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रिम्स में लावारिस मरीजों की व्यथा अब जायें तो जायें कहां..

रांची: बीमारी व हादसों की चपेट में आकर जीवन के उपयोगी क्षण पहले ही गंवा चुके हैं. मरने की कगार पर थे, तो अस्पताल में दवा की गयी. महीनों अस्पताल में रहे. बीमार व बेकार समझकर घर वालों ने पहले ही त्याग रखा है, अब अस्पताल प्रबंधन भी इनको रखने से इनकार कर रहा है. […]

रांची: बीमारी व हादसों की चपेट में आकर जीवन के उपयोगी क्षण पहले ही गंवा चुके हैं. मरने की कगार पर थे, तो अस्पताल में दवा की गयी. महीनों अस्पताल में रहे. बीमार व बेकार समझकर घर वालों ने पहले ही त्याग रखा है, अब अस्पताल प्रबंधन भी इनको रखने से इनकार कर रहा है. जीवन के इस पड़ाव में इनको यह नहीं सूझ रहा है कि जायें तो जायें कहां.

बिहार की रहने वाली इनरमती (80), याददाश्त खो चुकी सुबरी (65), रेनु (65) व लुमनी (70), बोकारो निवासी अशोक अधिकारी (65) और बांका, बिहार निवासी एक पैर से अपंग पंकज (45) जैसे एक दर्जन से अधिक रिम्स के मरीजों को हटाने के लिए रिम्स प्रबंधन ने एसडीओ से आग्रह किया है. गत एक वर्ष से अधिक से रिम्स का फर्श ही इनका आवास है. इनका इलाज हो चुका है, लेकिन घरवाले इनको नाकारा व अनुपयोगी समझकर त्याग चुके हैं. रिम्स प्रबंधन ने सोमवार को रांची एसडीओ से इन लावारिस लोगों को हटाने के लिए पत्र लिखा है. पत्र में यह कहा गया है कि इन लोगों को प्रशासन अनाथालय एवं अन्य जगर ले जाये.

अब कहां जायें..
बिहार के जमुई की रहनेवाली अस्सी वर्षीया इनरमती ने नम आंखों से प्रभात खबर को बताया कि उसके पति को मरे 30 साल हो गया. एक बेटा था. वह भी अब सुधि लेने नहीं आता. बेटे के इंतजार में आंखों की ज्योति गंवा चुकी मां अब भी रोती है. ट्रॉमा सेंटर के सामने गैलरी में पांच साल से जीवन काट रही है. अब कहां जायेगी, इसका जवाब उसके पास नहीं है.

पत्नी व बेटी ने छोड़ा
रिम्स की गैलरी में पड़े अशोक अधिकारी (65) बोकारो के एक हॉस्टल में काम करते थे. छत से गिरकर पैर टूट गया. शुरू में एक माह तक घरवाले आये लेकिन साल भर से पत्नी व बेटी भी हालचाल पूछने नहीं आतीं. अपंग होकर कहां जाएं, क्या करें कुछ नहीं सूझता. याददाश्त खो चुकी सुबरी (65), रेनु (65) व लुमनी (70) सहित दर्जन भर लोग अस्पताल के सहारे जी रहे हैं.

रहमो करम पर जी रहे हैं लावारिस लोग
रिम्स में पड़े ये लावारिस मरीज या बुजुर्ग दूसरों के रहमो करम पर जी रहे हैं. अस्पताल प्रबंधन, चिकित्सक एवं अस्पताल आने जानेवाले इन लोगों पर रहम कर खाना दे देते हैं. कई बार खाना नहीं मिलने पर इन्हें भूखे भी रहना पड़ता है. कोई वीआइपी आ गया तो उन्हें हटा कर कोने में छुपा दिया जाता है. फिर अपनी जगह पर वापस आ जाते हैं.

‘‘लावारिस लोगों को वर्षो से अस्पताल द्वारा रखा जा रहा है. बीमार होने पर इलाज किया जाता है. खाना भी रिम्स द्वारा दिया जाता है. हम कितना दिन रख सकते है. जिला प्रशासन से इन लोगों को अनाथालय में भेजने का आग्रह किया गया हे. एसडीओ को पत्र भेजा गया है.’’

डॉ वसुंधरा, अधीक्षक रिम्स

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