना चाहिए. इनके अलावा नीतेश, सौरभ जायसवाल, शशांक, दीपक परमार, प्रिया सिंह, निरंजन कुमार, सीपी सिंह, कुणाल, वेंकटेश शर्मा, दीनानाथ, गंगेश कुमार पाठक, वकील दीक्षित, ज्योति वर्मा ने विचार रखा. धन्यवाद ज्ञापन डॉ सत्यदेव तिवारी व संचालन डॉ नरेंद्र कुमार राय ने किया.

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