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झामुमो: नियति रही है टूटना, बिखरना और फिर जुड़ जाना पार्टी टूटी, सरकार दावं पर

रांची: दुविधा में दोनों गये, माया मिली न राम. कमोबेश झारखंड मुक्ति मोरचा के साथ आज यही स्थिति है. झारखंड में पहले कांग्रेस से गंठबंधन, फिर लोकसभा चुनाव में गंठबंधन. एक मजबूत पार्टी होने के बावजूद कांग्रेस को 10 सीटें और झामुमो ने ली केवल चार सीटें. इन चार सीटों की वजह से आज पार्टी […]

रांची: दुविधा में दोनों गये, माया मिली न राम. कमोबेश झारखंड मुक्ति मोरचा के साथ आज यही स्थिति है. झारखंड में पहले कांग्रेस से गंठबंधन, फिर लोकसभा चुनाव में गंठबंधन. एक मजबूत पार्टी होने के बावजूद कांग्रेस को 10 सीटें और झामुमो ने ली केवल चार सीटें. इन चार सीटों की वजह से आज पार्टी टूट के कगार पर खड़ी है. दूसरी ओर, सरकार भी दावं पर है.

गिरने का खतरा मंडरा रहा है. हेमलाल मुरमू पार्टी छोड़ भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर चुके हैं. साइमन मरांडी पार्टी छोड़ने की तैयारी में हैं. कांग्रेस के एक विधायक ददई दुबे ने भी कांग्रेस को अलविदा कह टीएमसी का दामन थाम लिया है. सरकार को समर्थन दे रहे दो निर्दलीय विधायक बंधु तिर्की और चमरा लिंडा टीएमसी का दामन थाम चुके हैं. झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन के सगे भाई लालू सोरेन भी टीएमसी में शामिल हो गये हैं. सरकार बचाने के लिए अब आंकड़ों का संकट हो सकता है. हालांकि, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन कहते हैं कि सरकार पर अभी कोई संकट नहीं है.

साइमन मरांडी पर पार्टी सख्त, कार्रवाई संभव
साइमन मरांडी पर झामुमो कार्रवाई करेगा. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इसका संकेत दिया है. पार्टी के प्रवक्ता विनोद पांडेय ने कहा कि साइमन मरांडी ने जो कहा है, उस पर पार्टी की निगाह है. उनके अगले कदम को भी पार्टी देख रही है. जल्द ही पार्टी उनसे जवाब तलब करेगी. जरूरत पड़ेगी, तो कार्रवाई भी की जा सकती है. गौरतलब है कि साइमन ने अपने पुत्र के लिए राजमहल से टिकट मांगा था, पर झामुमो ने विजय हांसदा को टिकट दे दिया. इससे श्री मरांडी खफा हैं. उन्होंने सीएम के राजनीतिक सलाहकार हिमांशु शेखर चौधरी पर मनमाने तरीके से पार्टी चलाने का आरोप लगाया है.

ऐतिहासिक पहलू : टूटता-बिखरता, फिर संगठित होता रहा है झामुमो
झामुमो अपने गठन काल से लेकर अब तक टूटता, बिखरता रहा है और फिर जुड़ता रहा है. यही वजह है कि 40 वर्षो से यह पार्टी चल रही है. विधानसभा हो या लोकसभा चुनाव, अपनी दमदार उपस्थिति भी दर्ज कराता रहा है. वर्तमान में झामुमो के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व में गंठबंधन की सरकार चल रही है. चार फरवरी 1973 को धनबाद के एक वकील विनोद बिहारी महतो ने झारखंड मुक्ति मोरचा का गठन किया था. तब वह अध्यक्ष और शिबू सोरेन महासचिव थे. पूरी पार्टी का खर्च विनोद बिहारी महतो ही उठाते थे. 1978 में शैलेंद्र महतो भी झामुमो से जुड़े. 1980 में जनता पार्टी सरकार गिरने के बाद चुनाव हुए. तब झामुमो के वर्तमान अध्यक्ष शिबू सोरेन ने दुमका सीट से जीत दर्ज की. फिर तो यह सिलसिला चल पड़ा. 1984 में कुछ अंदरूनी कारणों से विनोद बिहारी महतो झामुमो से अलग हुए, तब निर्मल महतो इसके अध्यक्ष बने और शिबू सोरेन महासचिव बनाये गये. विनोद बिहारी महतो ने झामुमो (बी) पार्टी बनायी. 1987 में निर्मल महतो की हत्या कर दी गयी. इसके बाद शिबू सोरेन ने पार्टी की कमान संभाली.

आजसू अलग हुई
इस बीच सितंबर 1987 में झामुमो का स्टूडेंट विंग ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन (आजसू) ने स्वयं को झामुमो से अलग करने की घोषणा की. फिर प्रभाकर तिर्की और सूर्य सिंह बेसरा के नेतृत्व में आजसू अलग हुई. तब से आजसू अलग ही है. तब झारखंड आंदोलन चरम पर था. 1989 में चुनाव हुए. शिबू सोरेन, शैलेंद्र महतो और साइमन मरांडी झामुमो के सांसद बने. 1990 में विधानसभा चुनाव हुआ, जिसमें झामुमो के 19 विधायक चुन कर बिहार विधानसभा गये. फिर 1991 में लोकसभा के चुनाव हुए. झामुमो के छह सांसद चुनाव जीते, जिसमें शिबू सोरेन, सूरज मंडल, शैलेंद्र महतो, साइमन मरांडी, राजकिशोर महतो व कृष्णा मार्डी सांसद बने. इसी दौरान झामुमो सांसदों पर तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार को समर्थन देने के एवज में घूस लेने का आरोप भी लगा.

झामुमो मार्डी गुट भी बना
बिहार में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद के समर्थन में कृष्णा मार्डी अलग हुए और झामुमो मार्डी गुट बनाया. तब दो सांसद कृष्णा मार्डी और राजकिशोर महतो तथा नौ विधायक अलग हुए. 1995 में विधानसभा चुनाव हुए. झामुमो के 16 विधायक व मार्डी गुट के तीन विधायक जीत कर आये. तब अजरुन मुंडा झामुमो के और टेकलाल महतो, शिवा महतो व सबा अहमद मार्डी गुट के विधायक थे. 1995 में ही जैक बनी. शिबू सोरेन अध्यक्ष व सूरज मंडल उपाध्यक्ष बनाये गये. 1998 में फिर तत्कालीन सांसद शैलेंद्र महतो झामुमो से अलग हो गये. इसी दौरान सूरज मंडल से विवाद होने से उन्हें झामुमो से निकाल दिया गया. इसी दौरान सरयू राय को एमएलसी का वोट देने के लिए झामुमो के आठ विधायकों ने बगावत किया, जिनमें से एक अजरुन मुंडा भी थे.

अर्जुन मुंडा अलग हुए
वर्ष 2000 में जब विधानसभा का चुनाव हुआ, तब अर्जुन मुंडा झामुमो छोड़ भाजपा में शामिल हो गये. भाजपा के टिकट पर ही उन्होंने जीत दर्ज की. तब झामुमो के 12 विधायक चुनाव जीत कर आये. तब लग रहा था कि झामुमो अब अवसान की ओर है. वर्ष 2005 में झारखंड विधानसभा का पहला चुनाव हुआ. फिर झामुमो मजबूत बन कर उभरा. 17 विधायक जीत कर आये. वहीं लोकसभा में इसके पांच सांसद जीत कर आये. इस बीच टेकलाल महतो व अन्य पार्टी में वापस आ चुके थे. शिबू सोरेन की सरकार बनी, पर नौ दिनों में ही गिर गयी. वर्ष 2009 में विधानसभा चुनाव हुए. झामुमो को 18 सीटें मिलीं, पर लोकसभा में झामुमो को एक ही सीट मिली. इसके चार-चार सांसद चुनाव हार गये, जिनमें हेमलाल मुरमू, टेकलाल महतो, साइमन मरांडी भी शामिल थे.

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