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अंधा युग और झारखंड

-हरिवंश- झारखंड की राजनीति के दांवपेंच देख कर मुझे अपने प्रथम संपादक गुरु और शिखर के साहित्यकार डॉ धर्मवीर भारती की कालजयी पुस्तक ‘अंधा युग’ की कुछ पंक्तियां याद आयीं. यह उनकी विश्वप्रसिद्ध कृति है. पुस्तक के आरंभ में उन्होंने विष्णु पुराण के कुछ श्लोक उद्धृत किये हैं और उनका हिंदी अनुवाद भी दिया है. […]

-हरिवंश-

झारखंड की राजनीति के दांवपेंच देख कर मुझे अपने प्रथम संपादक गुरु और शिखर के साहित्यकार डॉ धर्मवीर भारती की कालजयी पुस्तक ‘अंधा युग’ की कुछ पंक्तियां याद आयीं. यह उनकी विश्वप्रसिद्ध कृति है.

पुस्तक के आरंभ में उन्होंने विष्णु पुराण के कुछ श्लोक उद्धृत किये हैं और उनका हिंदी अनुवाद भी दिया है. उन श्लोकों में से कुछेक के हिंदी अनुवाद, पाठकों को खासतौर से झारखंड की राजनीति (वैसे तो पूरे देश की राजनीतिक संस्कृति के लिए यह प्रासंगिक है) को समझने में मदद करते हैं. यह समान रूप से एनडीए-यूपीए दोनों पर लागू होता है.

सत्ता होगी उनकी

जिनकी पूंजी होगी

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जिनके नकली चेहरे होंगे,

केवल उन्हें महत्व मिलेगा

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राजशक्तियां लोलुप होंगी,

जनता उनसे पीड़ित होकर

गहन गुफाओं में छिप-छिप कर दिन काटेगी

ये तीनों उद्धरण, विष्णु पुराण के तीन संस्कृत श्लोकों के ठीक नीचे हिंदी अनुवाद के रूप में प्रस्तुत किये गये हैं. डॉ भारती द्वारा किये गये ये अनुवाद आज की राजनीति के चरित्र और चेहरे को सर्वश्रेष्ठ तरीके से बताते हैं. यह भी गौर करने लायक है कि सैकड़ों-हजारों वर्ष पूर्व विष्णु पुराण के रचयिता ने कैसे भविष्य को देख लिया था कि शासकों से त्रस्त जनता भाग कर गुफाओं में शरण लेगी.

आगे डॉ धर्मवीर भारती ने इसी पुस्तक में लिखा है,

टुकड़े-टुकड़े हो बिखर चुकी मर्यादा

उसको दोनों ही पक्षों ने तोड़ा है

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यह अजब युद्ध है नहीं किसी की भी जय

दोनों ही पक्षों को खोना ही खोना है

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दोनों ही पक्षों में विवेक ही हारा

दोनों ही पक्षों में जीता अंधापन

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जो कुछ सुंदर था, शुभ था कोमल था

वह हार गया …… द्वापर युग बीत गया.

जब अच्छे मूल्य हार जायें, समाज के बहुसंख्यक अच्छे लोग शासकों के अंधेपन और चरित्रहीनता से निराश हो जायें, कुंठा, हताशा पूरे समाज को डिप्रेशन में डाल दे, तो स्थितियां कैसे बदलती हैं.

आगे इसी पुस्तक में डॉ धर्मवीर भारती ने उन पंक्तियों को लिखा, जो किसी इंसान, सभ्यता और संस्कृति के लिए प्रेरक पूंजी हैं. यादगार और स्मरणीय. हालांकि पूरी पुस्तक ही अनुपम और अद्वितीय है, पर मौजूदा परिस्थितियों के लिए खासतौर से प्रासंगिक ये छह पंक्तियां!

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किंतु, उस दिन यह सिद्ध हुआ

जब कोई भी मनुष्य

अनासक्त हो कर चुनौती देता है, इतिहास को,

उस दिन नक्षत्रों की दिशा बदल जाती है

नियति नहीं है, पूर्व निर्धारित.

उसको हर क्षण मानव-निर्णय बनाता-मिटाता है.

झारखंड की मौजूदा स्थिति को चुनौती देने के लिए कोई अनासक्त इंसान खड़ा हो, एक ऐसा नेतृत्व, जो अपने संकल्प और पुरुषार्थ से इस राज्य की दिशा बदल दे. जिस तरह प्रकृति ने इसे समृद्ध खनिज राज्य बनाया है, उस तरह कोई विजन-दृष्टि इसे प्रगति-शिखर तक पहंचाये, इसी उद्देश्य से इस अमर कृति अंधा युग का स्मरण!

09-09-2006

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