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‘वोट डालिए, हालात बदलिए!

-हरिवंश- अपने आसपास की स्थिति से क्षुब्ध हैं, बेहतर जीवन स्तर चाहते हैं, नागरिक सेवाओं में सुधार की आकांक्षा है, झारखंड को भी देश के विकसित राज्यों की कड़ी में देखना चाहते हैं, तो झारखंड में हो रहे निकाय चुनावों में जरूर मत डालें. 22 वर्षों बाद यह अवसर आया है. यह चुनाव राजधानी रांची […]

-हरिवंश-

अपने आसपास की स्थिति से क्षुब्ध हैं, बेहतर जीवन स्तर चाहते हैं, नागरिक सेवाओं में सुधार की आकांक्षा है, झारखंड को भी देश के विकसित राज्यों की कड़ी में देखना चाहते हैं, तो झारखंड में हो रहे निकाय चुनावों में जरूर मत डालें. 22 वर्षों बाद यह अवसर आया है. यह चुनाव राजधानी रांची की सत्ता को राज्य के अन्य शहरों तक पहुंचायेगा. सत्ता विकेंद्रीकरण का अनुष्ठान है, यह चुनाव.

अपने शहर, गली-मोहल्लों और आसपास के इलाकों को सुंदर, साफ-सुथरा और स्तरीय बनाने का अधिकार और अवसर यही चुनाव देगा. इसलिए इस चुनाव का सीधा रिश्ता आपके जीवन से है. आपकी भावी पीढ़ियों से है. इस चुनाव से तटस्थ, निरपेक्ष या उदासीन होने का अर्थ है, अपना, अपने परिवार और अपने समाज का कब्र खोदना. चुनाव से कैसे हालात बदल सकते हैं, यह आजमाना हो, तो यह मौका है.

पर वोट डालते समय ‘श्मशान वैराग्य’ भाव से मुक्त रहें. यह ‘श्मशान वैराग्य’ क्या है? हम श्मशान जाते हैं. शव जलाने. वहां जीवन को लेकर तरह-तरह के सवाल उठते हैं, मन में. वैराग्य बोध होता है. पर श्मशान से घर या समाज में लौटते ही वह ‘श्मशान वैराग्य’ गायब हो जाता है. फिर जीवन के वही खटराग, दावं-पेंच और एकरसता. पर माना जाता है यह श्मशान वैराग्य भाव ठहर जाये, तो जीवन बदल जाये. इसी तरह मतदाताओं के हाथ मतपत्र मिलते ही, जाति, धर्म, समुदाय के बोध पैदा हो जाते हैं.

मतदान स्थल जाते ही, समाज की समस्याएं, मोहल्ले की बदतर स्थिति, कुशासन, भ्रष्टाचार, व्यवस्था के प्रति आक्रोश, ‘श्मशान वैराग्य’ की तरह गायब हो जाते हैं. और छोटी-छोटी चीजों, निजी स्वार्थ और संकीर्ण मन:स्थिति के तहत हम वोट डालते हैं. फिर निकल कर पछताते हैं. शहर बजबजा रहा है. पानी नहीं मिल रहा. बेहतर चिकित्सा सुविधाएं नहीं मिलतीं. दर-दर भटकना पड़ता है. बिजली संकट है. अच्छे स्कूल नहीं हैं. और हमारे इन कुकर्मों की कीमत कौन चुकाता है? बेरोजगारों की फौज खड़ी होती है. देश के दूसरे हिस्सों में रोजगार पाने जाते हैं, अपमानित होते हैं, मारे जाते हैं. अगर इन चीजों से मुक्त होना है, बेहतर भविष्य बनाना है, तो जात-पात, धर्म, बाहरी-भीतरी वगैरह संकीर्ण भावों से ऊपर उठ कर मत डालना होगा. काम करनेवालों को चुनना होगा.

फर्क करिए. इन चुनावों में तरह-तरह के प्रत्याशी हैं. एक अनुभवी आदमी की टिप्पणी थी. इन निकाय चुनावों के प्रचार के दौरान अपराध के ग्राफ पर नजर डालिए, अपराध घट गये हैं. यानी अपराध की दुनिया के शागिर्द, नौसिखिए सभी भाग्य आजमा रहे हैं. यही लोग भविष्य के संभावित विधायक, सांसद और राजनीतिज्ञ भी हैं. राज्य का भविष्य गढ़नेवाले भूमि व्यवसाय करनेवाले भी मैदान में हैं. राशन दुकान की कालाबाजारी में माहिर लोग भी शहर का शासन अपने हाथ में लेना चाहते हैं. इन प्रत्याशियों के प्रोफाइल देखें, तो डर भी लगता है कि ऐसे पात्र जीत गये, तो शहर, समाज और राज्य को नरक बनाने का काम मिनटों में करेंगे. ऐसे लोगों की निगाहें कहीं और हैं, निशाना कहीं और. जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय अरबन रिनुअल मिशन के तहत रांची को 5500 करोड़, धनबाद को 3000 करोड़ मिलने हैं. जमशेदपुर को भी 3680 करोड़ मिलेंगे. इसी तरह अन्य शहरों में भी योजनाएं चलेंगी.

इन चुनावों में खड़े अधिसंख्य प्रत्याशियों की निगाह इन पैसों पर है. अधिसंख्य प्रत्याशी ‘मिनी विधायक-मिनी सांसद’ बन कर मौज करना चाहते हैं. आपके भविष्य की कीमत पर. आपकी चुप्पी, तटस्थता या उदासीनता के कारण. इसलिए सावधानी से वोट दें और दिलायें. जात-पात, धर्म, क्षेत्रीयता, मजहब से ऊपर उठ कर. अनेक अच्छे लोग भी चुनाव मैदान में हैं. इन्हें मौका मिले, तो हालात जरूर बदलेंगे.

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