-अजय-
पुलिस के लोग अक्सर नसीहत देते घूमते हैं कि कायरों के समाज में अपराधी पलते-बढ़ते हैं. उनसे पूछिये कि जगन्नाथ राम जैसे बहादुर व्यक्ति की हत्या किन अपराधियों ने की और आप नसीहत देनेवाले इस प्रकरण में पुलिस भूमिका के बारे में चुप क्यों हैं? अगर जगन्नाथ राम जैसे बहादुर की हत्या आप पुलिसवाले करते हैं, तो फिर समाज तो कायरों का ही बनेगा.
दरअसल हरिजनों के लिए दिखावटी आंसू बहानेवाले राजनीतिक दल इसे मुद्दा नहीं बनायेंगे. अध्यापक जगन्नाथ राम अपराधी नहीं थे, नहीं तो उनकी हत्या सबसे गंभीर मुद्दा बन जाती. वह किसी जातीय-धार्मिक संगठन से नहीं जुड़े थे, वरना अब तक ऐसे संगठन उनकी हत्या के सवाल पर मौन न बैठते. वह भारत के उन बेजुबान दबे-कुचले-निरीह नागरिकों के नुमाइंदे थे, जो जाति-धर्म से परे हैं, पर स्वाभिमान के सवाल पर तन कर खड़ा होना जानते हैं. और भारत की 90 करोड़ आबादी में से 60 करोड़ लोग तो निरीह-बेजुबान ही हैं, जिन्हें धर्म और जाति के ठेकेदार अपने निजी लाभों के लिए दांव पर लगा रहे हैं.
उन पर मुकदमा चले. (2) जगन्नाथ राम के परिवारवालों को सरकारी कोष से राहत दी जाये. (3) यहां अपराधी मारे जाते हैं, तो उनके सगे-संबंधियों को नौकरी मिलती है, फिर जगन्नाथ राम जैसे लोगों के सगों को सरकारी नौकरी क्यों नहीं? (4) चौथे चरण में जगन्नाथ राम की आदमकद मूर्ति लगाने का जन अभियान चलें, जिस पर यह दर्ज हो कि एक महिला के सम्मान को बचाने के लिए उठे एक साहसी अध्यापक की आवाज को पुलिसवालों ने 12 गोलियां मार कर खामोश कर दिया.