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पारसनाथ का दक्षिण-पूर्वी इलाका है नक्सलियों का मजबूत दुर्ग

– सतीश जायसवाल – – नौ चक्र में तैयार कर रखी है – सुरक्षा व्यवस्था – परिक्रमा पथ पर सबसे मजबूत घेराबंदी डुमरी : पारसनाथ पहाड़ का पूरा वन क्षेत्र नक्सलियों की गतिविधियों का केंद्र रहा है. एक ओर जहां पारसनाथ को शांति का संदेश देने वाले जैन मुणियों का निर्वाण स्थल कहा जाता है, […]

– सतीश जायसवाल –

– नौ चक्र में तैयार कर रखी है

– सुरक्षा व्यवस्था

– परिक्रमा पथ पर सबसे मजबूत घेराबंदी

डुमरी : पारसनाथ पहाड़ का पूरा वन क्षेत्र नक्सलियों की गतिविधियों का केंद्र रहा है. एक ओर जहां पारसनाथ को शांति का संदेश देने वाले जैन मुणियों का निर्वाण स्थल कहा जाता है, वहीं यह इलाका खून-खराबे के कारण भी सुर्खियों में रहा है. पारसनाथ का दक्षिणी-पूर्वी इलाका नक्सलियों के लिए अति महत्वपूर्ण और मजबूत दुर्ग माना जाता है. इस दुर्ग को भेदना पुलिस के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है. कहते हैं कि इस इलाके में नक्सलियों ने अपनी समानांतर व्यवस्था कायम कर रखी है. कुल 9 चक्र में नक्सलियों ने अपनी सुरक्षा व्यवस्था स्थापित किया है और हरेक चक्र में नक्सलियों का एक विशेष दस्ता 24 घंटे काम करता है. इसका प्रत्येक चक्र नक्सलियों के लिए एक महत्वपूर्ण किलाबंदी माना जाता है.

रास्ते में संतरियों की तैनाती, इस क्षेत्र में आने वाले नये चेहरे पर पैनी नजर के साथ-साथ मारक दस्ता का विशेष पैट्रोलिंग काम करता है. जैसे ही कोई नया चेहरा इस इलाके में प्रवेश करता है, उसकी खबर अजय महतो और रामदयाल महतो उर्फ बच्चन के करीबी माने जाने वाले मारक दस्ता को दे दी जाती है और इसके बाद जैसा निर्देश संतरियों और पैट्रोलिंग दस्ते को मिलती है, वैसा कदम उठाया जाता है. यहां हर मार्ग पर बारूदी सुरंग की धमक है. सबसे महत्वपूर्ण और मजबूत घेराबंदी परिक्रमा पथ को माना जाता है. परिक्रमा पथ पारसनाथ तराई का वह इलाका है, जो दुर्गम के साथ-साथ काफी कठिन भी है. इस मार्ग पर पैदल चलना भी लोगों के लिए आसान नहीं है. मार्ग घने व ऊंचे-ऊंचे पहाड़ियों से घिरा पड़ा है. ऐसे में जब भी कोई इस मार्ग पर चलता है तो माओवादी ऊंचे पहाड़ से ही उन पर नजर रख लेते हैं. चूंकि यहां पर एक ही मार्ग है. ऐसे में लोगों को या फिर इसी परिक्रमा पथ से वापस जाना पड़ता है या फिर पहाड़ को पार कर नोकनिया या मधुबन के रास्ते मुख्य मार्ग पर जाया जा सकता है.

इस पथ के ऊंचे पहाड़ों पर नक्सलियों ने जगह-जगह मोर्चाबंदी भी कर रखी है. जहां से हमला करना भी आसान माना जाता है. इस इलाके में कई घना वन क्षेत्र है. साथ ही बीच-बीच में कुछ गांव भी है. टेसाफुली, मोहनपुर, जोभी, दलान चलकरी, सहरिया, बदगावां, नोकनिया, चतरो, बेलाटांड़, बेरीटांड़, पांडेयडीह, पिपराडीह, सतकोटिया, नावाडीह आदि ऐसे गांव हैं, जहां नक्सलियों की तूती बोलती है. इस इलाके में ग्रामीण नक्सलियों के इशारे पर ही काम करते हैं. इन गांवों में पुलिस प्रशासन की पकड़ काफी कमजोर है. यहां के ग्रामीण नक्सलियों के लिए महत्वपूर्ण हथियार माने जाते हैं. इस इलाके को पीरटांड़, निमियाघाट और तोपचांची थाना की सीमा छूती है. साथ ही धनबाद और बोकारो जिला का सीमा रहने का लाभ भी नक्सलियों को काफी मिलता है. जीटी रोड और ग्रैंड कोड रेल लाइन से काफी पास होने के कारण यह इलाका नक्सलियों के लिए बिल्कुल अनुकूल माना जाता है. कई बार नक्सली कम समय में ही पारसनाथ पहाड़ के अपने सुरक्षित जोन से निकलकर जीटी रोड पर किसी बड़े घटना को अंजाम देने के बाद बहुत आसानी से पहाड़ पर पहुंच जाते हैं. ऐसे में पुलिस कुछ नहीं कर पाती.

जिले के निमियाघाट व धनबाद जिले के तोपचांची थाना क्षेत्र में आधा दर्जन से भी अधिक बार नक्सलियों ने जीटी रोड पर पुलिस वाहनों पर हमला किया है और पारसनाथ के सुरक्षित ठिकाने पर पहुंचने में वे सफल रहे हैं. इसके अलावे यहां से कई बड़ी-बड़ी घटना को अंजाम तक पहुंचाने में भी नक्सलियों को सफलता मिली है. 2001 में तोपचांची के पुलिस कैंप पर हमला कर नक्सली चलते बने. इस घटना में दस जवानों की जान गयी थी. पारसनाथ स्टेशन के पास रेलवे ट्रैक पर विस्फोट कर नक्सलियों ने ट्रैक को क्षतिग्रस्त कर दिया. इसी दिन इसरी चौक में दो वाहनों को भी नक्सलियों ने फूंक डाला और आसानी से भागने में सफल रहे. 2008 में लक्ष्मणटुंडा के पास भी पुलिस बल पर हमला कर नक्सलियों ने दो जवानों की जान ले ली. इस समय भी पुलिस हाथ मलते रह गयी. 2012 में निमियाघाट थाना क्षेत्र के तुइयो में एक रोलर व चार ट्रैक्टर को फूंक डाला. जबकि 2013 में तोपचांची के एक गश्ती दल पर हमला कर वे आसानी से भाग निकलने में सफल रहे. इस घटना में भी एक जवान शहीद हो गया था. कहते हैं कि रात के अंधेरे में नक्सलियों की गतिविधियां जीटी रोड पर दिखती ही रहती है. एक स्थान से दूसरे स्थान पर शिफ्ट करने में भी नक्सलियों के लिए जीटी रोड काफी लाभदायक सिद्ध होती है. जीटी रोड को क्रास कर झुमरा पहाड़, चतरा, पलामू होते हुए जंगल के रास्ते छत्तीसगढ़ व आंध्र प्रदेश तक पहुंच जाते हैं.

पारसनाथ के दक्षिणी-पूर्वी इलाका नक्सलियों के लिए सेफ जोन रहने के कारण नक्सलियों के केंद्रीय नेता भी यहां पहुंचते हैं और बैठकें करते हैं. भौगोलिक स्थिति के साथ ही आवागमन की सुलभता के कारण ही यहां नक्सली संगठन के नेताओं का आना-जाना लगा रहता है. ग्रेंड कोड रेल लाइन भी इनके लिए अनुकूल माना जाता है. दूर-दराज के इलाके से संगठन के नेता रेल मार्ग से पारसनाथ स्टेशन पहुंचते हैं और सटे इलाके में प्रवेश कर जाते हैं. किसी को भनक तक नहीं लगती. इसके अलावा आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ से भी पलामू-चतरा के रास्ते संगठन के नेता यहां पहुंचते रहते हैं. एक बार पुलिस इस इलाके में पहुंचने में सफल भी हुई थी और पुलिस ने यहां पहुंच कर एक कैंप को भी नष्ट किया था. बताया जाता है कि केंद्रीय नेताओं के लिए नक्सलियों ने यहां व्यापक व्यवस्था कर रखी थी. पुलिस को कई महत्वपूर्ण दस्तावेज भी हाथ लगा था. हालांकि यहां से लौटने के क्रम में नक्सलियों ने पुलिस पर हमला भी किया था.

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