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सेना को सम्मान दीजिए

-दर्शक- रांची मेडिकल कॉलेज (आरएमसीएच) में सेना के अफसरों-जवानों के साथ जो सलूक हुआ, वह अति शर्मनाक है. जब देश में एक-एक कर संस्थाएं टूट रही हों- बिखर रही हों- अमर्यादा और अनैतिक कारोबार का हिस्सा बन रही हों, तब ‘सेना’ के प्रति ऐसा अमानवीय व्यवहार स्पष्ट करता है कि यह समाज कितना खोखला और […]

-दर्शक-

रांची मेडिकल कॉलेज (आरएमसीएच) में सेना के अफसरों-जवानों के साथ जो सलूक हुआ, वह अति शर्मनाक है. जब देश में एक-एक कर संस्थाएं टूट रही हों- बिखर रही हों- अमर्यादा और अनैतिक कारोबार का हिस्सा बन रही हों, तब ‘सेना’ के प्रति ऐसा अमानवीय व्यवहार स्पष्ट करता है कि यह समाज कितना खोखला और स्वार्थी हो गया है. सेना में भ्रष्टाचार या सेना के वरिष्ठ अफसरों के भ्रष्टाचार की घटनाएं सार्वजनिक होती रही हैं, फिर भी जिस देश की राजनीति दुनिया के सबसे बड़े ‘शेयर घोटाले’ ‘बोफोर्स’ ‘पनडुब्बी’ जैसे प्रकरणों के स्तंभ पर टिकी हो, उस देश की रक्षक सेना के कुछ लोगों पर भ्रष्टाचार के मामूली आरोप नगण्य हैं, वीर और बहादुर सपूतों की भूलों को देश नजरंदाज करता है.

बर्फ की बरसात में भी चौकस, सीमा पर हर क्षण नाचती मौत के बीच जीनेवाले बदादुरों, बाढ़-अग्नि जैसे विनाशकारी प्राकृतिक आपदा में लोगों के तारनहार, देश की रक्षा के लिए बहादुरी से मौत को गले लगानेवाले भारत मां के स्वाभिमानी धरती पुत्रों की सौ भूले माफ होनी चाहिए.

पर आरएमसीएच में क्या हुआ? सेना के अपने तहजीब-मूल्य मर्यादा हैं. शत्रु की मौत के बाद भी वे उसके शव का ‘सम्मान’ (ऑनर) करते हैं. इस कर्म के पीछे कितना विराट दर्शन हैं कि मौत के बाद शरीर-धर्म के साथ दुश्मनी भी खत्म हो जाती है. इस कारण शव या मरे हुए के प्रति कैसी दुर्भावना? लेकिन सेना के इस उदात्त अदर्श के प्रति अवमानना किन डॉक्टरों ने की? न सिर्फ अवमानना, बल्कि लाश के प्रति अमर्यादित-अशोभन आचरण और ऊपर से उनकी पिटाई, सोचना चाहिए कि सेना की अपनी एक अलग दुनिया है, जहां आज भी अनुशासन है, प्रतिबद्धता है, कठोर संकल्प है और अपनी आचारसंहिता के प्रति पूर्ण समर्पण. हम रोज तिरंगा के साथ अभद्र व्यवहार देख कर भी मौन रहते हैं. पर सेना के जवान नहीं रह सकते और उन्हें नहीं रहना चाहिए. इसी तरह लाश की अवमानना के प्रति सेना के जवानों में आक्रोश की बात असामान्य घटना नहीं है.

आरएमसीएच में जिस तरह सामान्य लोगों के साथ व्यवहार होता है. अगर ऐसे सामान्य लोग संगठित होते, तो वहां रोज ही हिंसक घटनाएं होती. मामला सेना का था, इस कारण प्रकाश में आया. वरना आम नागरिकों की लाशों के साथ तो यह रोजमर्रा का व्यवहार है, जो बीमार हैं, असहाय हैं, वे तो डॉक्टरों को ‘भगवान का दूसरा अवतार’ मानकर उनके पास जाते हैं. इसी आरएमसीएच में आज भी अनेक डॉक्टर, नर्स या कर्मचारी ऐसे हैं, जो ‘सेवाभाव’ से मरीजों की हर संभव सहायता – मदद या देख-रेख करते हैं. फिर वहां कौन सी ताकतें हैं, जो मौत के बाद सौदेबाजी करती हैं. मरीजों को आतंकित करती हैं.

स्वाध्याय और सेवा के इस आश्रम में बम फोड़नेवाले कौन हैं? परीक्षा में बॉयकाट, चाकू-पिस्तौल, हड़ताल और अव्यवस्था फैलानेवालों को वहां के डॉक्टरों-विद्यार्थियों को ही पहचान कर अलग करना होगा. प्रताड़ित करना होगा, वरना डॉक्टरों की मर्यादा-गरिमा खत्म हो जायेगी. शहर के कई वरिष्ठ डॉक्टर इस प्रकरण से घोर नाराज हैं कि अब कुछ डॉक्टर ‘लाश’ पर भी ओछी हरकतें-राजनीति कर रहे हैं. समाज की बेहतर प्रतिभा इस पेशे में जाती रही है, आज भी जाती है. अत: इन प्रतिभावान डॉक्टरों को आत्मनिरीक्षण करना चाहिए कि जो उनके बीच ‘बम फोड़ते हैं’ पिस्तौल तानते हैं मारपीट करते हैं. अभद्रता करते है. क्या उन मुट्ठी भर लोगों के कारण यह पवित्र पेशा बदनाम होगा. ऐसे काम करनेवालों के लिए क्या विशेषण उपयुक्त होते हैं और उनकी जगह कहा होती है, क्या यह डॉक्टर समुदाय के निष्ठावान लोग नहीं जानते?

शहर के जो भी वरिष्ठ डॉक्टर हैं, आरएमसीएच के जो अधिसंख्य समर्पित डॉक्टर, नर्स, कर्मचारी है, उन्हें आगे आ कर इस तरह की प्रवृत्तियों के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए. अगर ऐसे मुद्दों पर भी डॉक्टर या समाज के दूसरे वर्ग निजी स्वार्थ-हित से ऊपर नहीं उठते, तो यह दुर्भाग्यपूर्ण होगा. भूल स्वीकार करने और सौहार्द-आत्मीय रिश्ता बनाने से ही समाज परिवार टिकता है, वरना इन समुदायों की नियति है, बिखरना.

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