31.9 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

हर माह नौ करोड़ की हेराफेरी

रांची: सरकार घरेलू उपभोक्ताओं के नाम पर केरोसिन मंगाती है, लेकिन उसे सही तरीके से नहीं देती. शहरी क्षेत्रों में प्रति परिवार प्रति माह तीन लीटर व ग्रामीण क्षेत्रों में चार लीटर केरोसिन देने का प्रावधान है, लेकिन सच्चई यह है कि इसका पालन नहीं होता. दूसरी ओर ऐसे उपभोक्ता भी हैं, जो केरोसिन नहीं […]

रांची: सरकार घरेलू उपभोक्ताओं के नाम पर केरोसिन मंगाती है, लेकिन उसे सही तरीके से नहीं देती. शहरी क्षेत्रों में प्रति परिवार प्रति माह तीन लीटर व ग्रामीण क्षेत्रों में चार लीटर केरोसिन देने का प्रावधान है, लेकिन सच्चई यह है कि इसका पालन नहीं होता. दूसरी ओर ऐसे उपभोक्ता भी हैं, जो केरोसिन नहीं लेते, लेकिन इनके लिए आवंटित केरोसिन की खपत दिखायी जाती है. गत 13 वर्षो से केंद्र राज्य सरकार के लिए हर माह करीब 22500 किलो लीटर केरोसिन आवंटित करता रहा है. एक किलो लीटर में एक हजार लीटर होता है. इस तरह हर माह करीब 2.25 करोड़ लीटर केरोसिन मिलता है. केरोसिन वितरण मामले में होने वाली सभी प्रकार की गड़बड़ी के बारे राज्य सरकार व इसके अधिकारियों को सब कुछ पता है, लेकिन पूरे मामले में सिस्टम ने चुप्पी साध रखी है. इसी कमाई से पूरा खाद्य आपूर्ति विभाग (अपवाद छोड़) पोषित होता है. केरोसिन में व्यापक धांधली के मद्देनजर कुछ माह पहले रांची आयी संसदीय समिति ने भी तेल कंपनियों से साख बचाने की कार्रवाई का ब्योरा मांगा था. केरोसिन में गड़बड़ी के मामले वर्ष 2005 में गिरिडीह में, 2011 में धनबाद में तथा 2012 में खूंटी में दर्ज किये गये थे. धनबाद में तो जांच करने पहुंचे एक पदाधिकारी को जिंदा जलाने की कोशिश तक की गयी थी.

रोशनी व खाना पकाने के लिए केरोसिन : राज्य सरकार के अनुसार, उपभोक्ताओं को केरोसिन घर में रोशनी व खाना पकाने के लिए किया जाता है. इधर, केरोसिन से घर में रोशनी करनेवालों की संख्या में वर्ष 2001 के मुकाबले 10 फीसदी की कमी आयी है. वहीं खाने पकाने के लिए केरोसिन का इस्तेमाल करनेवाले भी 68 फीसदी घटे हैं. महत्वपूर्ण बात यह है कि इस आलोक में खाद्य आपूर्ति विभाग ने केरोसिन आवंटन में कोई कमी नहीं की है, जबकि देश के कुछ राज्यों ने ऐसा किया है.

राज्य में 117 थोक डीलर: राज्य में भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन (17), इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (88) व हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन (12) के कुल 117 थोक डीलरों के माध्यम से केरोसिन पहले राज्य भर के 22726 जन वितरण प्रणाली की दुकान पहुंचता है और फिर उपभोक्ताओं के पास. खाद्य आपूर्ति विभाग के अधिकारियों को थोक व खुदरा डीलरों के परिसर के निरीक्षण का अधिकार है.

गड़बड़ी कैसी-कैसी
राज्य को हर माह 2.25 करोड़ लीटर केरोसिन आवंटित होता है. दो सौ लीटर प्रति ड्रम के हिसाब से कुल 112500 ड्रम में इस तेल का कारोबार होता है. इधर, पीडीएस दुकानदार को केरोसिन के हर ड्रम में औसतन 10 लीटर तक कम केरोसिन मिलता है. इस तरह करीब 11.25 लाख लीटर केरोसिन पहले चरण मे ही खुले बाजार में ब्लैक हो रहा है. खुले बाजार में इसकी कीमत 3.37 करोड़ होती है. लातेहार व कुछ अन्य जिले में प्रति ड्रम 20 लीटर तक केरोसिन कम मिलने की बात सभी जानते हैं. उधर, 28 रुपये प्रति ड्रम कमीशन पानेवाला पीडीएस दुकानदार इसकी भरपाई कार्ड धारकों को तेल में कटौती कर करता है.

हर माह नौ करोड़ की कमाई
केरोसिन से होने वाली कमाई विभागीय अधिकारी भी स्वीकार करते हैं. एक मार्केटिंग ऑफिसर (एमओ) ने खुद कहा कि हमलोग केरोसिन पर जिंदा है. सूत्रों के अनुसार हर माह लगभग 60 लाख लीटर से कम केरोसिन की कालाबाजारी नहीं होती है. पीडीएस में केरोसिन जहां 14-15 रु लीटर मिलता है, वहीं, खुले बाजार में इसकी कीमत लगभग 30 रुपये प्रति लीटर है. इस तरह एक करोड़ लीटर तेल से मिलने वाली अतिरिक्त रकम लगभग नौ करोड़ रुपये होगी.

एपीएल का 60 फीसदी तेल ब्लैक
राज्य के कुल 19.62 लाख एपीएल कार्ड धारियों के नाम से भी केरोसिन का आवंटन होता है, लेकिन सच्चई यह है कि करीब 60 फीसदी एपीएल (हरा) कार्डधारी जन वितरण प्रणाली की दुकान से केरोसिन नहीं लेते. यह सारा केरोसिन ब्लैक में चला जाता है. खाद्य आपूर्ति विभाग बाजार-हाट में वितरण के नाम पर चार-छह सौ से हजार लीटर तक केरोसिन का आवंटन करता है. पर शायद ही किसी ने कहीं ऐसा होते देखा हो. बाजार-हाट में वितरण के नाम पर यह तेल कहीं और जा रहा है.

टैंकरवालों से ही सांठगांठ
बड़ी मात्र में केरोसिन खपाना मुश्किल है, इसलिए विभागीय अधिकारी डीलर के ही साथ मिल कर तेल बेच देते हैं. बदले में मोटी रकम एक साथ मिल जाती है. डीलर के टैंकर वाले क्या करते हैं, यह कोई राज नहीं है. प्रभात खबर ने 20 फरवरी 2007 को इसी से संबंधित एक सचित्र खबर छापी थी, जिसमें कांटाटोली के एक पेट्रोल पंप में टैंकर से ही केरोसिन की मिलावट की जा रही थी. बाद में मामले को दबा दिया गया तथा पेट्रोल पंप चलता रहा.

पूरा क्रशर व्यवसाय केरोसिन पर : डीलर्स एसोसिएशन ने सूचना दी है कि संताल परगना के विभिन्न जिलों के क्रशर व्यवसाय में केरोसिन का भरपूर इस्तेमाल हो रहा है. क्रशर मशीन व जेनरेटर सहित गिट्टी ढोने वाले ट्रक भी केरोसिन से चलते हैं. बताया जाता है कि हर छह से आठ महीने में ट्रक का इंजन खोलना पड़ता है. फिर भी यह सौदा बेहद फायदेमंद है. इस क्षेत्र के उपभोक्ता व पीडीएस दुकानदार का हक मारने वाला यह खेल वर्षो से जारी है.

नीला रंग मिलाना बेअसर
केरोसिन में मिलावट व अन्य गड़बड़ी की जांच के लिए राज्य सरकार का अपना कोई आरएंडडी सेक्शन नहीं है. इसलिए वर्तमान में मिलावट का पता लगाना मुश्किल है. मिलावट व कालाबाजारी के मुद्दे पर तेल कंपनियों ने संबंधित संसदीय समिति को सूचित किया है कि वाहन से केरोसिन तेल डिपो से बाहर जाने के बाद इसका मालिकाना हक डीलर के पास चला जाता है. अत: इसकी मॉनिटरिंग का काम राज्य सरकार का है. गौरतलब है कि कालाबाजारी रोकने के लिए तेल कंपनियां डिपो भेजने से पहले केरोसिन में नीला रंग मिला देती हैं, पर मॉनिटरिंग के अभाव में लीकेज रोकना मुश्किल है.

टैंकरवालों से ही सांठगांठ
बड़ी मात्र में केरोसिन खपाना मुश्किल है, इसलिए विभागीय अधिकारी डीलर के ही साथ मिल कर तेल बेच देते हैं. बदले में मोटी रकम एक साथ मिल जाती है. डीलर के टैंकर वाले क्या करते हैं, यह कोई राज नहीं है. प्रभात खबर ने 20 फरवरी 2007 को इसी से संबंधित एक सचित्र खबर छापी थी, जिसमें कांटाटोली के एक पेट्रोल पंप में टैंकर से ही केरोसिन की मिलावट की जा रही थी. बाद में मामले को दबा दिया गया तथा पेट्रोल पंप चलता रहा.

पूरा क्रशर व्यवसाय केरोसिन पर : डीलर्स एसोसिएशन ने सूचना दी है कि संताल परगना के विभिन्न जिलों के क्रशर व्यवसाय में केरोसिन का भरपूर इस्तेमाल हो रहा है. क्रशर मशीन व जेनरेटर सहित गिट्टी ढोने वाले ट्रक भी केरोसिन से चलते हैं. बताया जाता है कि हर छह से आठ महीने में ट्रक का इंजन खोलना पड़ता है. फिर भी यह सौदा बेहद फायदेमंद है. इस क्षेत्र के उपभोक्ता व पीडीएस दुकानदार का हक मारने वाला यह खेल वर्षो से जारी है.

केरोसिन में गड़बड़ी का सारा दोष पीडीएस दुकानदार पर मढ़ दिया जाता है, पर हमलोग जानते हैं कि मार्केटिंग ऑफिसर (एमओ) व दूसरे अधिकारी तेल से कितना कमा रहे हैं. सरकार इनकी कमाई की जांच करा ले, मामला साफ हो जायेगा. दुमका के तत्कालीन उपायुक्त अबुबकर सिद्दिकी ने सरकार को बाकायदा इसकी रिपोर्ट दी थी कि हर ड्रम में सात से 10 लीटर केरोसिन कम रहता है. दिक्कत यह है कि इन अधिकारियों के खिलाफ बोलने पर संबंधित पीडीएस दुकानदार का लाइसेंस तुरंत रद्द कर दिया जाता है. ऐसे ही मामले में डुमरी में महिलाओं के स्वयं सहायता समूह का पीडीएस लाइसेंस रद्द कर दिया गया है.
ओंकार नाथ झा व रघुनंदन प्रसाद विश्वकर्मा

पीडीएस संघ के पदाधिकारी
यह ऐसा मुद्दा है, जिस पर किसी ने सोचा ही नहीं है. सही बात है कि शहरी लोगों को केरोसिन देने का क्या मकसद है? डीलर व पीडीएस सिस्टम से केरोसिन की गड़बड़ी की बातें भी सही हैं, लेकिन इस पर क्या बोलूं!

एक विभागीय अधिकारी (नाम न छापने की शर्त पर)

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें