रांची: मास्टर प्लान में आयी आपत्ति को दूर करने के लिए रांची नगर निगम में आयोजित जन सुनवाई कार्यक्रम के पहले ही दिन विरोध हुआ. जन सुनवाई में लोगों ने कहा कि सरकार की योजना मास्टर प्लान के नाम पर गरीब आदिवासियों की जमीन को हड़पना है. हड़पी गयी जमीन पर बाहरी लोगों को सरकार बसायेगी. हम किसी भी तरह के प्लान को लागू नहीं होने देंगे. हम उनका सपना साकार नहीं होने देंगे.
लोगों का कहना था कि जन सुनवाई निगम के एसी कमरे में चल रही है, जबकि ग्रामीण वहां गांव में भूखे मर रहे हैं. देश में असली लोकतंत्र गांवों की चौपालों पर दिखता है. जन सुनवाई यहां नहीं, गांवों में हो. इस दौरान रांची मास्टर प्लान संघर्ष मोरचा, बिरसा उलगुलान मंच, सीएनटी एक्ट बचाओ मोरचा, अखिल भारतीय विकास परिषद ने डिप्टी सीइओ को 15 सूत्री मांग पत्र सौंपा. कार्यक्रम में डिप्टी सीइओ ओमप्रकाश साह, टाउन प्लानर घनश्याम अग्रवाल, ओएस नरेश सिन्हा, पूजा कुमारी व मास्टर प्लान बनाने वाली एजेंसी के प्रतिनिधि के रूप में गजेंद्र सिंह व सत्येंद्र राय उपस्थित थे.
यह जन सुनवाई आदिवासियों के साथ धोखा है. मास्टर प्लान का हिंदी प्रारूप चार जनवरी को निगम की वेबसाइट पर अपलोड किया गया. वहीं आपत्ति की तिथि 15 जनवरी तक रखी गयी. ऐसे में कोई हमें यह बताये कि इन 115 पेज के मास्टर प्लान को तीन दिन में कौन लोग पढ़ पाये होंगे. गांव के कितने लोगों के पास कंप्यूटर है. इसका एकमात्र उपाय यह है कि मास्टर प्लान पर आपत्ति देने की तिथि चार मार्च तक की जाये. साथ ही जन सुनवाई का यह कार्यक्रम गांवों में हो.
आरती कुजूर अध्यक्ष, मास्टर प्लान संघर्ष मोरचा
मास्टर प्लान के लागू होने से राज्य के आदिवासियों की सांस्कृतिक धरोहर खत्म हो जायेगी. यहां बाहरी लोगों का जमावड़ा लगेगा, फिर जिन आदिवासियों की जमीन पर इस प्लान को लागू करने का प्रयास किया जा रहा है. वे मजबूरन गांव छोड़ कर जंगलों में जाने को विवश होंगे.
डॉ बिरसा उरांव
अध्यक्ष, अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद
मास्टर प्लान क्या है. इस बारे में यहां के लोगों को पता ही नहीं है. अचानक निगम के द्वारा जन सुनवाई की जा रही है, जो कहीं से भी उचित नहीं है. निगम अधिकारियों को अगर जन सुनवाई करनी ही है, तो उन्हें गांवों में जाना चाहिए. एसी कमरे में बैठक से कुछ होने वाला नहीं है.
देवी दयाल मुंडा, भाजपा नेता
मास्टर प्लान में आदिवासियों के लिए कुछ नहीं है. मास्टर प्लान के नाम पर आदिवासियों की जमीन ली जायेगी. फिर उन जमीनों पर बड़े बड़े बंगले बनेंगे. जिसमें बाहर से लाये गये लोगों को आसरा मिलेगा. आदिवासियों को कुछ मिलने वाला नहीं है. वे पहले भी झोंपड़ी में रहते थे. बाद में भी उनकी वही हालत होगी.
संदीप उरांव