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वीजा समाप्त होने पर गिरफ्तार हुई फिर रिनपास में करा दी गयी भरती

प्रवीण मुंडा रांची : वीजा समाप्त हो जाने के बाद भी देश में रहने के आरोप में गिरफ्तार स्विटजरलैंड की एक महिला एम बेवर (नाम बदला हुआ) का इलाज रिनपास में चल रहा है. करीब छह माह से वह यहां भरती है. अब वह घर ले जाने के लायक हो गयी है. रिनपास प्रबंधन ने […]

प्रवीण मुंडा

रांची : वीजा समाप्त हो जाने के बाद भी देश में रहने के आरोप में गिरफ्तार स्विटजरलैंड की एक महिला एम बेवर (नाम बदला हुआ) का इलाज रिनपास में चल रहा है. करीब छह माह से वह यहां भरती है. अब वह घर ले जाने के लायक हो गयी है. रिनपास प्रबंधन ने इसकी जानकारी झारखंड लीगल सर्विस ऑथोरिटी (झालसा), जिला विधिक सेवा प्राधिकार (डालसा) तथा गया सेंट्रल जेल को भी दी है.

27 जनवरी 2015 को बोधगया में हुई थी गिरफ्तार : बेवर को भारत में 15 जनवरी 2015 तक रहने की अनुमति थी. इसके बाद भी वह भारत में रह रही थी. जांच के दौरान 27 जनवरी 2015 को बोधगया बिहार में पुलिस ने द फोरिजनर्स एक्ट 1946 की धारा 14 के उल्लंघन में उसे गिरफ्तार किया था. उस महिला के खिलाफ बोधगया थाना में मामला दर्ज (कांड संख्या 25/2015) किया गया था. इसके बाद उसे न्यायिक हिरासत में सेंट्रल जेल गया भेजा गया था.

करीब एक साल जेल में रहने के बाद बेवर को मानसिक परेशानी होने की बात जेल प्रशासन ने कही. बिहार में मेडिकल बोर्ड ने बेवर की जांच करायी. इसके बाद गया सेंट्रल जेल के सुपरिटेंडेंट ने बिहार के निदेशक प्रमुख, स्वास्थ्य सेवाएं के पत्र (मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट) के आलोक में सीजेएम गया की अनुमति से बेवर को इलाज के लिए रिनपास में छह जून 2016 को भरती कराया. आठ अगस्त को इलाज के बाद रिनपास के मेडिकल बोर्ड ने इसकी जांच की. बोर्ड ने महिला को घर ले जाने के लायक बताया.

हावभाव से नहीं लगती है मनोरोगी : रिनपास के जिला विधिक सेवा प्राधिकार (डालसा) के लीगल सर्विस के अधिवक्ता संजय शर्मा ने डालसा सचिव राजेश कुमार सिंह को इससे संबंधित रिपोर्ट दी है. इसमें कहा है कि महिला के हावभाव, बात करने के तरीके, परिधान से यह नहीं लगता कि वह मानसिक रूप से बीमार है. उससे किसी अौर को कोई खतरा भी नहीं है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि महिला को रिनपास से छुट्टी करायी जा सकती है. संजय शर्मा ने अपनी रिपोर्ट में यह भी लिखा है कि महिला ने पर्याप्त सजा भुगत ली है. पूर्व में देश में इस तरह के मामले में दो साल से अधिक कारावास के उदाहरण नहीं हैं.

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