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बेरमो : 12 सूत्री मांगों को लेकर मजदूरों की राष्ट्रव्यापी हड़ताल, 20 करोड़ कोयला मजदूर होंगे हड़ताल में शामिल

श्रम कानूनों में किये जा रहे संशोधन, कॉमर्शियल माइनिंग को दिया जा रहा बढ़ावा, मजदूरों के फिक्स्ड टर्म इंप्लॉयमेंट समेत अन्य 12 सूत्री मांगों को लेकर प्रस्तावित आठ-नौ जनवरी 2019 को दो दिवसीय राष्ट्रव्यापी औद्योगिक हड़ताल की सफलता को लेकर जोर-शोर से तैयारी की जा रही है. इस बाबत मजदूरों के बीच जनसंपर्क अभियान चलाये […]

श्रम कानूनों में किये जा रहे संशोधन, कॉमर्शियल माइनिंग को दिया जा रहा बढ़ावा, मजदूरों के फिक्स्ड टर्म इंप्लॉयमेंट समेत अन्य 12 सूत्री मांगों को लेकर प्रस्तावित आठ-नौ जनवरी 2019 को दो दिवसीय राष्ट्रव्यापी औद्योगिक हड़ताल की सफलता को लेकर जोर-शोर से तैयारी की जा रही है. इस बाबत मजदूरों के बीच जनसंपर्क अभियान चलाये जा रहे हैं.
संयुक्त ट्रेड यूनियन मोर्चा की बैठकों में हड़ताल की सफलता को ले रणनीति बनायी जा रही है. उम्मीद की जा रही है कि इस हड़ताल में संगठित-असंगठित क्षेत्र के 18-20 करोड़ मजदूर शामिल होंगे. वर्ष 1992 की नयी आर्थिक नीति के बाद से उभरे श्रमिक असंतोष के निरंतर तीव्रतर होते जाने का सबूत है कि तब से 15 राष्ट्रव्यापी औद्योगिक हड़तालें हो चुकी हैं.
गोलबंदी के प्रयास में संगठन
जनवरी में प्रस्तावित राष्ट्रव्यापी हड़ताल को लेकर आगामी आठ दिसंबर को सीसीएल बीएंडके प्रक्षेत्र में इसे लेकर कन्वेंशन आयोजित होगा. इसकी तैयारी में देश भर के श्रमिक संगठनों ने अपनी ताकत झोंक दी है. निजी व सार्वजनिक क्षेत्र के मजदूरों से हड़ताल को सफल बनाने की अपील की जा रही है. नेता केंद्र सरकार की मजदूर व उद्योग विरोधी नीतियों से लोगों को जागरूक कर रहे हैं. श्रमिक नेताओं को पूर्व की भांति हड़ताल के ऐतिहासिक होने की उम्मीद है. हड़ताल को रोकने के लिए मंत्रिमंडलीय समूह के साथ संगठनों की वार्ता की उम्मीद की जा रही है.
1992 से राष्ट्रव्यापी हड़ताल का दौर शुरू
वर्ष 1992 की नयी आर्थिक नीति तथा श्रम सुधार के दौर से ही देशव्यापी हड़ताल का दौर देश में शुरू हुआ. उदारीकरण, वैश्वीकरण, भूमंडलीकरण, निजीकरण के साथ-साथ देश के पब्लिक सेक्टर का विनिवेश (खासकर कोयला उद्योग का), रोजगार की गारंटी, न्यूनतम मजदूरी, ठेकेदारी/आउटसोर्सिंग प्रथा, समान काम का समान वेतन, श्रम कानूनों में संशोधन, ट्रेड यूनियनों के अधिकारों पर हमला तेज हुआ. इसके विरोध में देश भर के मजदूर संगठनों ने सड़क से लेकर सदन तक विरोध शुरू किया.
उपरोक्त नीतियों के खिलाफ वर्ष 1992 से अब तक मजदूर संगठनों ने 15 बार राष्ट्रव्यापी हड़ताल की है. इसके अलावा मजदूर संगठनों ने प्रतिवाद स्वरूप जेल भरो व सत्याग्रह के तहत देश भर में अपनी गिरफ्तारियां दीं. रेल रोको-रास्ता रोको आंदोलन किया. संसद के समक्ष तीन बार धरना-प्रदर्शन किया. इनमें अधिकतम तीन दिनों की हड़ताल है.

सिर्फ कोयला क्षेत्र में चार हजार करोड़ का नुकसान
आगामी राष्ट्रव्यापी हड़ताल में राष्ट्रीय स्तर की 11 सेंट्रल ट्रेड यूनियन शामिल हैं. इनमें इंटक, एटक, एचएमएस, बीएमएस व सीटू, एक्टू के अलावा अन्य यूनियनें शामिल हैं. इसके अलावा राज्य स्तर पर क्षेत्रीय व स्वतंत्र यूनियनें भी समर्थन देंगी. हड़ताल में सार्वजनिक क्षेत्र के सात फीसदी तथा निजी क्षेत्र के 93 फीसदी मजदूर शामिल होंगे. इसका असर कोयला, बिजली, रेल जैसे उद्योगों के अलावा बैंक, बंदरगाह, इंश्योरेंस समेत कई छोटे-बड़े उद्योगों पर पड़ेगा. सिर्फ कोयला उद्योग में एक दिन की हड़ताल से चार हजार करोड़ रु के नुकसान की आशंका है. एक दिन में कोल इंडिया में करीब साढे चार मिलियन टन कोयला उत्पादन प्रभावित होगा.
क्या हैं 12 सूत्री मांग
21 हजार रु प्रतिमाह न्यूनतम मजदूरी, सेवानिवृति के बाद सभी कामगारों को न्यूनतम तीन हजार रु पेंशन, ठेका अनुबंध, मानदेय आदि प्रथा की समाप्ति कर स्थायी नियोजन की व्यवस्था, श्रम कानूनों में नियोजक पक्षी संशोधन पर रोक, सार्वजनिक प्रतिष्ठानों के निजीकरण पर रोक, समेत कई मांगें शामिल हैं.
44 श्रम कानून की जगह चार कानून
मजदूर संगठनों का कहना है कि सरकार ने 44 श्रम कानूनों को संशोधित कर उसकी जगह मात्र चार लेबर कोर्ट में परिवर्तित कर दिया है. इससे देश के 70 फीसदी मजदूर कानून के दायरे से बाहर हो जायेंगे. ट्रेड यूनियन एक्ट 1926, मजदूर अधिनियम एक्ट 1936, न्यूनतम मजदूरी अधिनियम एक्ट 1948, बोनस एक्ट 1965, ग्रेच्युटी एक्ट 1972, औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947, अप्रेंटिस एक्ट 1961, समान काम का समान वेतन एक्ट 1976, इंप्लॉइज स्टैंडिंग ऑर्डर एक्ट 1946 के अलावा श्रम कानून के संशोधन से मजदूरों ने जो सुविधा हासिल की है वह भी छिन जायेगी. यह प्रक्रिया धीरे-धीरे शुरू है.

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