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पानी जैसा साफ नहीं है ‘पानी का धंधा’

बोकारो: एक कैंफर पानी के लिए आप 25 से 30 रुपये चुका रहे हैं, लेकिन जिस दावे की कीमत चुकाई, क्या वाकई सही है? शहर में धड़ल्ले से चल रहे वाटर सप्लाई सर्विस के धंधे के पीछे छिपे इस सवाल का जवाब विभाग भी नहीं दे पा रहा है़ प्यास के साथ सेहत की जरूरत […]

बोकारो: एक कैंफर पानी के लिए आप 25 से 30 रुपये चुका रहे हैं, लेकिन जिस दावे की कीमत चुकाई, क्या वाकई सही है? शहर में धड़ल्ले से चल रहे वाटर सप्लाई सर्विस के धंधे के पीछे छिपे इस सवाल का जवाब विभाग भी नहीं दे पा रहा है़ प्यास के साथ सेहत की जरूरत से पनपा यह धंधा पूरी तरह अंधे भरोसे पर दौड़ रहा है़ इस पर न कोई निगरानी है और न ही कोई लगाम. कैंफर में 15 लीटर पानी के लिए उपभोक्ता 25 से 30 रुपये चुकाने के बदले यही मान रहा है कि उसे शुद्ध पानी मिल रहा है. लेकिन क्वालिटी का पानी मिल रहा है, इस पर संशय है. दरअसल इस व्यवसाय पर किसी प्रकार का अधिकृत प्रशासनिक मॉनीटरिंग की कमी है.
आरओ प्लांट तीन लाख से दस लाख रुपये में स्थापित हो जाते है. एक कैंफर पर करीब तीन रुपये बिजली खर्च आता है. इसके अलावा बोतलों की सफाई के लिए कर्मचारी, लोडिंग-अनलोडिंग के लिए कर्मचारी, वाहन चालक आदि पर महीने का लगभग 45 से 50 हजार रुपये खर्च आता है. पानी को शुद्ध करने वाला मेमरेन को औसत छह माह में बदलना पड़ता है. दो मेमरेन की कीमत लगभग 20 हजार रुपये है. हर दो माह में कार्बन कॉटेज बदलनी पड़ती है. दो कार्बन कॉटेज की कीमत लगभग 1200 रुपये है. प्लांट संचालक खर्च बचाने के लिए मेनटेंनेंस से समझौता करने लगते है. इस कारण पानी की क्वालिटी खराब हो जाती है.
15 हजार लीटर से अधिक प्रतिदिन है खपत
बोकारो चास के अलावा जैनामोड़, पेटरवार, बेरमो आदि स्थानों पर प्रतिदिन लगभग 15 हजार लीटर खुले पानी का धंधा है. जिला में चास बोकारो के अलावा जैना मोड़, चंदनकियारी आदि में पानी का प्लांट लगा है.
पांच साल में नहीं लिया है एक भी सैंपल
स्वास्थ्य विभाग के अनुसार पिछले पांच वर्ष से बोकारो-चास के एक भी पानी के प्लांट का सैंपल नहीं लिया गया है़ स्वास्थ्य विभाग के पास इस संबंध में कोई रिकार्ड नहीं है़ न ही किसी प्लांट का निरीक्षण ही किया गया है. विभाग के अनुसार पानी का सैंपल जांच के लिए रांची भेजा जाता है. जांच की रिपोर्ट भी रांची से ही मिलती है़.
सात आरओ प्लांट का है रजिस्ट्रेशन
चास बोकारो में मात्र सात आरओ प्लांट का रजिस्ट्रेशन एमओआईसी कार्यालय में हुआ है. विभाग के रिपोर्ट के मुताबिक 20 ऐसे प्लांट चल रहें है. जिन्होंने रजिस्ट्रेशन तक नहीं कराया है. स्वास्थ्य विभाग के अनुसार कई प्लांट में सील बंद पानी बोतल भी तैयार किया जाता है. उन्हें आइएसआइ लेना पड़ता है. उन्हें रजिस्ट्रेशन कराने की आवश्यकता नहीं है.
जानिए क्या मिलना चाहिए
पानी सप्लायर्स आरओ या आरओ यूवी वाटर देने का दावा करते हैं. विशेषज्ञों के मुताबिक आरओ (रिवर्स आसमोसिस) प्लांट में पानी को प्राइमरी फिल्टर से निकाला जाता है. इससे भारी कचरा, तैरने वाली अशुद्धियां आदि छन जाती है. इसके बाद पानी एक्टिवेट चारकोल बेड में जाता है. इससे पानी में घुले कलर, ऑयल आदि अलग हो जाते हैं. इसके बाद फिल्टर पानी आरओ प्रोसेस में आता है. इसमें प्लांट की क्षमता के अनुसार लगे मेमरेन का मुख्य कार्य होता है, जो पानी में मौजूद क्लोराइड, कार्बोनेट, बायकार्बोनेट, आदि अशुद्धियां दूर हो जाती है. इसके बाद पानी पीने योग्य हो जाता है़ यदि आरओ के बाद भी पानी में कोई बेक्टोरोजिकल इंफेक्शन है, तो उसे यूवी से दूर किया जाता है.
एक साल से इस पद पर हूं. इस दौरान तो किसी पानी के प्लांट का सैंपल अादि नहीं लिया गया है. उसके पहले का नहीं पता है. बिना रजिस्ट्रेशन के आरओ प्लांट चलाने की जानकारी नहीं है. रिपोर्ट मिलने पर जांच कर आवश्यक कार्रवाई की जायेगी.
डाॅ बी मिश्रा, प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी, चास प्रखंड
Prabhat Khabar Digital Desk
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