झारखंड में नौ साल पहले ही लोकायुक्त का गठन हो चुका है. इसके बावजूद भ्रष्टाचार के मामले में लिप्त लोगों में कोई भय नहीं है. कमजोर लोकपाल होने के कारण झारखंड में यह असरहीन हो गया है. लोकपाल इतना कमजोर है कि जांच एजेंसियां भी लोकायुक्त की बात को नहीं सुनती. इसलिए झारखंड को एक मजबूत लोकपाल चाहिए.
रांची: झारखंड में लोकायुक्त के पास भ्रष्टाचार के 815 मामले लंबित हैं. हर साल लगभग आठ सौ नये मामले लोकायुक्त के पास आते हैं. झारखंड में बेहद कमजोर लोकपाल है. यहां लोकायुक्त को एक स्वतंत्र जांच एजेंसी की भी मान्यता नहीं मिली है. झारखंड लोकायुक्त अधिनियम के तहत दोषियों पर कार्रवाई करने का कोई अधिकार उन्हें नहीं दिया गया है. लोकायुक्त को सरकारी जांच एजेंसियों पर जांच के लिए निर्भर रहना पड़ रहा है. स्थिति यह है कि लोकायुक्त के निर्देश के पांच वर्ष गुजर जाने के बाद भी निगरानी और सीआइडी की ओर से जांच रिपोर्ट सौंपी नहीं गयी है. इस प्रकार के 37 मामलों के संबंध में लोकायुक्त की ओर से निगरानी और सीआइडी को कई बार पत्र लिखा गया है, लेकिन अब तक इसकी रिपोर्ट नहीं मिली है.
अधिकार नहीं होने के कारण यह संस्था केवल नाम की भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसी रह गयी है. लोकायुक्त को जांच एजेंसी (निगरानी, सीआइडी और पुलिस) पर निर्भर रहना पड़ता है जो पहले से ही काम के बोझ से दबी है. इन जांच एजेंसियों के पास पहले से ही कई मामले लंबित चल रहे हैं. अन्ना के आंदोलन के बाद संसद से लोकपाल विधेयक पारित हो चुका है. हाल में केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ने झारखंड में 15 फरवरी तक एक सशक्त लोकपाल बनाने के लिए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को पत्र लिखा है.
2004 से काम कर रहा लोकायुक्त कार्यालय
वर्ष 2001 में झारखंड लोकायुक्त अधिनियम लागू किया गया. इसके बाद भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए चार दिसंबर 2004 को झारखंड हाइकोर्ट के रिटायर जस्टिस लक्ष्मण उरांव को लोकायुक्त बनाया गया. इसके बाद लोकायुक्त कार्यालय का काम शुरू हुआ. वर्ष 2009 में न्यायमूर्ति लक्ष्मण उरांव की कार्य अवधि समाप्त होने के बाद लगभग 13 माह तक पद खाली रहा. इसके बाद तीन जनवरी 2011 को हाइकोर्ट के रिटायर जस्टिस अम्रेश्वर सहाय को लोकायुक्त नियुक्त किया गया. गत वित्तीय वर्ष के दौरान लोकायुक्त ने पेंशन और सेवानिवृत्ति से संबंधित 101 मामलों का निष्पादन किया है.
लोकपाल को मजबूत नहीं किया गया
झारखंड लोकायुक्त को मध्यप्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, केरल एवं बिहार की तरह कारगर बनाने के लिए कई बार सरकार को पत्र लिखा गया. पत्र में अधिनियम में संशोधन कर लोकायुक्त के अधीन एक जांच एजेंसी की मांग की गयी थी, ताकि बिना अनावश्यक विलंब के निष्पक्ष जांच करायी जा सके. इसके अलावा लोकायुक्त को भ्रष्ट लोक सेवकों द्वारा अवैध रूप से अजिर्त संपत्ति कुर्क करने के लिए छापा मारने, तलाशी एवं जब्त करने की शक्ति प्रदान करने की बात कही गयी थी. लेकिन इस दिशा में सरकार की ओर से कोई पहल नहीं की गयी है.
हर वर्ष आते हैं 800 से अधिक मामले
लोकायुक्त के पास हर वर्ष 800 से अधिक मामले दायर हो रहे हैं. वित्तीय वर्ष 2011-12 के दौरान 855 मामले दायर हुए. वर्ष 2012-13 के दौरान 864 नये मामले आये. वर्ष 2013 में जनवरी से लेकर 31 दिसंबर तक 662 मामले दायर हुए. इसमें अधिकार मामले अधिकारियों के भ्रष्टाचार से संबंधित हैं.