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सात बार राज परिवार जीता

सलाउद्दीन हजारीबाग : हजारीबाग संसदीय सीट पर अब तक 16 लोकसभा चुनाव हुए हैं. इसमें एक उपचुनाव भी शामिल है. वक्त के साथ हजारीबाग संसदीय चुनाव में मतदाताओं का मिजाज बदलता गया. वर्ष 1952 से 2009 तक पंद्रह लोकसभा चुनावों का परिणाम क्षेत्र के बदलते चुनावी मुद्दों को परिलक्षित करता है. हजारीबाग संसदीय सीट से […]

सलाउद्दीन

हजारीबाग : हजारीबाग संसदीय सीट पर अब तक 16 लोकसभा चुनाव हुए हैं. इसमें एक उपचुनाव भी शामिल है. वक्त के साथ हजारीबाग संसदीय चुनाव में मतदाताओं का मिजाज बदलता गया. वर्ष 1952 से 2009 तक पंद्रह लोकसभा चुनावों का परिणाम क्षेत्र के बदलते चुनावी मुद्दों को परिलक्षित करता है.

हजारीबाग संसदीय सीट से सात बार रामगढ़ राज समर्थित जनता पार्टी ने चुनाव जीता. कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार दो बार, सीपीआइ के उम्मीदवार दो बार और भाजपा के उम्मीदवार पांच बार चुनाव जीते हैं. इस सीट पर पहली बार कांग्रेस को 1971 में, भाजपा को 1989 में और सीपीआइ को 1991 में जीत मिली. वर्ष 1968 में उपचुनाव हुआ, जिस पर जनता पार्टी के ही उम्मीदवार मोहन सिंह ओबराय चुनाव जीते थे.

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किस चुनाव में क्या हुआ

1952 : देश का संविधान बनने के बाद कांग्रेस नेता ज्ञानी राम को सांसद के रूप में मनोनीत किया गया था. पहले लोकसभा चुनाव 1952 में रामगढ़ राज्य के समर्थित जनता पार्टी से बाबू रामनारायण सिंह चुनाव जीतने में सफल हुए थे.

1957 : छोटानागपुर संतालपरगना जनता पार्टी के उम्मीदवार ललिता राज लक्ष्मी ने चुनाव जीता. उस जमाने में कांग्रेस राष्ट्रव्यापी पार्टी थी, लेकिन हजारीबाग लोकसभा सीट पर जनता पार्टी का ही बोलबाला था. ललिता राज लक्ष्मी ने हेलीकॉप्टर से प्रचार किया था.

1962 : इस चुनाव में छोटानागपुर संताल परगना जनता पार्टी से ही डॉ बसंत नारायण सिंह जीते थे.

1967 : हजारीबाग से डॉ बसंत नारायण सिंह चुनाव जीते. क्षेत्रीय दल के रूप में झारखंड पार्टी को कांग्रेस ने अपनी सियासी चाल में शामिल किया था. मरांग गोमके जयपाल सिंह की अगुवाई में चल रही झारखंड पार्टी का कांग्रेस में विलय हुआ था, पर इसका प्रभाव भी हजारीबाग सीट पर नहीं दिखा.

1968 : मध्यावधि चुनाव हुआ. रामगढ़ राज परिवार ने उद्योगपति मोहन सिंह ओबेराय को जनता पार्टी से चुनाव लड़ाया, जो जीते.

1971 : पहली बार 1971 में हजारीबाग लोकसभा सीट से कांग्रेस पार्टी को जीत मिली. दामोदर पांडेय ने कुंवरानी विजया राजे को हराया.

1977 : आपात काल के बाद सियासी फिजां बदल चुकी थी. इंदिरा गांधी विरोधी लहर चल रही थी. इसका असर हजारीबाग लोकसभा सीट पर दिखा. डॉ बसंत नारायण सिंह जनता पार्टी से जीते.

1980 : जनता पार्टी की सरकार अंतर्विरोध से कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी. 1980 में मध्यावधि चुनाव हुआ. कांग्रेस की सरकार बनी, लेकिन हजारीबाग पर जनता पार्टी के उम्मीदवार डा वसंत नारायण सिंह ही चुनाव जीते.

1984 : इंदिरा गांधी की शहादत का असर दिखा. हजारीबाग से कांग्रेस के दामोदर पांडेय चुनाव जीते.

1989 : भावनात्मक मुद्दा (रामनवमी जुलूस मार्ग) हावी रहा. भाजपा ने पहली बार हजारीबाग सीट जीती. यदुनाथ पांडेय भाजपा सांसद बने.

1991 : क्षेत्रीय और जातीय समीकरण की हवा चली. सीपीआइ के उम्मीदवार भुवनेश्वर मेहता सांसद बने.

1996 : भाजपा से महावीर लाल विश्वकर्मा चुनाव जीते.

1998 : भाजपा दूसरी बार जीती. यशवंत सिन्हा रिकॉर्ड मतों से जीते.

1999 : यशवंत सिन्हा फिर चुनाव जीतने में सफल हुए.

2004 : यशवंत सिन्हा की हैट्रिक रोकने को कांग्रेस, राजद और वामदल ने सीपीआइ भुवनेश्वर प्रसाद मेहता को संयुक्त उम्मीदवार बनाकर जिताया.

2009 : भाजपा-कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला हुआ. 2,19,803 मत लाकर यशवंत सिन्हा ने विजयश्री हासिल की.

हेलीकॉप्टर से प्रचार : 1952 से 1968 तक हजारीबाग से सांसद बननेवाले उम्मीदवार का चुनाव प्रचार हेलीकॉप्टर से परचा गिराना था. रामगढ़ राज परिवार के उम्मीदवार हेलीकॉप्टर से चुनाव प्रचार करते थे. इसी तरह ललिता राजे लक्ष्मी, डॉ बसंत नारायण सिंह चुनाव प्रचार किया करते थे. पूरे संसदीय क्षेत्र में फोर्ड गाड़ी से बाजार व चौक-चौराहों में उम्मीदवार के प्रतिनिधि जाते थे.

रामगढ़ राज के उम्मीदवार का चुनाव प्रचार में बहुत हद तक जनता द्वारा आरती उतारना या दर्शन करना होता था. सिंदूर और टिकली मतदाताओं के बीच खुशी से बांटे जाते थे. बैनर पोस्टर का प्रचलन नहीं था.कटाक्ष करने की परिपाटी नहीं थी. उस समय प्रचार रिक्शा में चोंगा लगा कर होता था. 1971 से चुनाव प्रचार का तरीका बदला.

छोटे वाहन से प्रचार शुरू हुए. 1980 तक कमोबेश प्रचार का तरीका छोटे-छोटे नुक्कड़ सभाओं में बदल गया. जमींदार, मुखिया और सम्मानीय लोगों की चुनाव प्रचार में अहम भूमिका थी. 1984 से चुनावी प्रचार बिल्कुल ही बदल गया. चुनावी मुद्दों में विकास और उम्मीदवार की जगह तरह-तरह के हथकंडे शामिल हुए.

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