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जगन्नाथ राम की हत्या, मुद्दा क्यों नहीं है

-अजय- जगन्नाथ राम अध्यापक थे. राजस्थान पुलिस के कुछ जवानों ने उनके पड़ोसी की पत्नी पर गलत निगाह डाली. जगन्नाथ राम ने विरोध किया. पुलिस ने उन्हें मार डाला. दबाव के बाद प्रशासन ने मामला दर्ज किया. उनका शव पहले कहीं गाड़ा गया. विरोध के बाद उसे निकाल कर इस शर्त पर उनके स्वजनों की […]

-अजय-

जगन्नाथ राम अध्यापक थे. राजस्थान पुलिस के कुछ जवानों ने उनके पड़ोसी की पत्नी पर गलत निगाह डाली. जगन्नाथ राम ने विरोध किया. पुलिस ने उन्हें मार डाला. दबाव के बाद प्रशासन ने मामला दर्ज किया. उनका शव पहले कहीं गाड़ा गया. विरोध के बाद उसे निकाल कर इस शर्त पर उनके स्वजनों की सौंपा गया कि वे वहीं अंतिम क्रिया-कर्म कर दें. यानी जो निर्दोष व्यक्ति कानून के रखवालों द्वारा अकारण मारा गया, उसके शव का अंतिम दर्शन भी उसके भाई, बंधु, सगे और गांववाले न कर सके, जो व्यक्ति हत्या के बाद मानवीय गरिमा, मर्यादा और पौरुष का प्रतीक बन गया, उसका अंतिम संस्कार भी भय के माहौल में संपन्न हुआ.

पुलिस के लोग अक्सर नसीहत देते घूमते हैं कि कायरों के समाज में अपराधी पलते-बढ़ते हैं. उनसे पूछिये कि जगन्नाथ राम जैसे बहादुर व्यक्ति की हत्या किन अपराधियों ने की और आप नसीहत देनेवाले इस प्रकरण में पुलिस भूमिका के बारे में चुप क्यों हैं? अगर जगन्नाथ राम जैसे बहादुर की हत्या आप पुलिसवाले करते हैं, तो फिर समाज तो कायरों का ही बनेगा.

चुनाव के दिन हैं, फिर भी हत्या का मामला मुद्दा क्यों नहीं हैं? किसी से पूछिए कि आप अड़की के जगन्नाथ राम को जानते हैं? उन्हें पुलिस ने क्यों मार डाला? आप इस प्रसंग पर क्या कर रहे हैं? चुनाव नजदीक होने से हर दल का हरिजन प्रेम भी उमड़ पड़ा है. हालांकि किसी भी जाति-धर्म के निर्दोष व्यक्ति की हत्या, अपराध है, फिर भी सारे राजनेताओं से सवाल करिये कि हरिजन जगन्नाथ राम, की हत्या का क्या प्रायश्चित आप कर रहे है?

दरअसल हरिजनों के लिए दिखावटी आंसू बहानेवाले राजनीतिक दल इसे मुद्दा नहीं बनायेंगे. अध्यापक जगन्नाथ राम अपराधी नहीं थे, नहीं तो उनकी हत्या सबसे गंभीर मुद्दा बन जाती. वह किसी जातीय-धार्मिक संगठन से नहीं जुड़े थे, वरना अब तक ऐसे संगठन उनकी हत्या के सवाल पर मौन न बैठते. वह भारत के उन बेजुबान दबे-कुचले-निरीह नागरिकों के नुमाइंदे थे, जो जाति-धर्म से परे हैं, पर स्वाभिमान के सवाल पर तन कर खड़ा होना जानते हैं. और भारत की 90 करोड़ आबादी में से 60 करोड़ लोग तो निरीह-बेजुबान ही हैं, जिन्हें धर्म और जाति के ठेकेदार अपने निजी लाभों के लिए दांव पर लगा रहे हैं.

इस सवाल पर स्त्री संगठनों की बेचैनी समझ में आ रही है. महिलाएं जगन्नाथ राम की हत्या का अर्थ-मर्म समझती हैं. इसलिए वह पहल कर रही हैं. पर उनकी पहल को तब गति मिलेगी, जब भारी पैमाने पर लोग उनके पीछे उमड़ें. शिक्षक खड़े हों. छात्र खड़े हों. गांववाले एकत्र हों और इस हत्या से आहत लोग एकजुट हों. इस विरोध प्रदर्शन का मकसद साफ हो. (1) हत्या करनेवाले तत्काल गिरफ्तार किये जायें.

उन पर मुकदमा चले. (2) जगन्नाथ राम के परिवारवालों को सरकारी कोष से राहत दी जाये. (3) यहां अपराधी मारे जाते हैं, तो उनके सगे-संबंधियों को नौकरी मिलती है, फिर जगन्नाथ राम जैसे लोगों के सगों को सरकारी नौकरी क्यों नहीं? (4) चौथे चरण में जगन्नाथ राम की आदमकद मूर्ति लगाने का जन अभियान चलें, जिस पर यह दर्ज हो कि एक महिला के सम्मान को बचाने के लिए उठे एक साहसी अध्यापक की आवाज को पुलिसवालों ने 12 गोलियां मार कर खामोश कर दिया.

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