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एचइसी नयी शुरुआत से पहले

-दर्शक- बीआइएफआर से निकल कर एचइसी नयी शुरुआत के द्वार पर खड़ा है : संशय, बेचैनी, अस्थिरता और अस्थिरता के बादल छंटे हैं. पर खुशी के इस क्षण में एचइसी के लोग कुछ बुनियादी चीजें न भूलें, तो भविष्य निखरेगा.पिछले छह वर्षों के दौरान भारत की दुनिया बदल गयी है. बाजार व्यवस्था, उदारीकरण और खगोलीकरण […]

-दर्शक-

बीआइएफआर से निकल कर एचइसी नयी शुरुआत के द्वार पर खड़ा है : संशय, बेचैनी, अस्थिरता और अस्थिरता के बादल छंटे हैं. पर खुशी के इस क्षण में एचइसी के लोग कुछ बुनियादी चीजें न भूलें, तो भविष्य निखरेगा.पिछले छह वर्षों के दौरान भारत की दुनिया बदल गयी है. बाजार व्यवस्था, उदारीकरण और खगोलीकरण (ग्लोबलाइजेशन) के असर से आंख मूंद कर चलनेवाली संस्थाओं-लोगों का भविष्य हमेशा अनिश्चित रहेगा.

इस व्यवस्था की कुछ बुनियादी शर्तें हैं, मसलन (1) काम की संस्कृति बनाना (2) संस्थान पर मुनाफे पर चलना (3) आधुनिकीकरण के साथ तालमेल (4) दुनिया में हो रहे परिवर्तनों को एचआरडी के माध्यम से जानना-समझना (5) एक-एक अफसर-कर्मचारी को मिलनेवाली तनख्वाह-सुविधाओं और काम-उत्पादकता के बीच सही अनुपात का होना. अगर इन चीजों पर गौर नहीं किया गया, तो फिर हालात बेकाबू हो जायेंगे. ऊपर से लेकर नीचे तक लोगों को जिम्मेदारी से खटना होगा.

कामचोरी की सरकारी संस्कृति या आलस्य की संस्कृति से इस नयी दुनिया में कोई संस्थान लंबे दिनों तक जीवित नहीं रह सकता. साथ ही संस्थान को अपने बल लाभ कमाना होगा. सब्सिडी या राहत या, अनुदान का दौर गया. सरकारी कल-कारखाने, जो सरकार पर निर्भर हैं, उनकी हालत रांची स्थित सरकारी कारखाने हाईटेंशन इंसुलेटर फैक्टरी, इइएफ वगैरह की तरह ही होगा. बाजार में अपनी उत्पादकता, क्वालिटी व गुंज-कौशल के आधार पर एचइसी अपनी साख बना कर यह काम कर सकता है. इसके लिए जरूरी है कि काम करने का नया माहौल बने. आधुनिक तकनीक को जान-समझ कर एचइसी दुनिया के अपने बड़े प्रतिस्पर्द्धियों के मुकाबले खड़ा हो, इसकी कोशिश हो. एक-एक व्यक्ति जितना एचइसी से लेता है, उससे बढ़ कर उसका योगदान होगा, तभी संस्थान टिकाऊ होगा.

इससे भी आवश्यक है कि पुराने तौर-तरीके से काम करनेवाली यूनियन संस्कृति खत्म हो. सैकड़ों की तादाद में सरकारी कारखानों में यूनियनें क्यों बनती हैं? खुद यूनियन नेता निर्धारित समय तक क्यों काम नहीं करते? यूनियन नेताओं के गलत कामों पर सवाल क्यों नहीं उठता? यह सब कर्मचारी-अफसर करें, अन्यथा उनका भविष्य पुरानी शैली में काम करनेवाले नेताओं के हाथ में सुरक्षित नहीं रहनेवाला. क्यों आज कोई यूनियन नेता मजदूरों-अफसरों के बीच श्रद्धा और प्रेरणा का पात्र नहीं है? क्या बोझ बने यूनियन नेताओं की प्रासंगिकता है?

इसके बावजूद सवाल उठे कि एचइसी के अंदर बाहरी तत्वों ने क्या नुकसान किये हैं? क्यों पुलिस के लोग या राजनीति दलों के लोग जबरन एचइसी के क्वार्टर पर कब्जा करके रहेंगे? इस नये दौर में एचइसी को ऐसे कर्मचारी-अफसर चाहिए, जो उसकी पीड़ा महसूस करते हों. एक-एक चीज की बरबादी देख कर जिनके मन में कशिश पैदा होती हो. अगर ऐसी जमात तैयार नहीं होगी, तो भविष्य नहीं संवरेगा. इस बदलती दुनिया की हकीकत समझ कर एचइसी आगे बढ़ेगा, तो सरकारी कारखानों के बारे में और सार्वजनिक संस्थाओं के संबंध में लोगों के अंदर नया भरोसा पैदा होगा.

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