जस्टिस डीएन पटेल व जस्टिस रत्नाकर भेंगरा की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई की. सुनवाई के दाैरान सरकार के उप सचिव उपस्थित थे. खंडपीठ ने मोमेंटम झारखंड के नाम पर सरकार की अोर से आदेश का अनुपालन करने के लिए समय मांगने पर अधिकारियों की कार्यशैली पर नाराजगी जतायी. खंडपीठ ने माैखिक रूप से कहा कि अधिकारियों के पास स्वयं के वेतन विपत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए समय होता है, लेकिन उपभोक्ता आयोग व फोरम में स्थायी नियुक्ति के लिए विज्ञापन प्रकाशित करने संबंधी फाइल पर हस्ताक्षर के लिए समय मांग रहे हैं.
यह लेथार्जिक एप्रोच है, जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती है. जब तक विभागीय सचिव को नहीं बुलाया गया, तब तक नियुक्ति की प्रक्रिया शिथिल पड़ी हुई थी. ऐसे मामलों में विलंब होने पर सरकार के अधिकारियों पर जुर्माना लगाया जाना चाहिए. कोर्ट के कड़े आदेश के बिना कोई कार्रवाई नहीं की जाती है. सरकार इस तरह के आयोग व फोरम पर ध्यान नहीं देती है, जिससे आम लोगों को न्याय पाने में परेशानी उठानी पड़ती है.
समस्याअों की वजह से न्याय मिलने में विलंब हो रहा है. खंडपीठ ने यह भी कहा कि वर्ष 2014 से यह मामला चल रहा है, लेकिन अब तक आयोग व फोरम में व्याप्त समस्याएं दूर नहीं की गयीं. बिजली और पानी जैसी बुनियादी सुविधा उपलब्ध कराने पर ध्यान नहीं दिया गया. प्रार्थी के अनुरोध को कोर्ट का आदेश मानना चाहिए था. मामले की अगली सुनवाई के लिए छह मार्च की तिथि निर्धारित की. इससे पूर्व प्रार्थी की अोर से अधिवक्ता आशुतोष आनंद ने पक्ष रखते हुए कहा कि उपभोक्ता आयोग व फोरम में कर्मचारियों की कमी है. वहां पानी और बिजली जैसी बुनियादी सुविधाएं भी नहीं हैं. अपना भवन तक नहीं है.