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नगर निगम: एनजीओ से ही सफाई कराने की थी चाहत

रांची: शहर से एटूजेड का जाना सितंबर में ही तय हो गया था. सितंबर में निगम बोर्ड की बैठक में पार्षदों ने खुल कर कहा था कि एटूजेड सफाई व्यवस्था संभालने में अक्षम है. इसलिए अब इस कंपनी को सफाई कार्य से मुक्त कर दिया जाना चाहिए. इस मांग को निगम अधिकारियों ने भी माना. […]

रांची: शहर से एटूजेड का जाना सितंबर में ही तय हो गया था. सितंबर में निगम बोर्ड की बैठक में पार्षदों ने खुल कर कहा था कि एटूजेड सफाई व्यवस्था संभालने में अक्षम है. इसलिए अब इस कंपनी को सफाई कार्य से मुक्त कर दिया जाना चाहिए. इस मांग को निगम अधिकारियों ने भी माना. हालांकि, तब अधिकारियों ने तर्क दिया कि अभी नजदीक में दुर्गा पूजा, दीवाली और छठ है. इसलिए अभी इसे हटाना उचित नहीं होगा. त्योहारों के बाद कंपनी को हटाने से उचित रहेगा. इस प्रकार एटूजेड सितंबर माह से लेकर दिसंबर तक(चार माह) शहर के सफाई का काम करता रहा. दिसंबर में निगम ने एटूजेड को एक माह का नोटिस देकर काम बंद करने का निर्देश दिया. निगम की योजना यहां एटूजेड के हटने के बाद निजी हाथों में सफाई व्यवस्था सौंपने की थी, ताकि एनजीओ को काम सौंपने के नाम पर निगम के अधिकारी व जनप्रतिनिधि जनता की गाढ़ी कमाई का आपस में बंटवारा कर सके.

सचिव ने कहा निकाले ग्लोबल टेंडर : एटूजेड को नोटिस जारी करने के बाद नगर विकास सचिव ने निगम अधिकारियों की बैठक बुलायी. बैठक में सचिव ने निगम अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दिया कि शहर की साफ सफाई इन छोटे एनजीओ के बूते संभव नहीं है. इसलिए जल्द से जल्द आरएफपी (रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल) निकाल कर ग्लोबल टेंडर किया जाये.

चार माह में निकाला जा सकता था ग्लोबल टेंडर : निगम के अधिकारियों को सितंबर माह में ही यह पता चल गया था कि एटूजेड शहर की सफाई करने में सक्षम नहीं है. निगम अगर चाहता तो सितंबर से लेकर दिसंबर तक (चार महीने) में आरएफपी बना कर वह ग्लोबल टेंडर कर सकता था. परंतु, निगम अधिकारी सितंबर से लेकर दिसंबर तक निश्चिंत रहे. जब एटूजेड ने हाथ खड़ा किया, तब ग्लोबल टेंडर कराने की तैयारी की जा रही है. निगम अधिकारियों की मानें तो निगम कितनी भी जल्दी से आरएफपी बना कर ग्लोबल टेंडर करे, इसमें कम से कम तीन-चार माह का समय लग ही जायेगा.

तो केंद्र का अनुदान बंद हो जाता
एटूजेड की सफाई व्यवस्था पर होनेवाले खर्च को वर्तमान में केंद्र सरकार वहन करती है. इसके लिए केंद्र सरकार द्वारा नगर निगम को जेएनएनयूआरएम प्रोजेक्ट के सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के तहत करीब 50 करोड़ की राशि दी गयी है. अब नगर निगम अगर इन एनजीओ को काम दे देता, तो इस केंद्र सरकार की यह सहायता राशि बंद हो जाती. तब निगम को अपने पैसे से एनजीओ को प्रतिमाह भुगतान करना पड़ता. इस प्रकार से एनजीओ की सफाई व्यवस्था लागू होने पर निगम को दोहरा घाटा उठाना पड़ता.

हिंदी में पढ़ें मास्टर प्लान, दें सुझाव
शहर के प्रस्तावित मास्टर प्लान 2037 का हिंदी प्रारूप नगर निगम के वेबसाइट पर उपलब्ध है. आम जनता के पढ़ने व समझने के लिए नगर निगम द्वारा इसे साइट पर डाला गया है. इस प्रारूप को लोग डाउनलोड करने के अलावा पढ़ कर 15 जनवरी तक इसमें आपत्ति भी दर्ज करा सकते हैं. ज्ञात हो कि पूर्व में कई संगठनों द्वारा मास्टर प्लान को हिंदी में रूपांतरित करने की मांग की थी. विधानसभा में भी यह मामला उठा था. इसी को देखते हुए निगम ने इसके हिंदी प्रारूप को वेबसाइट पर उपलब्ध कराया है.

सीइओ से मिला चेंबर का प्रतिनिधिमंडल
नगर निगम सीइओ मनोज कुमार के साथ शनिवार को चेंबर का प्रतिनिधिमंडल मिला. इस दौरान प्रतिनिधिमंडल ने सीइओ से मांग की कि निगम की दुकानों की दर प्रतिवर्ष वृद्धि की जाती है, जो उचित नहीं है. निगम इन दुकानों का किराया प्रति तीन वर्ष में बढ़ाये. प्रतिनिधिमंडल ने मांग की कि शहर के प्रस्तावित मास्टर प्लान को जल्द से जल्द लागू किया जाये. इस दौरान प्रतिनिधिमंडल ने निगम के डिप्टी मेयर संजीव विजयवर्गीय को ज्ञापन सौंप कर शहर के सफाई व्यवस्था को दुरुस्त करने की मांग की. प्रतिनिधिमंडल में महासचिव पवन शर्मा, रंजीत गड़ोदिया, सत्येंद्र चोपड़ा, शरद पोद्दार, राम बांगड़, शशांक भारद्वाज, गोवर्धन गड़ोदिया, मनीष शर्मा आदि शामिल थे.

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