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संदर्भ : रांची विश्वविद्यालय, जो समाज हम गढ़ चुके हैं

-दर्शक- उच्च मध्य वर्ग, प्रशासनिक तबके और भाषणबाजों के बीच समाज के पतन का ‘विधवा विलाप’ आप रोजाना सुनते होंगे, पर ऐसा कायर, अपाहिज और संवेदनशून्य तबका आपको नहीं मिलेगा. जब-जब अवसर आते हैं, यह वर्ग मूकदर्शक बन जायेगा. बंद दरवाजों के भीतर अपनी दुनिया सुरक्षित समझते हुए टीवी, वीसीआर और भौतिक सुविधाओं में डूब […]

-दर्शक-

उच्च मध्य वर्ग, प्रशासनिक तबके और भाषणबाजों के बीच समाज के पतन का ‘विधवा विलाप’ आप रोजाना सुनते होंगे, पर ऐसा कायर, अपाहिज और संवेदनशून्य तबका आपको नहीं मिलेगा. जब-जब अवसर आते हैं, यह वर्ग मूकदर्शक बन जायेगा. बंद दरवाजों के भीतर अपनी दुनिया सुरक्षित समझते हुए टीवी, वीसीआर और भौतिक सुविधाओं में डूब कर ये लोग पतन का रोना रोते हैं.इन्हें चाहिए अपनी सुंदर और आबाद दुनिया, साथ ही बाहर बेहतर कानून-व्यवस्था, अमर-चैन और अपराराधरहित समाज इन्हें नहीं मालूम कि समाज में रहनेवाला एक-एक व्यक्ति अपने कार्यों-सोच से उसे गढ़ता और सुंदर बनाता है.

आज जो समाज हम गढ़ चुके हैं (अपनी तटस्थता से या मूक-दर्शक रहकर) उसमें कहीं संवेदनशील-ईमानदार व्यक्ति के लिए जगह नहीं है. रांची विश्वविद्यालय में काशीनाथ गोप परीक्षा नियंत्रक हैं, जिस विश्वविद्यालय में घूस लेनेवाले अनेक शिक्षक हैं, भ्रष्ट अफसर हैं. परीक्षा की कापियां बेच कर खानेवाले धंधेबाज हैं, कर्मचारियों का हैं, भ्रष्ट अफसर हैं, परीक्षा की कापियां बेच कर खानेवाले धंधेबाज हैं, कर्मचारियों का रहनुमा बन कर विश्वविद्यालय लूटनेवाले लोग हैं, वहां परीक्षा नियंत्रक काणीनाथ गोप जैसे लोग भी हैं, जो परीक्षा नियंत्रक की कालीकोठरी में भी बेदाग हैं. विश्वविद्यालय के ही लोगों का कहना है कि परीक्षा विभाग में जहां छपाई आदि का प्रतिवर्ष बड़ा कारोबार होता है, वहां रहकर भी काशीनाथ जी जैसे लोग रिक्शे पर ही घूमते हैं, अपनी ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा और अनुशासित कार्य के लिए वह पूरे विश्वविद्यालय में जाने जाते हैं.

पर इन खूबियों के बदले उन्हें क्या पुरस्कार मिल रहा है? कोई ऐरा-गैरा जा कर उन्हें गालियां दे आता है. धमका आता है. 10 अप्रैल को एक पेशेवर छात्रनेता किसी प्रणव कुमार बब्बू का एमए का फार्म लेकर गये. यह फार्म देर से आया, इस कारण परीक्षा नियंत्रक ने इस फार्म पर फाइन के साथ फीस जमा करने का आदेश दिया था. भला पेशेवर छात्रनेताओं का दबदबा कैसे चलेगा, अगर उनके समर्थक छात्रों को भी नियम-कानून के अनुसार चलना-पढ़ना या पास करना हो. किसी भी उत्तरादयी समाज में ऐसे पेशेवर लोगों की जगह सीखचों के पीछे होती है. नियम-कानून आचार संहिता या मर्यादाएं ‘सर्वजनहिताय’ होती हैं, उन्हें भंग करने के लिए (हालांकि बिहार में हर स्तर पर हर जगह यह हो रहा है) जो दबाव डालते हैं, वे समाज विरोधी हैं.

काशीनाथ गोप का यही अपराध है कि वे नियम-कानून से चलते हैं. ईमानदारी से काम करते हैं, इस कारण उन्हें धमकी दी जाती है, गालियां दी जाती हैं. सूरसी उठा कर लोग मारने दौड़ते हैं. इस उम्र में किसी व्यक्ति को ईमानदारी, निष्ठा के कारण जलालत सहना पड़े, यह पूरे समाज के लिए र्श्मनाक है, यही विसंगति- अंतर्विरोध है कि हम जीवन में सार्वजनिक शुचिता-नैतिकता के लिए रोना रोते हैं (या पाखंड करते हैं) पर जब समाज में इन्हें कायम करने का अवसर आता है, तो निर्विकार बन जाते हैं. कौन-कौन संगठन-राजनीतिक दल या नेता काशीनाथ गोप के समर्थन में आगे आये हैं? किस शिक्षक संघ ने उनके पक्ष में बयान दिया है? किस कर्मचारी संघ ने अपराधियों को गिरफ्तार कर सख्त सजा देने की मांग की है? किस स्वैच्छिक संगठन ने इस घटना की सार्वजनिक भर्त्सना या निंदा की है? किस सरकारी अफसर ने अपनी सीमा से आगे बढ़ कर ऐसे लोगों को सुरक्षा देने और शरारती तत्वों को दंडित करने का साहस किया है? यह किसी एक काशीनाथ गोप का मसला नहीं है.

अगर यह समाज ऐसे ईमादार – कर्तव्यनिष्ठ लोगों के प्रगति असंवेदनशील या क्रूर बनता है, तो उस समाज को ‘सुंदर’ बनाने का स्वांग छोड़ देना चाहिए. फिर क्या बुरा है कि अपराधी, डकैत, चोर समाज के रहनुमा बन जायें, जो लोग काशीनाथ गोप जैसे लोगों को धमकाते फिरते है. उनकी बहादुरी यही है कि अगर कल से श्री गोप गुंडे पालने लगें, स्वजातीय अपराधियों को प्रोत्साहन देने लगें, तो फिर उन्हें धमकी देनेवाला कोई नहीं होगा. कुरसी उठा कर मारने का प्रयास कोई नहीं करेगा.

ऐसी हरकत करनेवाले बुनियादी तौर से कायर और समाज भीरू होते हैं, जिस दिन ऐसे लोगों के खिलाफ यह समाज या इसका एक तबका उठ खड़ा होगा, इन कथित बहादुरों की बहादुरी गायब हो जायेगी. बड़े-बड़े तानाशाह जब लोग लहर में घुटने टेक देते हैं, तो इन कायरों की क्या बिसात, लेकिन यह तब तक नहीं होगा, जब तक अपने ड्राईंगरूम में बैठकर हम सामाजिक शुचिता नैतिक मापदंड पर बहस का पाखंड करते रहेंगे.

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