-सुनील कुमार झा-
रांचीः झारखंड के 3057 मध्य विद्यालयों में से 2660 में प्रधानाध्यापक नहीं हैं. कुछ जिलों में एक भी स्कूल में प्रधानाध्यापक नहीं हैं. करीब दर्जन भर जिलों में प्रधानाध्यापकों की संख्या 10 से भी कम है. स्कूलों में हेडमास्टर के नहीं होने से काफी परेशानी हो रही है. शिक्षकों की वेतन निकासी के लिए संबंधित विद्यालय में प्रधानाध्यापक की स्वीकृति आवश्यक है. प्रधानाध्यापक ही निकासी सह व्ययन पदाधिकारी होते हैं. फिलहाल एक प्रधानाध्यापक के जिम्मे एक से अधिक प्रखंड के शिक्षकों की वेतन निकासी की जिम्मेदारी है.
नियुक्ति की मांग की गयी है
अखिल झारखंड प्राथमिक शिक्षक संघ के महासचिव राममूर्ति ठाकुर का कहना है कि जिस तरह बिना अभिभावक के परिवार की स्थिति खराब हो जाती है, उसी तरह बिना प्रधानाध्यापक के विद्यालय की स्थिति दिन-प्रतिदिन खराब हो रही है. इससे विद्यालय के अनुशासन व शिक्षण कार्य प्रभावित होते हैं. शिक्षा के अधिकार अधिनियम के अनुरूप भी विद्यालय में प्रधानाध्यापक का होना अनिवार्य है. शिक्षा मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक से प्रधानाध्यापकों की नियुक्ति की मांग की गयी, पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है.
क्यों है कमी
राज्य में प्राथमिक व मध्य विद्यालय के लगभग आठ हजार शिक्षकों की प्रोन्नति लंबित है. शिक्षकों को नियुक्ति तिथि 1994 से प्रोन्नति दी जानी है. प्रोन्नति मिलने से लगभग एक हजार शिक्षक प्रधानाध्यापक बन जायेंगे. इससे कमी कुछ हद तक दूर हो सकेगी.
क्या हो रहा असर
-स्कूल के शैक्षणिक माहौल पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है
-विद्यालय का अनुशासन प्रभावित हो रहा है
-शिक्षकों को वेतन निकासी में भी परेशानी हो रही है. एक प्रधानाध्यापक को 50-50 स्कूल का निकासी व व्ययन पदाधिकारी बना दिया गया है. शिक्षक को अपने वेतन निकासी के लिए प्रधानाध्यापक की स्वीकृति लेने 50 से 100 किलोमीटर तक जाना पड़ता है.
‘‘बिना प्रधानाध्यापक के विद्यालय की स्थिति दिन-प्रतिदिन खराब हो रही है. इससे विद्यालय के अनुशासन व शिक्षण कार्य प्रभावित हो रहे हैं. राममूर्ति ठाकुर, महासचिव, प्राथमिक शिक्षक संघ
कुल 58 अंगीभूत कॉलेज 41 में प्राचार्य के पद खाली
-संजीव कुमार सिंह-
रांचीः राज्य के कुल 58 अंगीभूत कॉलेजों में 41 में स्थायी प्राचार्य नहीं हैं. इन कॉलेजों का कामकाज प्रोफेसर इंचार्ज के भरोसे चल रहा है. कुल 17 कॉलेजों में ही स्थायी प्राचार्य हैं, जिनकी नियुक्ति कमीशन से हुई है. इनकी नियुक्तियां संयुक्त बिहार में ही हुई थी.
कामकाज प्रभावित : कॉलेजों में स्थायी प्राचार्य नहीं रहने से नीतिगत व प्रशासनिक फैसला लेने में परेशानी आ रही हैं. रांची विवि में 15 कॉलेजों में छह प्राचार्य ही कमीशन से नियुक्त हैं. इनमें से डॉ एएन ओझा वर्तमान में नीलांबर-पीतांबर विवि में प्रतिकुलपति हैं. जेएल उरांव जेपीएससी में सदस्य हैं. इस तरह रांची विवि में प्राचार्य के नौ पद रिक्त हैं. पर 11 कॉलेजों में प्रोफेसर इंचार्ज ही कामकाज देख रहे हैं. नीलांबर-पीतांबर विवि में चार कॉलेज हैं, जहां एक भी स्थायी प्राचार्य नहीं हैं. कोल्हान विवि में कुल 11 कॉलेजों में दो में ही स्थायी प्राचार्य हैं.
मामला कहां फंसा है
मानव संसाधन विकास विभाग द्वारा प्राचार्य नियुक्ति के लिए आरक्षण रोस्टर क्लियर कर जेपीएससी को भेज दिया गया है. विवि की ओर से भेजी गयी अधियाचना में नियुक्ति के लिए योग्यता पांचवें वेतनमान के आधार पर, वेतनमान छठे वेतनमान के आधार व नियुक्ति यूजीसी के नियमानुसार करने की बात कही गयी. आयोग ने इस पर सरकार से दिशा-निर्देश मांगा है. इसके बाद विवि द्वारा एक्ट में संशोधन के लिए यूजीसी के नियमानुसार नियुक्ति प्रस्ताव सरकार के पास भेजा गया. विभाग द्वारा इस प्रस्ताव को कार्मिक के पास भेजा गया, कार्मिक ने पुन: इस मामले में मानव संसाधन विकास विभाग से कुछ मामलों की जानकारी मांगी है.
क्यों है कमी