लोहरदगा: लोहरदगा लोकसभा क्षेत्र से कई दिग्गज चुनाव लड़े और दिल्ली जाकर यहां का प्रतिनिधित्व किया. इस संसदीय सीट को कांग्रेस का गढ़ माना जाता है. वर्ष 1991 में राजनीति के संत कहे जानेवाले ललित उरांव ने कांग्रेस के गढ़ में पहली बार सेंध लगायी. लोहरदगा संसदीय सीट पर कांग्रेस का वर्चस्व 34 साल बाद समाप्त हुआ. इसके लिए भाजपा के दिग्गज नेताओं को जोर आजमाइश करनी पड़ी थी. भाजपा के अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी और कैलाशपति मिश्र सरीके नेताओं को लोहरदगा की गलियों की खाक भी छाननी पड़ी थी. इसका नतीजा सकारात्मक मिला और वर्ष 1996 में जनता ने दोबारा इस सीट से भाजापा के ललित उरांव को जिताया.
वर्ष 1967 में कांग्रेस पार्टी के कार्तिक उरांव चुनाव जीते. उनके निधन के बाद उनकी धर्मपत्नी सुमति उरांव ने चुनाव में जीत हासिल की. लोहरदगा से लालू उरांव, इंद्रनाथ भगत, दुखा भगत, डॉ रामेश्वर उरांव एवं सुदर्शन भगत ने चुनाव जीत कर संसद में यहां का प्रतिनिधित्व किया. इस सीट पर चमरा लिंडा, रमा खलखो, डॉ देवशरण भगत, बहुरा एक्का ने भी किस्मत आजमायी, पर जीत नहीं हासिल कर पाये.
लोहरदगा लोकसभा क्षेत्र अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है. पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा के विजयी प्रत्याशी सुदर्शन भगत को एक लाख 44 हजार 605 वोट मिले थे. जबकि दूसरे स्थान पर रहनेवाले चमरा लिंडा को एक लाख 36 हजार 344 वोट मिले थे. कांग्रेस प्रत्याशी डॉ रामेश्वर उरांव तीसरे स्थान पर रहे. इन्हें एक लाख 29 हजार 610 वोट मिले. चौथे स्थान पर रमा खलखो रहीं, जिन्हें 32 हजार 219 वोट मिले. आजसू पार्टी के डॉ देवशरण भगत 16 हजार 612 वोट के साथ पांचवें स्थान पर रहे. जेवीएम के डॉ बहुरा एक्का 14 हजार 798 वोटों के साथ छठे स्थान पर रहे. चमरा लिंडा को मिले वोट ने दोनों प्रमुख राजनीतिक दल (कांग्रेस और भाजपा) की नींद उड़ा दी थी. कांग्रेस पार्टी को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ था. चूंकि वर्ष 2004 में इस सीट से कांग्रेस पार्टी के डॉ रामेश्वर उरांव चुनाव जीते और 2009 में वे तीसरे स्थान पर चले गये.
पांचों विधानसभा हैं आरक्षित
राज्य के 14 लोकसभा क्षेत्रों में से लोहरदगा इकलौता संसदीय क्षेत्र है, जहां की सभी विधानसभा सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है. यह संसदीय सीट भी अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है. इस लोकसभा क्षेत्र में लोहरदगा , गुमला, विशुनपुर, सिसई और मांडर विधानसभा क्षेत्र आते हैं.
रोचक मुकाबला होगा इस बार
आतंरिक कलह भी पार्टियों को प्रभावित करेगी आजसू व झाविमो कर रहे हैं लगातार मेहनत
लोहरदगा: लोहरदगा संसदीय क्षेत्र में चुनावी सरगरमी तेज होती जा रही है. संभवत: यह पहला क्षेत्र होगा, जहां राज्य के सत्ताधारी दल की मंत्री अपने पति के पक्ष में चुनाव प्रचार नहीं करेंगी. आइपीएस की नौकरी से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर पहुंचे डॉ अरुण उरांव भाजपा के टिकट से चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं, जबकि उनकी पत्नी गीताश्री उरांव कांग्रेस की दिग्गज नेता हैं और वर्तमान में शिक्षा मंत्री भी हैं. गीताश्री उरांव के पिता कार्तिक उरांव मां सुमति उरांव , ससुर बंदी उरांव कट्टर कांग्रेसी रहे हैं और उनके पति भाजपा से चुनाव लड़ने की ताल ठोंक रहे हैं. हालांकि, यहां के सीटिंग सांसद सुदर्शन भगत भी दावेदार हैं.
इधर, कांग्रेस पार्टी में प्रदेश अध्यक्ष सुखदेव भगत की दावेदारी सशक्त है. पिछले चुनाव में तीसरा स्थान प्राप्त करनेवाले पूर्व सांसद सह अनुसूचित जनजाति आयोग के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ रामेश्वर उरांव के टिकट मिलने में संदेह है. इस सीट से आजसू पार्टी के केंद्रीय कार्यकारी अध्यक्ष सह विधायक कमल किशोर भगत भी चुनाव लड़ने के लिए इच्छुक हैं. वहीं बंधु तिर्की के सहयोग से चमरा लिंडा भी चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं. झारखंड विकास मोरचा वीरेंद्र भगत को इस सीट से चुनाव लड़ायेगा.
वर्ष 2009 के चुनाव में चमरा लिंडा एक लाख 36 हजार 344 वोट लाकर दूसरे स्थान पर थे. भाजपा एवं कांग्रेस दोनों पार्टियों में आंतरिक कलह भी परिणाम को प्रभावित करेगी. आजसू एवं झाविमो क्षेत्र में मेहनत कर मतदाताओं को आकर्षित करने का लगातार प्रयास कर रहे हैं. विधानसभा चुनाव जीतने के बाद आजसू पार्टी का उत्साह चरम पर है. विधायक कमल किशोर भगत लगातार क्षेत्र के दौरे में रहे और उनका निशाना कांग्रेस पार्टी ही रही. विधानसभावार सीटों को देखें, तो लोहरदगा सीट पर आजसू पार्टी के कमल किशोर भगत, गुमला सीट पर बीजेपी के कमलेश उरांव, विशुनपुर सीट पर चमरा लिंडा, सिसई सीट पर कांग्रेस की गीताश्री उरांव, मांडर सीट पर झारखंड जनाधिकार मंच के बंधु तिर्की का कब्जा है. स्पष्ट है कि इस बार का चुनाव काफी रोचक होगा. उम्मीदवारों की हार-जीत को लेकर अभी से ही अटकलों का बाजार गरम हो गया है.
लोकसभा चुनाव: भाजपा में संभावित प्रत्याशी रेस टिकट काटने का खेल शुरू
लोकसभा चुनाव को लेकर प्रदेश भाजपा में सरगरमी तेज हो गयी है. सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व फरवरी के अंतिम सप्ताह या मार्च के पहले सप्ताह तक संभावित उम्मीदवारों की सूची जारी कर सकता है. केंद्रीय नेतृत्व संभावित प्रत्याशियों के नाम पर विचार कर रहा है. ऐसे में संभावित प्रत्याशी टिकट सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहे हैं. पार्टी में पूर्व आइएएस और आइपीएस अफसरों के आने से समीकरण बदल गया है. लंबे समय से पार्टी में काम करने वालों नेताओं और कार्यकर्ताओं को चिंता सता रही है कि कहीं उनका टिकट कट नहीं जाये.
पार्टी में शामिल होनेवाले आइएएस-आइपीएस अफसरों की दावेदारी सख्त है. केंद्रीय नेतृत्व व प्रदेश भाजपा की सहमति से इन्होंने पार्टी का दामन थामा है. ये पार्टी के बनैर तले चुनाव लड़ने की तैयारी में जुट भी गये हैं. ऐसे में कई दिग्गजों को लग रहा है कि उनका टिकट कट सकता है. सीट बचाने और दावेदारी को मजबूत करने के लिए केंद्र और प्रदेश स्तर तक के नेताओ से लांबिग की जा रही है. कई संभावित प्रत्याशी अपने प्रतिद्वंद्वी का टिकट कटवाने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपना रहे हैं. इसके लिए निजी मामलों को उछाला जा रहा है. उनके परिवार की फेसबुक पर जारी तसवीर भेजी जा रही है. पलामू से टिकट के लिए एक आइएएस, एक आइपीएस और एक पूर्व सांसद की दावेदारी है.
शर्त पर पार्टी से नहीं जुड़े हैं अफसर : विनोद
भाजपा के प्रदेश प्रभारी विनोद पांडेय ने कहा कि यह अच्छी बात है कि आइएएस, आइपीएस रहे अफसर पार्टी से जुड़ रहे हैं. राजनीतिक दल का दरवाजा सभी के लिए खुला रहता है. किसी को आश्वासन देकर पार्टी में शामिल नहीं किया गया है. टिकट पर अंतिम निर्णय केंद्रीय नेतृत्व को लेना है. टिकट देने में नेता और कार्यकर्ताओं की भावनाओं का ध्यान रखा जायेगा.